@ Aaradhyaa

Inspirational

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कामाक्षी

कामाक्षी

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उस दिन रंजीत से मुँह लगाकर, उसके अश्लील फिकरे का विरोध करके जैसे कामाक्षी ने अपने दुर्भाग्य को ही न्यौत आई थी।कोलेज़ के ट्रस्टी का बेटा था रंजीत। कोलेज़ में कोई भी सुन्दर लड़की आती वह रंजीत की नज़र से बच जाए ऐसा हो नहीं सकता था। अगर कामाक्षी ने रंजीत से बहस ना की होती और राघव दिवाली में अपने घर ना गया होता तो कदाचित कामाक्षी बच सकती थी। पर विधि के लिखे को कौन टाल सकता है भला। इस बार राघव का घर जाना बहुत ज़रूरी था क्योंकि उसकी छोटी बहन शिउली का रिश्ता पक्का होने जा रहा था। आखिर इसी शिउली की शादी का इंतजार तो था राघव और कामाक्षी दोनों को तभी वह अपनी शादी की बात कर सकता था। वैसे देखा जाए तो राघव का कोर्स पूरा हो चुका था इस साल कामाक्षी की भी पढ़ाई पूरी हो जाती फिर राघव यूनिवर्सिटी में लग जाता और कामाक्षी कुछ दिन ससुराल में रहकर सबका दिल जितने के बहाने से कुछ महीने रहती फिर अपना शोध कार्य पूरा करती। अभी तक सब उनके सोचे अनुसार ही चल रहा था।


कामाक्षी ठाकुर परिवार की पहली बेटी थी जो इतना पढ़ीलिखी थी और शहर में उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही करती थी।और इधर वैसे त्रिभुवन जी का छोटा बेटा राघव शुरू से ही पढ़ाई में अच्छा था और स्वभाव से थोड़ा बागी किस्म का। तभी दसवीं की पढ़ाई के बाद गाँव में अपनी ज़मींदारी संभालने की बजाए शहर जाकर पढ़ाई करने की ज़िद पर तब तक अड़ा रहा जब तक सबने उसे आगे की पढ़ाई के लिए अनुमति ना दे दी गई ।इनकी पहली मुलाक़ात का किस्सा भी एकदम अजीब है... कुछ कुछ फ़िल्मी टाइप।किशनगंज से लगा हुआ था हरिहरगंज। वहीं के हाइस्कूल से पढ़कर आई थी कामाक्षी जो अपनी तीक्ष्ण बुद्धि और तीखे नाक नक्श की वजह से सबकी नज़र में आकर्षण का केंद्र बन जाती थी। सबसे ज़्यादा आकर्षित करती थी कामाक्षी की आँखें। ऐसी काली घनेरी पुतलियों से सज़ी सुन्दर आँखें मृग छौने (हिरण का चंचल बच्चा) की याद दिला देते थे। ऐसे मनोहारी व्यक्तित्व के जादू से राघव भी अछूता नहीं रह पाया था। सिर्फ एक वाक्य और अपनी गहरी नज़र से वह जादूगरनी राघव पर ऐसा जादू कर गई थी कि राघव का मन उससे बार बार मिलने और बात करने को मचलता रहता था।राघव और कामाक्षी में एक बार जो दोस्ती हुई तो फिर बातों और मिलने का सिलसिला अब लगभग हर रोज़ होने लगा था!उस दिन इतना ही तो पूछा था कामाक्षी ने कि,"आपने कोलेज़ के पुस्तकालय से शरतचंद जी की जो किताब ली है उसे लौटने से पहले मुझे बता दीजियेगा ताकि मैं आपके बाद उसे अपने नाम से इशू करा सकूँ वरना उसे कोई और ले जायेगा!"

