Arunima Thakur

Inspirational

5.0  

Arunima Thakur

Inspirational

खुली आँखों के सपनें

खुली आँखों के सपनें

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सबसे पहले बड़की भौजी को फोन करके मैंने उनको बताया कि आपकी तरह आज मुझे भी 'बेस्ट टीचर' (सर्वश्रेष्ठ शिक्षिका) का अवार्ड (पुरुस्कार) मिला है। और इस पुरस्कार का पूरा श्रेय आपको जाता है। आपने मुझे सिखाया कि परिस्थितियां कितनी भी मुश्किल क्यों न हो अपनी आँखों के सपनों का त्याग मत करना। मैं आपके ही कदमों के अनुसरण करके यहॉं तक पहुँच पायी हूँ। शिक्षिका बनना या अवार्ड मिलना आज बहुत आम बात हैं। पर बड़की भौजी के लिए शिक्षिका बनना किसी कंपनी का सीईंओं बनने जितना प्रयासपूर्ण था और मेरे लिए भी। 


फोन रख कर मैं मुड़ी ही थी कि मुझे अपने पति की आवाज सुनाई दी, "ये क्या हालत बना कर रखी हैं अपने सर्टिफिकेट्स की। " मैं मन ही मन मुस्कुरायी। यह हर बार का है। मेरे पति हर बार पूछते हैं। आखिर क्यों मैंने अपने सर्टिफिकेट्स को इतनी बद्तर हालत में रखा हैं ? मैं क्या कहती , मैंने अपनी एक चचेरी भाभी को निराशा में डूब कर अपने सारे सर्टिफिकेट्स को चूल्हे में जलाते देखा था। तो मेरे मन में मेरे प्रमाणपत्रों को लेकर कोई हर्ष या गर्व के भाव नही थे। बस यहीं भाव थे हाँ ठीक है पढ़ लिया हो गया। इनको क्या सम्भालना बाद में किसी काम तो आएंगे नही , क्या पता इनकी नियति भी किसी चूल्हे में जलना ही हो। तो इनका मोह क्यों लगाना।


घर में पढ़ाई का माहौल तो था पर यह मानसिकता भी थी कि पढ़ लिख कर भी घर गृहस्थी ही तो संभालनी हैं। वह तो भला हो मेरी इन्हीं बड़की भौजी का जिन्होंने मुझे समझाया ।


बात मेरी शादी के एक दो साल बाद की हैं। मैं माँ के घर पर थी और बड़की भौजी मुझसे मिलने आयी थीं। माँ मुझे सर्टिफिकेट्स (प्रमाणपत्र) संभाल कर रखने को बोल रहीं थी और मैं माँ को बोल रहीं थी " कि जाने दो न पड़े रहने दो। ये मेरे किस काम के। आपके प्रमाणपत्र आपने इतने सम्भाल रखे तो आज किस काम के ?वो दीदी लोगों के सारे प्रमाणपत्र भी यहीं चाची लोगों का पास ही पड़े है। मुझे भी लगता है कि ससुराल में मुझे काम करने की इजाजत नहीं मिलेगी।" 


तब बड़की भौजी ने मुझे समझाया था " दूसरों के सपनों के साथ क्या हुआ ,इससे डर कर तुम सपने देखना बंद मत करो , अगर तुम्हारा कोई सपना है तो तब तक कोशिश करों जब तक वह पूरा न हों जाए।" 


 बड़की भौजी हमारे संयुक्त परिवार की सबसे बड़ी बहु , यानि कि आज से लगभग पैंतालीस साल पहले , उनका सपना था शिक्षिका बनना । पर वह शिक्षिका बनने के अपने सपने को साकार करने की कोशिश भी कर पाती उससे पहले ही बी.ए. पास करते ही उनकी शादी हो गयी। शादी के बाद पति व परिवार को नौकरी के लिए सहमत करने की उनकी सारी कोशिशें व्यर्थ गयी। शायद वह प्रयासरत भी रहती पर भगवान भी अड़गा लगाने में पीछे कैसे रहते। पहले तो सँयुक्त परिवार में बिखराव हुआ फिर कुछ सालों में उनकी सास यानि कि हमारी बड़ी ताई जी की मृत्यु हो गयी ।


