Swati Roy

Drama

5.0  

Swati Roy

Drama

कहीं जाने की जरूरत नहीं है बहु

कहीं जाने की जरूरत नहीं है बहु

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"भाई समझता क्या है अपने आप को, आज आने दो उसे घर पर रात को मैं फ़ोन पर बात करूंगी", शुभी ने अपनी मां से कहा और फ़ोन रख दिया। 


शुभी रसोई में काम तो कर रही थी लेकिन दिमाग अपने मायके में ही पड़ा हुआ था। शुभी बड़बड़ाती जा रही थी, अभी जुम्मा जुम्मा छ: महीने हुए नही शादी को और मयंक को अभी से मां पापा गलत लगने लगे। आज रात ही उसका दिमाग साफ करूंगी। जरूरत पड़ी तो श्वेता से भी बात करूंगी। 

आज शरीर से ज्यादा शुभी का दिमाग थक गया था, दोपहर का काम खत्म कर आराम करने का सोच थोड़ी देर कमरे में जाकर लेटी और कब आंख लगी पता ही नहीं चला। अचानक दरवाजे की घण्टी की आवाज से उसकी नींद खुली, दरवाजा खोला और सामने शरद को देख बोली, "आप आज जल्दी आ गए ऑफिस से।"


"घड़ी देखो मोहतरमा शाम के सात बज रहे हैं। लगता है आज कुछ ज्यादा काम कर लिया तुमने जो इतना थकी हुई लग रही हो।" शरद ने कहा। 


बिना कोई प्रतिक्रिया दिए शुभी चाय बनाने के लिए रसोई की तरफ बढ़ गई और शरद भी फ्रेश होने के लिए कमरे में चले गए। 


चाय पीते पीते भी शुभी खोई हुई थी। शरद के पूछने पर उसने सुबह मां से हुई फ़ोन पर सारी बात बताई और फिर से उदास हो गई। शरद भी थोड़ा सोच में पड़ गया था। उसने शुभी को समझाते हुए कहा अभी मयंक को कुछ कहने की जरूरत नहीं है, परसों रविवार है हम दोनों चलेंगे वहां और जरूरत पड़ी तो मैं बात करूंगा मयंक से। ना चाहते हुए भी शुभी मान गई हालांकि मन तो उसका कर रहा था कि अभी फोन उठाये और भाई को खूब खरी खोटी सुनाए।


रविवार को शरद और शुभी सुबह सुबह निकल गए। दो घन्टे का सफर तय कर घर के समाने गाड़ी रुकते ही शुभी ने जल्दी से उतर कर घर की तरफ रुख किया। शरद अभी भी पार्किंग में ही था और शुभी अपनी मम्मी के घर के सामने थी। दरवाजा खोल उसको सामने खड़ा देख शुभी के पापा चौंक गए और बोले बेटा बिना बताए इतनी सुबह सुबह, सब ठीक है ना। 


पापा की बात अनसुनी कर शुभी अंदर घुसी तो देखा मां मयंक के सर में तेल मालिश कर रही हैं और दोनों किसी बात पर हंस रहे हैं। अब तक शरद भी घर के अंदर दाखिल हो चुके थे। मां और मयंक को स्वाभाविक बातचीत करते देख शुभी आश्चर्य से देखने लगी। इतने में श्वेता भी रसोई से बाहर आ उन दोनों को सामने देख बोली अरे दीदी जीजाजी आप दोनों अचानक कैसे? सब ठीक है ना? शुभी ने श्वेता की बात का जवाब देना जरूरी नही समझा और मयंक से बोली भाई मैं ये सब क्या सुन रही हूं। तुम्हें मम्मी पापा की बातें अब टोकाटाकी लगने लगी है और तुमने उनसे अलग रहने का बोल दिया है। भाई वो हमारे मम्मी पापा है, उन्होंने ही हमे जिंदगी का पाठ पढ़ाया है। आज हम जो हैं उन्हीं की वजह से ही तो है। वो जो करेंगें जो कहेंगे हमारे अच्छे के लिए ही कहेंगे। भाई किसी के भी मम्मी पापा गलत नही हो सकते है। शुभी बोलती जा रही थी कि अचानक उसने देखा मयंक और शरद उसकी तरफ देख मुस्कुरा रहे थे। 


उन दोनों को मुस्कुराते देख शुभी कुछ कुछ समझ गई थी। वो कुछ बोलती इससे पहले श्वेता उसके पास आ कर बोली दीदी आपने सही"मम्मी पापा कभी गलत नही हो सकते, वो चाहे आपके हो, मेरे हो या शरद जीजाजी के।"


शुभी को अब तक सब कुछ समझ आ चुका था, वो शरद की तरफ मुड़ी और बोली कि क्या हम मां और बाबूजी को लेने चल सकते हैं। 

"कहीं जाने की जरूरत नही है बहु" अंदर के कमरे से आती आवाज सुन शुभी ने देखा तो उसके सास ससुर सामने खड़े थे। शुभी हाथ जोड़ इतना ही कह पायी, "हो सके तो मुझे माफ़ कर दीजिए मां बाबूजी और अपने घर वापस लौट चलिए।"


बेटी सुबह का भूला अगर शाम को घर लौटे तो उसे भूला नही कहते हैं, ये कहते हुए शुभी की सास ने उसे गले लगा लिया।


शरद ने दूर से ही मयंक और श्वेता को धन्यवाद दिया और अपने परिवार को लेकर घर चल पड़ा।


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