कहानी प्यार की
कहानी प्यार की
पांच-छ: दिन पहले से ही एम बी ए की क्लास से शुरू हुई थी। पहले दिन जब उसे कॉलेज में देखा था तो दिल आसमान छू रहा था चाहतें तो मानो पंख लगा कर उड़ रही थी ।तरह- तरह की कल्पनाओं में डूबा मैं कभी यूं ही मुस्कुरा देता तो कभी जाकर शीशे के सामने खड़ा हो जाता तो कभी जाकर बालकनी में। बात ही कुछ ऐसी थी जबसे मिताली को देखा था सब भूल गया था। उसकी आंखें उसका बोलने का अंदाज सब कुछ तो पागल कर देने वाला था। मैं ही क्या जो भी उसे देखता उसके रूप का दीवाना हो जाता । अपनी हालत का क्या बयान करूं वह पास से गुजरती थी तो दिल इतने जोरों से धड़कता था कि शायद आवाज उसको भी सुनाई पड़ जाए। पर वहां सहज ही अपने चिर परिचित अंदाज से मुस्कुराती हुई हवा के मदमस्त झोंके की तरह पास से निकल जाती ।
गणित विषय की क्लास थी मेरा प्रिय विषय था अतः मुझे विषय पर अधिकार भी अच्छा था ।आज कक्षा शुरू होने के बाद भी मिताली नहीं आई मेरा क्लास में मन नहीं लग रहा था ।नजरें तो बस उसी को ढूंढ रही थी मेरी बेचैनी टीचर की नजरों से छुपी न रह सकी। कॉलेज में शुरुआत के दिनों में सभी टीचर बड़े स्ट्रिक्ट रहते हैं। तभी हमारी टीचर मिसेज सिंह की आवाज गूंजी -'रोहित आपका ध्यान कहां है?'यस मैम कहकर मैं खड़ा ही हुआ था कि तभी मिताली ने कक्षा में प्रवेश किया। मै खड़ा था ।उसने मुझे देखा ऐसा लगा जैसे काश !!!! यह थोड़ी देर बाद आती। मैं सोच ही रहा था कि तब तक टीचर की आवाज से मेरी तंद्रा टूटी वह कह रही थी आपका ध्यान यहां नहीं है आपको तो यह प्रश्न आता ही होगा । कम हियर एंड एक्सप्लेन इट इन फ्रंट ऑफ द क्लास। अभी क्लासेज शुरू हुए 5 दिन ही हुए थे शुरुआत का ही चैप्टर था मैं उठ कर गया और क्वेश्चन एक्सप्लेन कर दिया। मिसेज सिंह कुछ प्रतिक्रिया देती इसके पहले ही पीरियड खत्म हो गया ।घंटी बज गई थी ।मुझे भी अपने पर थोड़ा गर्व महसूस हो रहा था मानो खड़े होने से होने वाली बेज्जती धुल गई हो। सब लोग क्लास के बाहर जा रहे थे तभी मिताली मेरे पास आकर बोली -हेलो , कैसे हैं? मेरा नाम मिताली है आपका नाम रोहित है न? मैं 'हाँ ' ही बोल पाया था कि उसने कहा आज देर हो जाने के कारण पीरियड छूट गया। यदि आपने आज के नोट्स बनाए हो तो प्लीज दे दीजिए। नोट्स तो मैं रोज बनाता था आज तो मेरा ध्यान ही कहीं और था न । थोड़ा बहुत ही जो कुछ लिखा था वह भी सिर्फ अपने समझने के लिए। अपने आप पर भी गुस्सा आ रहा था नोटबुक मिताली की तरफ बढ़ा दी। उसे देख मुस्कुराती हुई बोली, इसे तो आपको ही समझाना पड़ेगा। एक बार फिर मेरा पल्ला भारी हो गया था मैं तुरंत बोला- हां, हां.. क्यों नहीं..श्योर। जितनी देर वो मेरे पास बैठी रही मैं तो बस उसके पास से आने वाली भीनी सी खुशबू में खोया रहा।
मैंने उन लड़कों से दोस्ती की जो उसकी सहेलियों के दोस्त थे ।मुलाकातों का सिलसिला चल पड़ा था ।पर पता नहीं क्यों मैं उससे कुछ नहीं कह पाता था और वह हंसते मुस्कुराते बड़ी सहजता से कभी-कभी मेरा हाथ भी पकड़ लेती थी।
