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Jai Prakash Pandey

Comedy Drama

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Jai Prakash Pandey

Comedy Drama

जन्म और नाम

जन्म और नाम

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दद्दू ने बताया कि गांव के खपरैल मकान की गोबर लिपी खुरदुरी जमीन पर जब तुम रात तीन बजे कहां कहां करते जब जमीन पर उतरे, तो नाइन ने लालटेन की डिम रोशनी में सब्जी काटने की चाकू से नरा काट दिया था और शरीर को उल्टा पुल्टा के नाम ढूंढा था पर शरीर में कहीं भी नाम लिखा नहीं आया था। नाइन को शरीर में ऐसा क्या कुछ दिखा कि उसने नवजात शिशु का नाम 'लड़का' रख दिया। नाम की शुरुआत यहीं से हो गई। जन्म इसी गांव में हुआ शहर से दूर बेहद पिछड़े आदिवासी इलाके में जहां कुपोषण और गरीबी का साम्राज्य था।


सुबह गांव के चौपाल में लड़का होने की बात नाइन के आदमी गंगू नाई ने फैलाई। कुछ दिन बाद मालिश करते हुए नाइन बड़बड़ाई कि कोई के घर में लड़का लड़का आ रहे और जिनको लड़की नहीं चाही उनके घर लड़कियां चली आ रहीं है।

 

दद्दू ने बताया कि मालिश के प्रताप से लड़के के शरीर में चर्बी फैलने लगी तो कोई कहता क्यूट बेबी, कोई कहता वाह रे लल्ला, कोई कहता मुन्ना रे मुन्ना, कोई कहता होनूलुलु... न जाने किस किस नाम से रोज पुकारा गया। दिन में पांच-सात बार नाम बदलते रहे। नाम के मामले में राजा दशरथ के पुत्र बड़े भाग्यवान थे कि जब धरती पर ठुमक के पहली बार चले तो पूरी दुनिया गाने लगी...


"ठुमक चलत रामचन्द्र

बाजत पैजनियां"


इस प्रकार धरती पर पहली बार ठुमक के चलने से उनको स्थायी नाम मिल गया। इधर हमारे गरीब परिवार के अधिकांश बच्चों को स्थायी नाम स्कूल का हेड मास्टर ही मजबूरी में दे पाता है।


जिनका नाम नहीं होता वह इंसान नहीं होता, इसलिए पुराने जमाने में पत्नी अपने पति का नाम नहीं लेती थी, पति को पप्पू के पापा कहके पुकारती थी।


नाम रखने में बड़े चोचले होते हैं, नाइन कुछ नाम लेकर आती है, नानी सौ तरह के नाम भेज देती है, आजा - आजी कुछ और नाम रखना चाहते है, फिर नाम रखने की प्रतियोगिता होती है, यहीं से नाम रखने में ईगो टकराने लगते है, फिर नाम रखने के चक्कर में बाप-महतारी लड़ पड़ते है और इस प्रकार नाम रखने का काम लगातार टलता जाता है। जैसे तैसे लल्ला-मुन्ना, पप्पू-गप्पू जैसे टेंपररी नाम से पांच साल बड़े आराम से निकल जाते है। प्राॅपर नाम नहीं मिलने से लड़का घर बाहर ऊधम मचाना जब चालू कर देता है तब सबको याद आता है कि इस ऊधम मचाने वाले को बिजी कर दो और बिना नाम के ऊधम मचाने वाले को हेड मास्टर के सामने खड़ा कर दिया जाता है। हेड मास्टर उल्टे हाथ से कान पकड़वा देता है बोला, नाम दो साल बढ़ा के लिखूंगा। असली नाम पूछा गया तो कोई नाम याद आया नहीं कह दिया लल्ला नहीं तो मुन्ना... हेड मास्टर नाराज हो गया बोला - स्कूल में ये लल्ला-मुन्ना नहीं चलेगा, कोई परमनेन्ट नाम देना पड़ेगा, ऐसा नाम जिसको रिकार्ड करना पड़ेगा और वहीं नाम भविष्य में समाज, शासन, श्मशान में काम आयेगा।


