काश मैं कह पाती
काश मैं कह पाती
मन से मन की बात न कह पाए,साजन तुम तैयार हो गए जाने को ---------
हमारे जीवन में कई ऐसी बातें होती हैं ,जो अनकही रह जाती है और फिर जीवन के अंत समय तक एक छटपटाहट सी रहती है कि यदि मैं यह कह देती तो आज पश्चाताप नहीं होता,क्यों ना कह सके "वो" बात जो वह हमसे चाहते थे ? जीते जी मौत के समान जीवन हो जाता है।
और यह कटु सत्य अंतिम समय में चित्रपट की तरह उस व्यक्ति की आंखों केउनको सामने जरूर घूमता है। और उसे ज्ञात होता है कि उसने जीवन में क्या खोया क्या पाया काश वो यह कह पाता-यही बात उसे यह रह कर उसे पश्चाताप की। अग्नि में जलाती रहती है ।और यही पश्चाताप की अग्नि आज यह रह कर जला रही है क्यों यह मैं नहीं बोल पाई ? अपने प्रिय को जो मेरे साथ दिन रात रहते थे ,हर कदम मेरे हमसफ़र रहे थे ,हम आपस में बहुत प्यार करते थे।पर एक वाक्य वो भी इतना छोटा सा मैं जीवन भर लाख कोशिश करने पर भी उनको ना कह पाई ,और" वो" मेरा एक वाक्य सुनने को तरसते रहे ।शायद शर्म या झिझक,रुढिवादिता मुझसे यह वाक्य ना कहला पाती थी ।की बार सोचा कि आज "मैं" जरुर बोलूंगी उनसे कि "मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूं" पर शादी के 40 साल निकल गए मैं नहीं बोल पाई । आज मैं तड़प रही हूं कि मैं क्यों नहीं उन्हें बोल सकी ,एक छटपटाहट हर समय रहती है , ओंठो तक शब्द आकर रूक जाते थे जबकि "वो" हर बार मुझे यह कहते थे "रति मैं तुम्हें बहुत चाहता हूं,प्यार करता हूं " और प्रत्युत्तर भी चाहते थे ,पर वही एक झिझक मुझे रोक लेती थी हर समय ,मेरे हृदय में बहुत प्यार था उनके लिए ,त्याग था,मैं। अपना सर्वस्व उनके न्यौछावर करने को तैयार थी ,पर बस यही एक शब्द लाख कोशिश करने के बाद भी उन्हें ना बोल पाई ।
अचानक मैं बीमार पड़ गई । बहुत तबीयत मेरी खराब हो गई,आपरेशन हुआ,और अस्पताल में पड़ी मै सोचती रही कि आज मैं बिमार हूं,यदि मैं मर गई तो मेरे मन में यह बात यह जावेगी कि " मैं तुम्हें बहुत प्यार करती हूं" जज़्बात मन में उमढ़ने लगे,मन की बात कहने। को मैं बैचेन हो गई,मैंने सोचा हंस अब और नहीं,मैं जरूर जब अब उनसे मिलूंगी तो पहला वाक्य यही मेरा होगा "मैं तुम्हें बहुत प्यार करती हूं'मैऐ नहीं रह सकती तुम्हारे न बिना ।पर मेरी बात मेरे मन में ही रह गई,मैं ना कह सकी उनको किंग " दिनेश मैं तुम्हें बहुत प्यार करती हूं" शायद ईश्वर को मेरी खुशी मंजूर ना थी -जब मन से मन की बात कहने तैयार हो गई तो वे "मुत्युशैय्या" पर चिरनिंद्रा में सोते थे " मैं चीत्कार उठी मैंने मन ही मन उनकी देह छूकर कहा " मैं तुम्हें ही बहुत प्यार करती हूं"
पर मैं यह पहले कह देती तो आज इस तरह पश्चाताप की अग्नि में नहीं जलती , तड़पती नहीं ,पर ना कह सकी क्यों नहीं कह सकी ? मेरे जज़्बात सदा के लिए दफन हो गए उनकी चिंता की मांग में मेरी आवाज़ एक छटपटाहट बन रही गई, मेरी आत्मा को सुकून अंत समय तक नहीं मिलेगा,मेरी अकुलाहट, मेरी बैचैनी चीख चीख कर मुझसे कहती हैं "काश मैं उनसे कह पाती कि "तुमसे बहुत प्यार करती हूं."