खाना
खाना


केशव के घर में सब इधर से उधर भाग दौड़ कर रहे थे। चारों तरफ चहल पहल थी। रसोई में आटा गूंथ रही केशव की दादी की आवाज आई- “अरे केशी, जरा ऊपर वाली दुछत्ती बंद कर दियो। मगज से बिल्कुल निकल गया।”
उधर से केशव की माँ की आवाज आई- “चिंता मत करो अम्मा, इनसे कह दिया था। बंद कर दिया होगा इन्होंने।”
इधर से अम्मा बोली- “अच्छा देख तो आटा कम लग रहा है मुझे तो। थोड़ा और गूंथ लू क्या?
केशव की माँ रसोई में आती है। आटे को देखते हुए बोली- “अम्मा इतना बहुत है। इससे ज्यादा कर भी नही सकते। अरे केशव सब्जी पैक कर दे और खाना बांटने वालो को फोन भी कर दे। जब तक वे लोग आएंगे, तब तक रोटियां भी बन जाएंगी।
केशव जो अब तक चुपचाप बैठा था, बोला- “कर दिया माँ। बस फोन करना बाकी हैं। अभी किए देता हूँ।
आधे घंटे बाद चार टिफिन तैयार थे लोगों की भूख तृप्त करने के लिए।