" खुलजा सिम सिम "
" खुलजा सिम सिम "
कितने सालों से हमारे कानों में 'अलीबाबा चालीस चोर ' का आदेशात्मक संवाद गूंज रहा है ...," खुल जा सिम सिम ......" और चट्टानी भीमकाय दरवाजा ' ...चर ....र .........र .......करते हुए खुल जाता है ! ...और फिर स्वतः बंद हो जाता है ! ....जादुई चिराग के जिन्न को चिराग से बाहर निकालने की प्रक्रिया भला किसे नहीं याद है ?.....दैत्य निकलने के साथ कहता था ...... " हुक्म ..हो ..मेरे.. आका ......"! बस क्या था ?...... मुश्किल से मुश्किल सवालों का हल उसके पास होता था !...... सारी मुरादें पूरी हो जातीं थीं !... अब इसी लय में हम अपना राग अलापने लगे हैं !. गूगल आज कल ' चिरागीय जिन्न ' बन गया है ! आपने बटन दबाया और आपकी मुरादें पूरी !..हमें अनुरोध करना भी नहीं पड़ता है बस आदेश देते हैं ! ..इतना ही नहीं गूगल नतमस्तक होकर हमारे आदेशों की प्रतीक्षा में २४ घंटे खड़े रहता है ! इन भंगिमाओं की वाद्य -यंत्रों पर अपनी उंगलियों को थिरकाते -थिरकाते हम उन पारम्परिक यंत्रों को भूलते जा रहे हैं ..............जिन्हें...आत्मीयता, ...आदर, सम्मान, ....मृदुलता, ....शिष्टाचार .....इत्यादि के सरगमों की आवश्यकता पड़ती है ! ...हमें यह भलीभांति ज्ञान होना चाहिए कि गूगल ..., जिन्न..... और...... खुल जा सिम सिम .....वाली प्रक्रिया अपने गुरुओं ....मात-पिता, .....श्रेष्ठ.... जनों, ...मित्रों ,.......सगे सम्बन्धियों .... और..... फेसबुक मित्रों पर अजमाना अत्यंत ही कष्टप्रद प्रतीत होता है !........रावण से शिक्षा लेने के लिए लक्ष्मण को उनके चरण के समीप जाना पड़ा ! .......हम कुछ लोगों से पूछना चाहते हैं ..., कुछ जानना चाहते हैं ......और....... कुछ सीखना चाहते हैं तो गूगल के आदेशात्मक बटनों का संचालन हमें भूलना पड़ेगा और हमें.... आत्मीयता......आदर सम्मान, .........मृदुलता ......और शिष्टाचार......को गले लगाना पड़ेगा !.... हम जब तक एक दूसरे को नहीं जानते तब तक गूगल रूपी प्रश्नों का बौछार ना करें !...... पहले अपना परिचय दें...... तत्पश्चात अपनी जिज्ञासा का उल्लेख करें ! ....ना जाने और कितने वाध्य-यंत्रों का समावेश आने वाले युगों में हो जायेगा पर राग और घराना नहीं बदलने बाला !..... सा ..रे ..गा ..म ..प ..ध...नी.... सरगम जैसे संगीत की आत्मा है.... उसी तरह 'शिष्टाचार ' हमारा कवच !