आज सुबह दो पीरियड के बाद बीच में 1 घंटे का गैप था। क्लास भी देर से शुरू हुई थी 11:00 बजे के बाद ।बाद वाली क्लास ,2:00 बजे से थी। कॉलेज के सामने ही बहुत बड़ा मार्केट था ।मेरे दोस्त हर्ष ने पूछा ,"यार कैफे चलोगे? कुछ खाकर आते हैं।" मैंने कहा ठीक है चलो। वैसे मैं खाली पीरियड मे प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करता था कॉमन रूम में बैठकर। सामने मार्केट में सीढ़ियां उतर कर एक कैफे था ।अक्सर सारे लड़के लड़कियां वही बैठते थे बहुत ही अच्छा कैफे था या यूँ कह लो चहल-पहल भरी मार्केट का एक कोना। सीढ़ी उतरकर होने से आने जाने वालों की नजर भी एकदम से नहीं पड़ती थी । हम जाकर बैठे ही थे कि देखा सामने से मिताली अपनी सहेली के साथ आ रही है। कैफे भरा हुआ था। हमारी टेबल पर भी एक ही कुर्सी खाली थी। तभी हर्ष बोला मिताली आप यहां बैठो। मैं अनु के साथ उधर बैठ जाता हूं। अनु मतलब अनुप्रिया। मिताली की सहेली। वह हर्ष को बहुत पसंद करती है और हर्ष उसे। आज तो कुदरत मेहरबान थी मुझ पर । जिस स्थिति की मात्र कल्पना ही करता था, वह जिसकी यादों में मैं खोया रहता था, वह आज बिल्कुल मेरे पास बैठी थी मुखर हो उठीं थी। मिताली ने पूछा, "आप क्या लेंगे?" बड़ी मुश्किल से बोल पाया, "आप क्या लेंगीं? बताओ यहां की क्या चीज पसंद है ?" वह हंसी और बोली," मैंने तो आपसे पूछा था।" जी में तो आया कह दूं तुम पसंद हो और बहुत पसंद हो। तब वह बोली,"टू कार्न सूप प्लीज।" इस मुलाकात ने तो मेरे दिल की उमंगों को हवा दे दी थी ।अब हम अक्सर मिलने लगे थे। एक दूसरे के बारे में जानने भी लगे थे। मैंने बताया मैं पढ़ाई के साथ -साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी कर रहा हूं। समय बीत रहा था। परीक्षाएं सर पर आ गई थी ।मैं उसकी काफी मदद कर देता था। मैंने तो मन में कुछ और ही ठाना था। दिल ने कहा अपना प्यार चाहते हो तो कहीं अच्छा सेटल हो जाओ तो मिताली को जीवनसाथी के रूप में पाने में कठिनाई नहीं होगी। अभी तक मैंने अपने मनोभावों को किसी को क्या मिताली तक को नहीं बताया था। हम रोज ही मिलते थे बात करते थे काफी समय बिताते थे पर न मैंने उससे दिल की बात कही न उसने। मैं यह महसूस तो करता था कि मेरे ना मिलने पर बेचैन तो वह भी होती है आग दोनों तरफा थी पर शाब्दिक रूप से स्वीकारा किसी ने भी नहीं था।
परीक्षाएं समाप्त हो गई थी मैं हमेशा की तरह बहुत अच्छे अंकों के साथ प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ था और मिताली भी। घर में मम्मी और पापा जी भी बहुत खुश हुए मेरा आई ए एस की परीक्षा का रिजल्ट भी आने वाला था। मन में उलझन बढ़ती जा रही थी।। घर में मैंने किसी को कुछ नहीं बताया था ।परिणाम आ गया। मैंने आई ए एस की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी। घर में खुशी का माहौल था मम्मी तो सभी से बधाई लेकर सभी का मुंह मीठा करवा रहीं थीं। मैंने बाइक उठाई मम्मी से कहा, "मम्मी , अभी हर्ष के पास से होकर आता हूं। उस शाम मैंने पहली बार मिताली को फोन किया था। शायद वह भी मेरे फोन का ही इंतजार कर रही थी। संवाद मौन था और भाव मुखर। मैंने सिर्फ इतना ही पूछा," क्या कैफे आ सकती हो?"