कड़वा सच
कड़वा सच
एक मध्यम उम्र की संभ्रांत महिला बैंगलोर के अपोलो हॉस्पिटल में आपरेशन थियेटर के बाहर बड़ी बैचेनी से इधर उधर घूम रही थी। उसकी आँखें नम थी। शायद पैरों में दर्द की वजह से ठीक से चल भी नहीं पा रही थी। मैं भी आपरेशन थियेटर के बाहर बैठी भगवान का स्मरण कर रही थी क्योंकि अंदर मेरे पति की हार्ट सर्जरी हो रही थी।
एकाएक वह महिला मेरे पास बैठकर जोर जोर से रोने लगी। मैंने उन्हें दिलासा देते हुए पूछा आपका कौन एडमिट है तो रोते रोते उन्होंने बताया कि मेरे पति को गले का कैंसर था।कीमोथेरेपी के बाद आराम भी होने लगा था। पर उन्होंने सिगरेट पीना नहीं छोड़ा इसलिए उनके फेफड़े भी रोगग्रस्त हो गए हैं।आज जब मैं उनको चैकउप के लिए लाई तो डॉक्टर गिरीश ने बताया कि यह उनकी अंतिम स्टेज है आप जितना जल्दी हो सके अपने नज़दीकी लोगों को बुला लीजिए। कभी भी कुछ भी हो सकता है। अब मैं क्या करूँ दोनों बच्चे बाहर रहते हैं बेटा बोस्टन में है और बेटी कनाडा में रहती है। दोनों को फोन द्वारा सारी बात बता दी है पर दोनों को ही पहुंचने में तीन से चार दिन लग सकते हैं। अब मैं अकेली औरत क्या करूँ कैसे करूँ कुछ समझ नहीं आ रहा है। अभी डॉक्टर कह रह है कि आपके पास मुश्किल से कुछ घंटों का ही समय है। आज मुझे समझ आ रहा है कि सच कितना कड़वा होता है। एक समय था जब मैं सबको बड़े गर्व से कहती थी कि मेरा बेटा अमेरिका में है और बेटी कनाडा में है। जबकि सभी मित्र आदि कहते थे कि बुढ़ापे में बच्चों को अपने आस पास ही रखना चाहिए। तब मुझे उन सबकी बातें बुरी लगती थी। ऐसा लगता था कि शायद यह लोग मुझसे ईर्ष्या करते हैं। आज रह- रह कर उनकी बातें याद आती हैं। उन्होंने ने बताया कि उनका घर बैंगलोर से लगभग दो सौ किलोमीटर दूर एक छोटे से शहर में है । मैं क्या करूँ मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है। तभी उनका भाई आ गया और वह उसके गले लगकर जोर जोर से रोने लगी। भाई ने तसल्ली दी। मैं भी लगातार हनुमान चालीसा पढ़कर भगवान से सबकी रक्षा के लिए प्रार्थना कर रही थी। मुझे भी अपने बच्चों के साथ बैठे हुए छह घंटे हो गए थे। तभी डॉ सत्याकी ने कहा कि मिस्टर गुप्ता इज ऑल राइट यू कैन सी। मैं अपने पति को आई. सी. यू देखने जा रही थी तभी डॉक्टर वागीश उस महिला को दूसरी तरफ के आई. सी. यू में बुलाकर ले गए।
थोड़ी देर जब मैं बाहर आई तब वह भी बाहर अपने बच्चों को याद करके रो रही थी। उनके पति की मृत्यु हो चुकी थी।
उनका भाई साथ में था वह सबको फोन लगा रहा था। उन्होंने बताया दोनों बच्चे परसों सुबह पहुंचेंगे। वह लोग पिता को नहीं मिल सकेगें।
मैंने उन्हें गले लगाकर सांत्वना दी। आज उन्हें कड़वे सच का अहसास हो रहा था कि काश मैं अपने बच्चों को विदेशों में न भेजती। मेरे जीवन का सहारा मेरे साथ होता। दुख की घड़ी में, मैं अकेली न होती। यह सच बहुत कड़वा है पर यह सच है कि आज हम सब बच्चों को विदेश भेज कर बहुत गर्व महसूस करते हैं और अंत समय पछताते हैं। इससे सीख लेकर हम सबको अपने बच्चों को अपने पास अपने भारत देश में रखना चाहिए।