इतनी मधुर आवाज़ जैसे कि कहीं जलतरंग बज उठा हो। सुनकर राघव का मन किया कि,अभी उसे किताब तो क्या... अपना दिल ही निकालकर दे दे।राघव बोला,"आप इसे पढ़ लीजिये मैं तो इस किताब कोई टाइमपास के लिए लाइब्रेरी से उठा लाया था!"इस पर अपनी बड़ी बड़ी आँखें नचाते हुए कामाक्षी बोली,"आप यहाँ पढ़ाई करने आए हैं। आपको अपना पूरा समय अपनी पढ़ाई को समर्पित करनी चाहिए। वरना आपको इम्तिहान के समय पछताना पड़ सकता है!"सुनकर राघव को समझ आ गया कि कामाक्षी की ज़िन्दगी में पढ़ाई का कितना महत्व है।किताबों के आदान प्रदान से शुरू हुई उनकी दोस्ती चल निकली थी।धीरे धीरे उनमें प्रेम के बीज़ भी प्रसफुटित होने लगे थे।कभी कभी राघव कामाक्षी को चिढ़ाते हुए कहता,"वो तो अच्छा हुआ कि तुम मुझे कॉलेज के अंतिम वर्ष में मिली वरना तुम्हारे आकर्षण में तो मैं फेल ही हो जाता!"सुनकर कामाक्षी कुछ नहीं बोलती सिर्फ अपनी बड़ी बड़ी आँखें शर्म से झुका लेती और राघव उसके लाज से आरक्त (शर्म से लाल होना) कपोलों को निहारता रह जाता।उन्हीं दिनों कोलेज़ के ट्रस्टी का बेटा रंजीत अपने छोटे भाई केतन जो कोलेज़ यूनियन के प्रेसिडेंट के पदके लिए उम्मीदवार के तौर पर खड़ा हुआ था, उसकी मदद करने जब तब आने लगा था। उसकी नज़र भी कामाक्षी पर पड़ी थी तो अपनी मनचली हरकतों के वश में आकर कामाक्षी को छेड़ते हुए एक जुमला कसा,"ओये होये, अब तो कॉलेज में बहार ही बहार है,ये मासुम कली कौन है जिसके चेहरे पर इतना निखार है!"यह सुनकर कामाक्षी का चेहरा गुस्से से तमतमा गया। उसने कहा,

"आप मुझे ऐसे नहीं बोल सकते!""तो तम्हीं बता दो जानेमन तुमसे कैसे बात करते हैँ?"यह सुनकर अपर्णा को गुस्सा आने ही वाला था कि तभी राघव आकर बीच बचाव करके उसे वहाँ से दूर ले गया और समझाते हुए बोला कि,"रंजीत से दूर ही रहना अक्सर बताते हैँ कि ये थोड़ा सनकी है। और अमीर बाप की बिगड़ी हुई औलाद भी।उसके बाद कामाक्षी समझ गई कि उसे रंजीत से दूर रहने की पूरी कोशिश करनी होगी।इधर दिवाली का समय आ रहा था। भट्टचार्य मैम से नोट्स लेकर अगले दिन घर के लिए रवाना होनेवाली थी। कुल मिलाकर राघव के जाने के तीसरे दिन ही कामाक्षी भी अपने घर दिवाली मनाने जानेवाली थी।उधर राघव अपने घर गया इधर रंजीत अपने कुछ गुंडे दोस्तों के संग कामाक्षी के कोलेज़ से हॉस्टल जाने के रास्ते में उसे उठा लाया था। उस दिन कोलेज़ लइब्रेरी में देर तक नोट्स बनाती रही थी कामाक्षी और समय का ध्यान ही नहीं रहा था। साढ़े पाँच बजे वह कॉलेज से निकली वहाँ से उसका पी. जी. ज़्यादा दूर नहीं था और मौसम भी अच्छा था सो पैदल ही निकल पड़ी थी।राघव की यादों में खोई कामाक्षी ने अचानक देखा एक कैब उसके पास आकर रुकी और चार हाथों ने उसका हाथ पकड़कर उसे गाड़ी के अंदर खींच लिया। एक ने कसकर उसका मुँह दबाया हुआ था। कैब सूनी सड़क पर तेज़ी से भागी जा रही थी।यह रास्ता शाम होते ही थोड़ा सुनसान हो जाता था कामाक्षी ने चीखने की कोशिश की तो किसी ने उसके सर पर तेज़ चोट की और वह दर्द से बिलबिला उठी। उसने स्पष्ट देखा कैब में सामने रंजीत बैठा हुआ था। उसका फोन किसीने रास्ते में ही फेंक दिया था। एक सुनसान जगह पर गाड़ी रोककर वह चारों निरीह कामाक्षी पर जैसे टूट पड़े। रंजीत बार बार उस दिन कॉलेज में हुई घटना का ज़िक्र कर रहा था जिस वजह से उसमें बदले की भावना आई थी। कामाक्षी ने खुद को बचाने में अपनी पूरी शक्ति लगा दी थी। उसने तबतक विरोध किया जब तक वह बेहोश नहीं हो गई। आखिर चार हट्टे कट्टे मुस्टंडो से कब तक लड़ती।