कोई नाम नहीं सूझा तो दुर्गा मास्साब ने जल्दबाजी में नाम लिख दिया - जय प्रकाश नारायण। बाद में स्कूल की कई मेडमों को इतना बड़ा नाम लिखने में दिक्कत होने लगी तो कुछ ने जय पाण्डेय, कुछ ने प्रकाश पाण्डेय, कुछ ने जय नारायण जैसे अनेक नाम अपनी सुविधानुसार रखके हमारे नाम के साथ खिलवाड़ करते रहे, गजब की दुनिया है कि अपने नाम की रखवाली खुद को करनी पड़ती है नहीं तो लोग अपनी सुविधानुसार नाम की कितने बार ऐसी तैसी कर दें। ऐसे में अपना नाम बचाने के लिए हमारे अंदर जय प्रकाश नारायण पाण्डेय नाम का गुरूर जागने लगा। भले लोगों ने नाम के साथ पर्याप्त टूट-फूट की पर मेट्रिक की मार्कशीट ने नारायण शब्द को खा लिया। पूछताछ पर पता चला कि कम्प्यूटर लम्बा नाम देखकर मचल गया। मचल के फंस गया जब उसने नारायण नाम खा लिया तब कहीं आगे बढ़ा।


कालेज पहुंचे तो स्वीटी मिल गई, स्वीटी को पूरा नाम लेने में दिक्कत हुई तो वो बाद में जेपी... जेपी करने लगी...


शहरों, स्मारक, स्टेशन के नाम परिवर्तन को लेकर कालेज की वाद-विवाद प्रतियोगिता में विवाद की स्थिति पैदा हो गई। राम के नाम पर भी विवाद हो गया। जिस नाम को सामाजिक मान्यता मिल जाती है उसको बदलने से आक्रोश पैदा होता है। पक्ष और विपक्ष में टकराव होता है, इतिहास को खोद कर नये विवाद पैदा किये जाते है। नियति के बदलने से नाम बदलने का जुनून सवार हो जाता है।


नाम बदलने के कई छुपे हुए कारण है कुछ होता - जाता नहीं है तो नई चाल खेली जाती है। वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन में जिस शहर का नाम सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में आ जाता है उन शहरों के नाम बदल के सूची से नाम दूर हो जाता है और यदि अकबर से बदला लेने का मूड बन गया तो इलाहाबाद को प्रयागराज कर दिया जाता है जिससे नाम परिवर्तन करने वाले का इतिहास में नाम दर्ज हो जाता है।


स्वीटी है कि अपनी जिद पर अड़ी है कहती है - नाम-वाम में कुछ नहीं रखा है काम से मतलब है काम करोगे तो नाम होगा। स्वीटी की बात सुनकर किसी ने कहा - 'नाम गुम जाएगा... चेहरा ये बदल जायेगा, मेरी आवाज ही पहचान है...' और यदि आवाज भी खराब हो गई तो आधार तो है आधार से काम चल जाएगा उसमे नाम मिल ही जाएगा। देखो भाई, सीधी सी बात ये है कि नाम में क्या रखा है काम से नाम होता है।


दशरथ के पुत्र राम का नाम उनके काम से हुआ, वे मर्यादा पुरुषोत्तम राम कहलाए, तभी तो सब कहते है...


"राम का नाम सदा मिसरी

सोवत जागत न बिसरी"

   

इधर विपक्ष से गंगू ने वजनदार बात उठायी है उसका कहना है यदि राम का नाम इतना शक्तिशाली है और नाम के जप से सारे काम बन जाते है तो मंदिर बनाने में रोड़े क्यों आते है, जब ज्यादा रोड़े आ रहे है तो राम का नाम बदल देना चाहिए, राम का नाम भगवान कर देना चाहिए और जल्द से भगवान का मंदिर बना लेना चाहिए।


गांव के स्कूल में पहले नंबर पाये तो घर वालों ने शहर भेज दिया पढ़ने के लिए। गरीबी में कालेज की पढ़ाई बड़ी मुश्किल की होती है और ऊपर से कालेज में स्वीटी मिल गई देखा कि होशियार लड़का है किसी प्रकार पढ़े लिखे। नौकरी मिली तो शादी वाले आ गए, कहने लगे जिस गांव में जन्म हुआ है वहां कभी जाते-आते हो कि नहीं? हमने कहा - अभी तक तो जाते रहे है शादी के बाद देखते हैं पत्नी जाने देती है कि नहीं...


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