उसने हामी भर दी। मैं कैफ़े पहुंच गया वह भी आ गई। हल्के पीले रंग का सूट पहने ,खुले बाल, सांचे में ढाला बदन... नजर ही नहीं हटती। हल्के पीले रंग के ही बड़े से ईयररिंग। पेंसिल हील की सैंडल पहने सीढ़ियों से नीचे आ रही थी लग रहा था जैसे सीधे दिल में ही उतरती जा रही हो ।मैं एक टक देखता ही जा रहा था। आज तो वह मुझे बिल्कुल अपनी साकार कल्पना ही लग रही थी। वह बोली,"ऐसे क्या देख रहे हो?" मैंने कहा तुमसे कुछ कहना चाहता हूं। "तो कहो" वह बोली। और मैं कुछ नहीं कह पाया फिर वही झिझक कि वह क्या सोचेगी मेरे बारे में पर परीक्षा के परिणाम ने आत्मविश्वास बढ़ा दिया था। सोच कर ही आया था कि कह दूंगा हाले दिल जो होगा देखा जाएगा। मैंने उसे अपना रिजल्ट बताया वह बहुत खुश हुई ,पर वह भी तो मुझसे कुछ और भी सुनना चाहती थी। आज मैंने उसके हाथ पर हाथ रख कर कहा," मिताली मैं तुमको बहुत चाहता हूं ।आज तक अपनी चाहत का इजहार नहीं कर पाया क्या तुम मुझे इस लायक समझती हो।" वह मुस्कुरा दी और अपना दूसरा हाथ मेरे हाथ के ऊपर रख दिया। मेरी तो मानो दुनिया ही बदल गई थी। एक सिरहन सी दौड़ गई थी पूरे शरीर में। नसों में रक्त संचार बढ़ गया था। जिसे मैंने इतना चाहा था क्या वह बस इतने ही शब्दों की दूरी पर थी?? पहले क्यों नहीं यह दूरी तय कर पाया मैं?? पर हर चीज का समय होता है आज की बात ही अलग थी। एक से बढ़कर एक खुशी मिल रही थी। हाथ पकड़े हम काफी देर तक बैठे रहे। मन में दृढ़ निश्चय कर लिया था कुछ भी हो जीवन भर यह हाथ थाम कर रखूंगा। हम दोनों ने घर में बताने का निश्चय कर लिया। मेरे मम्मी पापा को और उसके भी घर वालों को इस रिश्ते से कोई आपत्ति नहीं थी। शादी तय हो गई थी हमारी ।हम अक्सर उस कैफे में मिलते थे।
आज हमारी शादी को 20 वर्ष हो गए हैं। मेरा तबादला मेरे ही शहर में हो गया है वह कैफे अभी भी वहां है और बड़ा और भव्य हो गया है। मिताली भी जॉब करती है आज विवाह की वर्षगांठ के अवसर पर हम वही मिलेंगे। मैं मिताली का इंतजार कर रहा हूं वह ऑफिस से आ ही रही होगी। इसी कैफे से ही तो मेरी खुशनुमा जिंदगी की शुरुआत हुई थी।
मिताली आज भी उतनी ही खूबसूरत लगती है सीढ़ियों से सीधे दिल में ऐसे उतर रही थी जैसे आज से 20 साल पहले उतरी थी। पास आकर बैठ गई । तभी मिताली का फोन बज उठा। रोहन का फोन था । पूछ रहा था, "मम्मी,क्या आप और डैड वहां पहुंच गए हैं ? मैं भी बस 15 मिनट में पहुंच रहा हूं।"फोन कट गया। मिताली मुस्कुरा के मेरी तरफ देख रही थी।
रोहन आ गया था बोला मम्मी मेरी एक दोस्त है सुप्रिया। उसको बुला लूं वह भी आप को विश करना चाहती है । मिताली ने मेरी तरफ देखा मेरे हां कहने पर रोहन से कहा,," हां बुला लो।"
रोहन फोन पर सुप्रिया से कह रहा था आ जाओ ,"आज अपने मॉम डैड से मिलवाता हूं।"अरे वही अपने वाले कैफे में आना।"