पर बेहोश होते होते भी उसने उनमें से तीन के चेहरे देख लिए थे। ये वही तीन लड़के थे जो रंजीत के आगे पीछे घूमा करते थे।जब कामाक्षी को होश आया तो उसने खुद को कोलेज़ और हॉस्टल के बीच के रास्ते में गिरा हुआ पाया। पहले तो उसे कुछ समझ नहीं आया कि वह कहाँ है। थोड़ी देर बाद चैतन्य हुई तो उसे पता चला उसका सर्वस्व लुट चुका है। हालाँकि अभी रात ज़्यादा नहीं हुई थी पर कामाक्षी की ज़िन्दगी में तो जैसे रात की कालिमा आकर ठहर सी गई थी।वापस हॉस्टल आकर भी वह पूरे घटनाक्रम को याद कर रही थी। तो उसे कुछ नहीं याद आ रहा था। सिवाय इसके कि जब वह उन चारों से बचने के लिए हाथ पाँव मार रही थी तब रंजीत ने ज़बरदस्ती उसे पानी पिलाया था। शायद उसमें बेहोशी की दवा मिली हो। इसे संजोग कहें या कुसंजोग पर उस पिछले दो दिनों से कामाक्षी की रुममेट कांता भी अपने घर गई हुई थी। इसलिए कमरे में एकांत पाते ही कामाक्षी दर्द और अपमान के अतिरेक से जैसे पागल हो गई। कभी मन करता पुलिस में जाकर शिकायत कर दे फिर बदनामी का सोचकर रुक जाती, कभी जी करता आत्महत्या कर ले फिर अगले ही पल अपने घरवालों और राघव का ख्याल आ जाता था।घरवाले कामाक्षी को फोन पर फोन किये जा रहे थे कि वह दिवाली के लिए हॉस्टल से कब निकल रही है। इधर राघव ने भी उसे सैकड़ों फोन किये होंगे पर कामाक्षी ने कोई जवाब ही नहीं दिया।उसने अपने आपको एकदम कमरे में बंद कर लिया था। उस घटना के बाद लइब्रेरी भी नहीं गई।कॉलेज तो बंद था ही।

