ख़ूनी गुड़िया भाग 3

ख़ूनी गुड़िया भाग 3

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ख़ूनी गुड़िया
भाग 3


स्नेहा के हाथ पांव फूल गए। उसका हृदय धाड़ धाड़ करता हुआ उसकी पसलियों में बजने लगा। आखिर ये गुड़िया आई कहाँ से? वह पसीने से भीग गई। कल ही हर किसी ने साफ़ साफ़ कहा कि उसे किसी ने यह गुड़िया नहीं दी है। कल उसकी आँखों के सामने एक ट्रक ने इस गुड़िया की चिन्दी- चिन्दी कर दी थी। स्नेहा को एक हॉरर फिल्म की याद आई जिसमें एक गुड़िया पर शैतानी ताकत का साया था और वह लोगों का क़त्ल कर देती थी। स्नेहा बुरी तरह घबरा गई। उसने गुड़िया को झटक कर फेंकना चाहा लेकिन वह शैतानी गुड़िया उसके मुंह के सामने हवा में आकर स्थिर हो गई और भयानक आवाज़ में हंसने लगी। स्नेहा की घिग्घी बंध गई। उसके मुंह से अजीब सी घरघराहट निकलने लगी और वह बेहोश हो गई। जब उसे होश आया तब सूरज की किरणें बेडरूम की खिड़की से आकर उसे सहला रही थी। कल उसका जन्मदिन था। आज सोमवार को ऑफिस जाना पड़ेगा। अचानक स्नेहा को कल रात का देखा हुआ भयानक सपना याद आया जिनमें एक गुड़िया शैतानी हरकत कर रही थी। उसकी पीठ पर भय की एक सिहरन दौड़ गई। उसे वह सपना ऐसा लग रहा था मानो सब सच में घटित हुआ हो। वह एक पढ़ी लिखी आत्मनिर्भर लड़की थी। उसका परिवार गाजियाबाद में रहता था। वह अकेली मुंबई शहर में नौकरी करती और किराए के अपार्टमेंट में रहती थी। वह अपने दिमागी खलल पर मुस्करा पड़ी। उसे अब ऑफिस की तैयारी करनी थी। उसने अपना पलंग व्यवस्थित किया। उसके मित्रों द्वारा दिए गए सारे तोहफे सामने डाइनिंग टेबल पर पड़े हुए थे, लेकिन यह देखकर उसके माथे पर बल पड़ गए कि वह रंगीन चमकीला पेपर डाइनिंग टेबल के पैरों के पास पड़ा हुआ था जिसमें कल लिपटी हुई गुड़िया मिली थी। मतलब गुड़िया झूठी नहीं थी ,उसने कोई सपना नहीं देखा था! एक बार फिर पसीने की ठंडी लकीर उसकी गरदन से पीठ के बीचोबीच बह चली। इस मुसीबत का कोई हल उसे नहीं सूझ रहा था लेकिन वह यह नहीं जानती थी कि आगे जो मुसीबत टूटने वाली थी उसके सामने यह तो कुछ भी नहीं था।


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