बुढ़ापे की सनक

बुढ़ापे की सनक

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" बुढा़पा" सम्पूर्ण जीवन का 'निचोड़' होता है ।पर यह एक कटु सत्य है । शिशु ,युवा,प्रौढ़ फिर वृद्धावस्था यही जीवन का क्रम है। शाश्र्वत है जिसे हम झुठला नहीं सकते । शैशवास्था में व्यक्ति बंदर के समान उछलता कूदता रहता है ,युवावस्था में वह घोड़ें के समान बलिष्ठ व तीव्र रफ्तार वाला रहता है प्रोढा़वस्था में समस्याओं को जूझते हुए‌ बढ़ता एक गद्देह के समान जीवन के सारे बोझों को अपने ऊपर लेता है एक अपना कर्तव्य समझ कर और फिर ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌धीरे धीरे बुढ़ापे की और बढ़ता है कब जीवन के सतरंगी पल खत्म हुए और वो हताश सा होकर बैठ गया अपने को अभिशप्त समझकर जिसे ना चाहते हुए भी उसे भोगना पड़ेगा।

‌ ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌ बुढ़ापे में व्यक्ति गुमराह हो जाते हैं दिशाभ्रम होने के कारण वे प्रायः लक्ष्य से भटक भी जाते हैं , वेदनाएं उन्हें घेर लेती हैं ,उनकी सोच में बदलाव आ जाता है ।

मन उनका पीड़ित सा रहता है ,यह आयु का सबसे खराब न संवेदनशील दौर रहता है ,व्यक्ति सोचता रहता है कि अब करता होगा ?वह अपने को दुनिया ंनका सबसे बेकार प्राणी मानता है, उसकी अब करता जरुरत है घर व‌घर के लोगों को ? पर एक' मृगतृष्णा ' उसे जीने की चाह ना चाहते हुए भी उसके दिल में

रहती है।

व्यक्ति का मार्धुय लुप्त हो जाता है। नैराश्यता से घिरा रहता है ।कभी कभी वह स्वार्थी भी हो जाता है।जाने अनजाने ही वह "सनकी" कहलाता है ।एकान्तवासी भी हो जाता‌ है ।अपनी सारीयोग्यताओ से किनारा कर लेता है। कहां युवावस्था में तप्त सूरज का गोला दिखाई देता था वहीं। ठंडा बर्फिला गोला हो पडा़ रहता‌ है ।संज्ञाशून्य सा बैठा चिड़चिड़ा हो

जाता है ।

हांलाकी बुढ़ापा कोई 'बीमारी 'नहीं पर वह अपने को बीमार‌ समझता है,यही कारण होता है कि विभिन्न बिमारियां उसे

घेर लेती है ।उसे बीमारी को' कर्मफल' समझ सहजता से लेना चाहिए ।क्रोध ,चिंता तनाव से दूर रहना चाहिए।एक सहज खुशनुमा जीवन बिताना चाहिए।क्योंकी वृध्द परिवार की "जड़" है " नींव" है और यही परिवार को भी मानना चाहिए । वृद्धावस्था को उसे भी वरदान मानना चाहिए,तभी वह खुशहाल

यह सकता‌है ।

दुनियां में ऐसे बहुत से व्यक्ति हुए हैं जो सनकी नहीं हुए पर कुछ नया करने की सनक उनमें जरूर रही, एक जुनून ‌,एक उत्साह ने उनका नाम इतिहास में सदा के लिये अमिट कर दिया है।

बुढ़ापा "कहर" नहीं एक मधु शक्ति बौछार है। एक संकल्प के साथ वे प्रसिद्ध लोग आगे बढ़ें।और यही उत्साह,योग्यता, अनुभव,दृढ़ता, जीवन से लगाव ने उनको कहीं से कहीं पहुंचा दिया है।बुढ़ापे में व्यक्ति "सनकी" क्यों हो जाता है उसका कारण है अपने अनुभव के आधार पे जो वे करना चाहते हैं वे आज की पीढ़ी समझ नहीं पाती है उनमें और इनमें एक 'गहरा अंतराल' है सोच व क्रियाशैली में और‌यही "जनरेशन गैप" उनको सनकी समझ बैठता है पर जब उन्हें समझ आता है तब वह उनके ही अनुगामी भी बन जाते हैं।

कुछ वे महान हस्तियां जिन्होने अपने जीवन के 60 या 100 बसंत उम्र के बीच जाने पर कमाल कर शौहरत को हासिल किया करता यह' सनक' थी या उन‌का आत्मविश्वास ,,,विदेशी महिला "डेम जूडी डेंच" ने 60 वर्ष के बाद एक' मूवी' बनाई और प्रसिद्ध हो गई।

‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌"" कीनिया की प्रिसिला सीटेनी ने90 वर्ष की आयु में प्रायमरी स्कूल मैं पढ़ने के लिए एडमीशन लिया और शीक्षाक्षेत्र में नाम किया ।


‌‌‌फ्यूजासिहं ,ने 100 वर्ष की आयु में"मैराथन" मैं दौड़ कर नाम कमाया।


भारत की कोयम्बटूर निवासी "योगा अम्मा नानामल ने जो आज 98 वर्ष की है योग प्रशिक्षण देती है और107 साल तक जीवित रहेगी दावा करती है ।

‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌इस के अलावा बहुत से बुर्जग है ऐसे जो है,,,, ग्रेडमा मोसेज़ जेम्स पर्किनसन फेक एमकोर्ट कार्रनल सेन्टर्डस कार्लन लेगर फील्ड केथरन‌ जूस्टेन

अब आप इन सबके कार्यो को एक "सनक" कहे तो भी ठीक है या बुढ़ापे के आत्मविश्वास की" सनक " तो भी‌ ये एक आदरणीय ही है।



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