इधर बहन की सगाई होने के बाद राघव जब घर से निकला तब वह कामाक्षी से मिलने के लिए बहुत खुश था क्योंकि वह अपने घरवालों को अपने और कामाक्षी के रिश्ते के लिए मना चुका था।वापस आया तो पता चला कामाक्षी तीन चार दिनों से ना लाइब्रेरी आई थी और ना कोलेज़ आई थी। उसका फोन भी बंद आ रहा था।राघव कामाक्षी की इस हरकत की वजह जानना चाहता था इसलिए वह उसके हॉस्टल गया और विजिटिंग रूम में उसे मिलने को बुलाया। kaksbiपहले तो उसे देखकर चौंक गई पर कुछ बोली नहीं। राघव बार बार उससे उसकी चुप्पी और उदासी की वजह पूछता रहा पर कामाक्षी सिर्फ बड़ी बड़ी आँखों से उसे देखती मानो कुछ कहना चाहती हो पर कुछ कहती नहीं।आखिर... कामाक्षी की चुप्पी से हारकर राघव ने कहा,"मैं हमदोनों के लिए एक खुशखबरी लाया हूँ।पता है घरवाले मेरे और तुम्हारे रिश्ते के लिए मान गए हैँ। बस अब तो शहनाई बजनेवाली है और तुम दुल्हन बननेवाली हो!"इतना सुनते ही कामाक्षी जोर जोर से रोने लगी। उसका रोना राघव को समझ नहीं आ रहा था। हिचकियों में रोते रोते ही उसने रंजीत और उसके गुंडे दोस्तों की सारी कारस्तानी बता दी। सुनकर राघव का खून खौल उठा। उसका मन किया अभी जाकर उस रंजीत की मार मारकर आंते तक बाहर निकाल दे पर उसने धैर्य से काम लेते पहले पुलिस में रिपोर्ट लिखाई।उसके बाद से चारों बलात्कारियों को सज़ा दिलवाने तक हमेशा साये की तरह कामाक्षी के साथ लगा रहा। शुरु में तो काफ़ी ताने सुनने मिले पर बाद में दोस्तों और कॉलेज के छात्रों ने भी काफ़ी साथ दिया। रंजीत ऐसी हरकत पहले भी कर चुका था पर किसी लड़की की हिम्मत नहीं पड़ी थी विरोध करने की। राघव ने कामाक्षी को हिम्मत दिलाई और हरदम बताता रहा कि इसमें उसका कोई दोष नहीं। गलती रंजीत की है और उसे सज़ा दिलवाना ही होगा।

धीरे धीरे कामाक्षी भी सामान्य होने लगी थी। इस बीच राघव तीन चार बार कामाक्षी के साथ उसके गाँव भी हो आया था। कामाक्षी के पिता का बचपन में देहांत हो चुका था। घर में व्योवृद्ध दादाजी आचार्य उमाशंकर जी थे जिनकी गाँव में बहुत प्रतिष्ठा थी। माँ गायत्री देवी एक बेहद सीधी सादी ईश्वर पर अटूट विश्वास रखनेवाली स्त्री थीं,और उनका विश्वास था कि अब भी पृथ्वी पर देवपुरुष होते हैँ, नहीं तो उनकी पुत्री को राघव जैसा सहचर कैसे मिलता जो सबकुछ जानकर भी सच्चाई का गरल (विष) पीकर भी उसे अपनाने को तैयार था।इसके अलावा कामाक्षी का नटखट छोटा भाई अंगद था जो नवीँ में पढ़ता था। उसके दादाजी जब पहली बार राघव से मिले और पहली ही मुलाक़ात में राघव ने उनके पैर छूकर आशीर्वाद लिए तो उन्होंने तुरंत कह दिया,"बेटा!आज तुझे देखकर अपने दिवंगत बेटे दयाशंकर की याद आ गई। ऐसा ही दिव्य रूप और ऐसे ही विनम्र संस्कार!"एक पल को कामाक्षी भी दद्दा की याद में खो गई। अपनी बारह साल तक की उम्र तक जितनी भी यादें पिता के साथ की थीं सब उसके जेहन में कौँध गई थी। अपने पिता को वह दद्दा कहा करती थी और दद्दा उसे प्यार से गुड़िया बुलाते थे।गाँव के लोगों ने जब दादाजी से यह सुना कि त्रिभुवन ठाकुर के बेटे राघव ठाकुर से उनके गाँव की बेटी का ब्याह तय हुआ है तो सब राघव को पाहुना कहकर बुलाने लगे थे।परस्पर अगाध प्रेम में डूबकर भी राघव और कामाक्षी का मर्यादित प्रेम उनकी सबसे बड़ी ताकत थी जिसके बल पर वह समाज के तानों को भी बर्दाश्त कर पा रहे थे। और एक दूसरे का साथ दे पा रहे थे। यह महज़ आकर्षण नहीं बल्कि अनहद प्रेम था तभी दोनों बिना विचलित हुए अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर थे।