 सास की अधूरी जिम्मेदारी पंद्रह साल के देवर और बारह व ग्यारह साल की ननदों के पालन पोषण की जिम्मेदारी उन पर आ गयी। उन्होंने देवर व ननदों को पूरी ममता व दुलार दिया। उनका परिवार भी बढ़ा, दो लड़के व एक लड़की। समय गुजरता गया। ननदें व देवर पढ़ लिख कर आत्मनिर्भर बनें , उनकी शादी की I भौजी के बच्चे भी बड़े हो गये I बड़ा लड़का देहरादून में एम.सी.ए. कर रहा था। लड़की ने डाक्टर बनने का इम्तिहान पास कर लिया था। वह हास्टल में रह कर डाक्टरी की पढ़ाई कर रहीं थी। छोटा बेटा भी बारहवीं पास कर प्रतियोगी परिक्षाओं की तैयारी कर रहा था।


  बड़की भौजी एक बार फिर अपने पति के सामने थी। उनके ही शब्दों में, "मैंने अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी कर दी। सभी बच्चे मंजिल पर पहुँचे तो नहीं हैं, पर अपनी राह पकड़ चुके हैं। क्या अब मुझे शिक्षिका बनने की इजाजत है? " 


बड़के भैया भौजी देखते ही रह गये फिर बोले, "इतने वर्षो बाद भी ? अरे नौकरी करने की एक उम्र होती है। तुम्हारी पढ़ाई तो कब की छूट चुकी है। तुम से अब यह नौकरी ना हो पाएगी"।


 बड़की भौजी ने कहाँ , "हॉं यह मेरा सपना था और मैंने अपने सपने को कभी अपनी आँखो से ओझल नहीं होने दिया। और सपनों को पूरा करने की कोई उम्र नही होती। मेरी पढ़ाई छूटी नही। अपने बच्चों के साथ साथ मैं अगल बगल के बच्चो को भी पढ़ाया करती थी। जिससे मैं हमेशा अपने आप को नित नवीन विचारों से अपडेट रख सकूँ" ।


 अब बड़के भैया के पास ना बोलने का विकल्प ही नही था। बड़की भौजी ने पास के ही एक स्कूल में पढ़ाना शुरू किया। साथ ही साथ एम.ए ,बी.एड. किया । अपने सपने को कदम दर कदम हकीकत बनाते हुए वह आज इस मुकाम पर हैं कि उन्हें उनके सपनों का सर्वश्रेष्ठ साकार प्रारूप देखने को मिला। इतना ही नही उन्होंने दूसरों को भी सपनों को देखने की हिम्मत दी।


पर इन सबसे भी ऊपर बड़की भौजी की अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि हैं भौजी की कामवाली के बच्चें, जो भौजी के बच्चों जितने ही अपनी जिन्दगी में कामयाब हैं। भौजी ने अपने बच्चों के साथ ही साथ उनको भी पढ़ाया, उनको पढ़ने के लिए प्रेरित किया, उनको समुचित मार्गदर्शन दिया। बड़की भौजी ने वो कहावत कि मेहनत खामोशी से करो तो सफलता शोर मचाती है को सच साबित कर दिया। उनको पढ़ाने का शौक था तो उन्होंने हम लोगों को पढ़ाया, उन्होंने अपने बच्चों के साथ आस पड़ोस के गरीब बच्चों को पढ़ाया। उन्होंने अपनी जिन्दगी के पच्चीस तीस साल, सपने ना पूरे होने की हताशा निराशा में डूब कर नही बिताएं। ना ही अपने आप को , परिवार वालों को या भगवान को कोसते हुए निकालें । बल्कि उन्होंने अपने सपने को पूरा करने की दिशा में एक सार्थक पहल की।


 अगर आपको सपने देखने का हक हैं तो उसे पूरा करने का जूनून भी होना ही चाहिए। किसी ने सच ही कहा हैं ," चलना तो शुरू करो रास्ता भी बनता जायेगा।"

       


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