खेल में जीत ही नहीं खेल भावना का होना आवश्यक होता है
खेल में जीत ही नहीं खेल भावना का होना आवश्यक होता है
आज मैं आपको एक ऐसी कहानी सुनाना चाहता हूं जिसमें आपको पता चलेगा कि खेल में केवल जीतना ही सब कुछ नहीं होता है बल्कि उसमें मुख्यतः खेल भावना का होना आवश्यक है। एक बार एक अंतरराष्ट्रीय स्तर की दौड़ प्रतियोगिता हो रही थी बहुत सारे दर्शक भी खेल देख रहे थे उसमें एक अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी भी भाग ले रहा था उसका जीतना लगभग तय था उसके पिता भी उस दिन खेल देखने स्टेडियम आए वह अपने बेटे को जीतते देखना चाहते थे सभी को विश्वास था कि आज का दिन तो उस खिलाड़ी का ही था सब केवल यह देखना चाहते थे कि वह वह अपने रिकॉर्ड के कितना सुधार करेगा। दौड़ शुरू हो गई सभी दौड़ने लगे वह खिलाड़ी सबसे आगे दौड़ रहा था अचानक वह लड़खड़ा गया और वह गिर गया वह उठा और फिर दौड़ने लगा लेकिन चोट के कारण दौड़ नहीं पा रहा था। अचानक भीड़ से एक व्यक्ति दौड़ कर आया उस खिलाड़ी को सहारा दिया और दोनों ने दौड़ पूरी कर दी। उस व्यक्ति ने सहारा देकर खिलाड़ी की दौड़ पूरी कराई जैसे ही उस खिलाड़ी ने दौड़ पूरी की वैसे ही पूरा स्टेडियम खड़ा हो गया तालियां बजाने लगा। लोगों ने उस खिलाड़ी के जज्बे की तारीफ की और सभी ने माना कि चाहे जीत किसी की भी हुई हो लेकिन असली विजेता तो वहीं खिलाड़ी है जिसने चोटिल होने के बाद भी अपनी दौड़ पूरी की, उसने अपनी खेल भावना का प्रदर्शन किया और कोई होता तो दौड़ छोड़ देता, लेकिन उसने दौड़ छोड़ी नहीं बल्कि पूरी की। इस खेल भावना को समस्त भीड़ ने देखा और सबने उसे विजेता ही माना। इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि खेल केवल हार व जीत के लिए नहीं होने चाहिए बल्कि खेल भावना के लिए भी होने चाहिए।