बलात्कारियों के शिनाख्त और सज़ा दिलवाने के बाद जो सबसे मुश्किल काम था...वह था मौजुदा परिस्थिति को जानते हुए घरवालों को कामाक्षी के साथ शादी के लिए दुबारा राज़ी करना। राघव जानता था अभी इस हालात में कोई ससम्मान कामाक्षी को नहीं अपनाएगा। अतः दोनों ने अपना करियर बनाने में कुछ साल और लगा दिये उसके लिए। पहले दोनों अपने पैरों पर खड़े हुए। कामाक्षी ने बी. एड. किया और उसको एक सरकारी स्कूल में नौकरी मिल गई और राघव को मेडिकल फार्मा का डिप्लोमा कोर्स करने के बाद मेडिकल रिप्रेजेन्टेटिव का पद मिल गया।फिर उचित समय देखकर राघव ने पूरा सच बताते हुए एक बार फिर अपने पिता त्रिभुवन ठाकुर से अपनी और कामाक्षी की शादी की इज़ाज़त माँगी। काफ़ी विरोध हुआ पर राघव का निश्चय अडिग था कि शादी करेगा तो सिर्फ कामाक्षी से।जब शादी की दुबारा मंज़ूरी मिल गई तो राघव को ख़ुशी के साथ अपने परिवार वालों की उत्कृष्ट सोच पर गर्व हुआ जिन्होंने अपने मन में ज़रा सा भी मैल ना रखते हुए कामाक्षी को पूरे सम्मान के साथ अपनाया।सच है... अगर हम किसीको प्रेम करते हैँ तो उसका सम्मान करना आवश्यक है।त्रिभुवन ठाकुर सिर्फ अपने छोटे बेटे से प्रेम ही नहीं करते थे अपितु उसकी इच्छाओं का सम्मान भी करते थे। तभी आज पहली बार इस घर की छोटी बहु कामाक्षी भी पूरे सम्मान के साथ दिवाली पर लक्ष्मी पूजा में सम्मिलित हुई थी।अपने ससुराल में इस सम्मान से आहलादित होकर अपनी आँख मुंदकर कामाक्षी जैसे राघव का धन्यवाद कर रही थी, वह सोच रही थी कि राघव ने उसमें उस हादसे के बाद दुबारा अपनाकर उसमें प्राण भर दिए और आज वह एक प्रतिष्ठित जीवन जी रही है। अपने अंदर की शक्तिपुंज को वह इतनी अच्छी तरह नहीं समझ पाती अगर उसने स्त्री के अस्तित्व की पूर्णता को ना समझा होता।

लक्ष्मी देवी का ध्यान कर उन्हें मन ही मन धन्यवाद करके कामाक्षी ने अपनी आँखें खोली ही थी कि उसके ओज से दिप्त चेहरे और प्रभावशाली आँखों को देखकर बड़ी जेठानी की बेटी शरण्या बोल पड़ी,"माँ देखो, छोटी चाची की आँखें बिल्कुल काली माँ की तरह लग रही हैँ!"वहाँ पंडाल में उपस्थित सभी लोगों की नज़रें अनायास ही कामाक्षी की ओर उठ गई और किसी के मुँह से निकला,"वाह... छोटी बहु तो साक्षात देवी का का रूप हैँ!"सुनकर एक सलज़्ज़ मुस्कान आ गई कामाक्षी के चेहरे पर तभी उसकी नज़र राघव से टकराई,वह बड़े ही प्रेम से अपनी नवोढ़ा पत्नी को निहार रहा था जिसे देखकर कामाक्षी ने अपनी आँखें झुका दी और उसने एक बार फिर माँ लक्ष्मी का दिल से धन्यवाद दिया।"हे माँ भवानी! हर स्त्री में अपनी शक्ति भर दे ताकि उसके साथ कोई बलप्रयोग करके उसके सतीत्व का हरण ना कर सके"आँखें बंद करते हुए कामाक्षी यही प्रार्थना कर रही थी। और उसके मन में आज असंख्य प्रेम के दीपक जल रहे थे। प्रेम में अगर एक दूसरे के लिए मन में सम्मान ना हो तो फिर प्रेम अधूरा रह जाता है। परन्तु राघव और कामाक्षी का प्रेम सम्मान की चादर ओढ़े हुए था इसलिए उनके अनहद प्रेम की मिसालें दी जाती रहीं।(समाप्त


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