खंडहर
खंडहर
जनवरी माह की शीत लहर से बचने के लिए गर्म कपड़ों में लिपटे, घर में प्रवेश किया कि चौकीदार ने
एक लिफाफा मेरी और बढ़ाया। पत्र पढ़ते ही मैं अपनी सुध - बुध भूल गया। जल्दी से बैग तैयार किया ओर गाड़ी में बैठ गया। इतना भी नहीं सोचा कि रात के नौ बजे हैं पांच घंटे का सफर वो भी चारों ओर फैला अंधेरा और धुंध । धीर - धीरे गाड़ी चला रहा था । बड़ी मुश्किल से आधा रास्ता ही तय कर पाया था कि किसी औरत को एकाएक गाड़ी के सामने देखा । ईश्वर का धन्यवाद किया कि गाड़ी के नीचे नहीं आई। मैंने गाड़ी रोकी और बाहर आ कर देखा वो धुंध के कारण कहीं दिखाई नहीं दी।
मैंने गाड़ी को स्टार्ट किया । यह क्या गाड़ी आगे नहीं गई, बंद हो गई। सोचा जिस ओर वो औरत गई है जाकर किसी की मदद लेता हूं।
रात का समय, सुनसान रास्ता, धुंध, डर भी लग रहा था मरता क्या न करता । मैं जोर से चिल्लाया कोई है, कोई है। मेरी आवाज को उस औरत ने सुना होगा । वो रुक गई मुझे अपने पीछे आने का इशारा किया। सर्द हवा के झोंके तीर की तरह बदन में चुभ रहे थे। उस औरत ने एक लकड़ी
Okका गेट खोला हम दोनों कुछ दूर तक चलते रहे, फिर एक दरवाजे को धकेल कर, एक हौलनुमा कमरे में पहुंच गए। कमरे में एक ओर अलाव के इर्दगिर्द छह लोग बैठे थे, एक बड़ी सी कुर्सी पर बैठा आदमी शायद उनका मुखिया था। उस pआदमी ने मुझे अपने पास आने का इशारा किया।
Part 2
मेरे कुछ कहने से पहले ही मुखिया बोला, तुम उस कमरे में जाकर आराम से रहो, सुबह तुम्हारी गाड़ी ठीक हो जाएगी, कुछ खाना पीना है तो बताओ। मुझे नहीं मालूम कितने घंटे सोया जब नींद खुली तब सुबह हो गई थी, सूरज देवता के कारण धुंध भी नहीं थी । चारों ओर नजर गई तो यकीन नहीं हुआ। कोई अलाव, आदमी, औरत कुछ भी नहीं था। सोचा सब सो रहे होंगे। मैं गेट की तरफ गया कुछ दूरी पर मेरी गाड़ी थी। जैसे ही मैंने चाबी ..लगाई गाड़ी स्टार्ट हो गई। मैं अपनी मंजिल की ओर जाने लगा। मेरे भाई को दिल का दौरा पड़ा था, उपचार करवाने में तीन चार दिन लग गए । ईश्वर का शुक्रिया किया कि उसकी जान बच गई।
वापसी में मैंने अपना सफर दिन में शुरू किया, जब मैं वहां पहुंचा जहां मेरी गाड़ी बंद हुई थी तो देखा कुछ दूरी पर एक पुरानी खंडहर बन चुकी इमारत थी। मन में लालसा उठी तो जाकर क्या देखा कि जगह -जगह मकड़ी के जाले लगे थे, बड़ी - बड़ी झाड़ियां थीं। कुछ कमरों की दीवारें गिरी हुई थीं। मैं जल्दी से बाहर आया । कुछ रास्ता
तय करने के बाद एक रेस्तरां में जलपान करने गया। रेस्तरां पुराना था तो उसके मालिक से उस खंडहर बनी इमारत के बारे में पूछा। पता चला कि उस इमारत को सब भुतिया घर कहते थे। वहां बरसों से कोई नहीं रहता था। कुछ लोगों ने एक बूढ़ी औरत को देखा है, जो अक्सर रात को ही दिखाई देती है।
मेरे सारे बदन में सरसरी सी हो गई कि क्या उस रात मैं भूतों के साथ था। रेस्तरां के मालिक ने मेरी मनोदशा भांप ली थी बोला -कोई भूत भात नहीं होते। मैंने उसे सब बताया जो उस रात को देखा। वह हंस दिया कि जो तूने देखा वो भूत नहीं जिंदा इंसान थे। वास्तव में क्या था कि उसके रेस्तरां में उसके गांव के छह आदमी शाम का नाश्ता करके, साइकिलों से पास के गांव जा रहे थे। अंधेरा और धुंध होने के कारण वो उस भुतिया घर में रुक गए होंगे, सर्दी बहुत होने से वो अलाव के पास बैठ गए होंगे। उन आदमियों में एक कार मेकैनिक था।
मेरे शंका को दूर करने के लिए, उसने मुझे उन लोगों की तस्वीर दिखाई तब जाकर मेरा डर दूर हुआ। रही बात बुढ़िया की वो दिन भर इधर उधर घूमती है और रात को वहां रहती है। मैंने उस रेस्तरां के मालिक का धन्यवाद किया और अपने घर की ओर चल दिया।
