गांठ
गांठ
दोनों हाथों में सामान पकड़े मैं घर आया और आते ही बेटी को आवाज दी, अरे बेटा आयुषी ! जरा सामान रखने में मदद करो। हंसती हुई आयुषी दौड़ते हुए आकर मेरे पास खड़ी हो गई। पापा यह पॉलिथीन तो बहुत भारी है। मैंने कहा, "हां , बेटा उस में आटा है धीरे से गांठ खोलना नहीं तो फैल जाएगा। वह गांठ खोलने की कोशिश करने लगी और बोली, पापा जी देखिए गांठ तो खुल ही नहीं रही है । मैंने देखा वजन के कारण गांठ खिंच गई थी। मैंने आयुषी को पास बैठाया और पॉलिथीन के सिरों को उमेठना शुरू किया। आयुषी आश्चर्य से देख रही थी। उमेठने से सिरा पतला हो गया और गांठ आसानी से खुल गई। यह देखकर वह खुश हो गई। मैंने उसे समझाया जीवन भी ठीक इसी तरह है जब तक हम समस्याओं को बड़ा समझेंगे, हम उन से घिरे रहेंगे और जिस दिन हम उनसे परेशान न हो उनको हल करने के लिए उन से जूझने लगेंगे तो उनकी गांठ स्वयं ही खुल जाएगी।
