खोने का डर
खोने का डर
लगातार बारिश से पूरा इलाका पानी पानी हो गया था। मैं अपने दादाजी के घर छुट्टियां मनाने गई थी। पर बरसात के कारण घर से बाहर निकलना मुश्किल हो गया था।
मेरे दादा जी का घर काफी पुराना हो गया था। इसके आसपास बनने वाले सभी घरों का पानी मेरे घर के कंपाउंड में इकट्ठा हो जाता था क्योंकि सब घर ऊंचाई पर थे और मेरा घर तो जैसे गड्ढे में तब्दील हो गया था। शाम का समय था। चाची ने बाहर जाने वाला मुख्य द्वार बंद कर दिया था। मैं बाहर देखना चाहती थी। मैंने उन्हें दरवाजा खोलने की जिद की। उन्होंने पहले तो मना कर दिया फिर न जाने क्या सोचकर दरवाजा खोल मेरा हाथ पकड़ कर दरवाजे तक ले गई। बाहर का नजारा बड़ा ही भयानक था। चारों तरफ पानी। झींगुर और मेंढक की टर्र -टर्र की आवाज उसे और भी भयानक बना रही थी। कुछ दूरी पर एक बड़े से पत्थर पर मुझे कुछ हलचल सी महसूस हुई। मैंने चाची को इशारे से दिखाया। चाची ने देखा और चुप रहने का इशारा किया। धीरे से बताया- "वहां नाग नागिन का जोड़ा बैठा है।" मेरी तो चीख ही निकलने वाली थी कि उन्होंने मेरे मुंह पर अपना हाथ रख दिया। मैंने जल्दी से दरवाजा बंद कर उन्हें अंदर आने को कहा पर तभी हवा सीं तीव्र गति के साथ वह साँप चाची के पैर में डस लिया। मैंने झट उन्हें अंदर कर दरवाजा बंद किया और जोर जोर से चिल्ला कर दीदी, भैया और दादाजी को पुकारने लगी। चाची के मुँह से झाग निकलने लगा और देखते ही देखते उन्होंने दम तोड़ दिया। यह मेरी जिंदगी का पहला अनुभव था जब मैंने किसी अपने को अचानक इस तरह दम तोड़ते देखा था। मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि अभी थोड़ी देर पहले मुझसे बात करने वाली चाची अचानक इस तरह चुप हो चिर निद्रा में सो जाएगी। मैं खुद को दोषी मान रही थी क्योंकि मेरी जिद के कारण उन्होंने दरवाजा खोला था। मैं जोर-जोर से चिल्ला रही थी और रो रही थी कि अचानक मुझे झकझोर कर दीदी ने जगाया और पूछा - तुम क्यों इतना चिल्ला रही हो और देखो तुम्हारे आँखों से आँसू बह रहे हैं? मैंने देखा सचमुच मेरे आंख से आँसू बह रहे थे। दौड़कर मैं किचन में गई। वहाँ चाची चाय बना रही थी मुझे देखते हैं पूछ बैठी -"आज नाश्ते में आपके लिए क्या बना दूं"? मैं उनसे लिपट कर रोने लगी। उन्होंने मुझे रोते देख प्यार से सहलाते हुए रोने का कारण पूछा। अब मैं उन्हें क्या बताती! बस एकटक उन्हें देखती जा रही थी। मैं सपने वाली उस बात को याद भी नहीं करना चाहती थी। सच, इस सपने ने तो मुझे इस कदर डरा दिया था कि मैं अपने आप को अपनों के खोने के डर के दलदल से निकाल न पा रही थी।