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Rameswari Mishra

Abstract Classics Inspirational

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Rameswari Mishra

Abstract Classics Inspirational

जय नन्दलाल की

जय नन्दलाल की

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आज मेरी चप्पल चोरी हो गयी, एक मन्दिर से । रिक्सा भी नहीं मिली,चल कर आ रही थी। कई लोग गुजरे, अपनी अपनी काम के लिये जिन्होंने देखा तक नहीं । फिर इक औरत मिली। वे मन्दिर जा रहीं थीं। पूछा "मन्नत है बेटी?" में हस पड़ी। मुझे देख कर, एक बच्ची, अपनी चप्पल भी उतार कर चली । एक लड़की फर्माल ड्रेस से गुजरी, शायद ऑफिस को देर हो रहीं थीं। मुझे देख कर परेसान भी हुई और एक अजीब तरह की मुह भी बनायी। जैसे उसकी मन की सुन पायी में... "बिना चपल के... भगवान मेरी रक्षा कर ... can't even think." फिर इक बुजुर्ग जा रहे थे, रुक कर पूछे, "बेटी चपल खो गयी क्या? रिक्सा क्यूँ नहीं ले लेती, मेरी चपल रख ले, बाद में लौटा देना।" और इससे पहले कि में कुछ सोचूँ या कहु, अपनी चपल दे कर गायब हो गये ।

वो नयी नहीं थी, पर उस तेज धूप में मुझे बचाने की खातिर काफी थीं। घर जा कर देखी उस में कृष्णा लिखी थी। ऐसी भी कोई जूती कंपनियां होती हैं क्या... सोची एक मिनट के लिए !

बहत सारी बातें आयी मन में... जिंदगी भी एसी ही होती है ना ! हम जब किसी परेसानी से भी खुसी खुसी जुझ ने निकलते हैं, किसीको नहीं पता होता है वजह क्या है। कोई सोचता है हम ये खुसी से कर रहे हैं। कोई हमे नकल करना चाहता बिन मतलब के। कोई हमे देख कर ही परेसान हो जाता है। और कोई मदद कर जाता बिना मांगे भी। हर कोई जो गूजरता है हमारी राह से, हमे उससे कोई लेना देना नहीं होता फिरभी कुछ लोगों को हमसे फर्क पड़ता है। पर हमे मंजिल तक बिना रुके चलना होता है, बिना सोचे क्यूँ कौन क्या कर रहा है। और हर किसीको रस्ते में रुक कर हमे समझाने की जरूरत भी नहीं है। और हम जब सब खुसी से किए जाते हैं, वो खुद हमारी परीक्षा में हमारी मदद करने उतरता है, कभी इंसान,कभी जनवर, कभी पक्षी, कभी किसी एक परिस्थिति या अवसर के रूप में। मुझे याद आयी... कितनी दफा आज तक, उसने मुझे हर मुश्किल से उभारा है !!


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