जंगल सफारी
जंगल सफारी
अरुण का प्रिय मित्र चन्नई से, वर्गमित्रों के पुनरमिलन कार्यक्रम में शामिल होने के लिए,अरुण के आग्रह पर दो दिन पहिले नागपुर आता है. पदमनाभन और अरुन बहुंत सालों बाद एक-दुसरे से मिलते है. वह अरुण के घर ठहरा था. दोनों में बहुंत सारी पुराने बातें हो रही थी.दोनों उस लमहों को याद करके बहुंत खुश हो रहे थे.कुछ मजेदार किस्सो को याद करके बच्चों जैसे उछल-कूद भी रहे थे. हंसी के मारे उनके पेट में हलका सा दर्द भी हो रहा था.लेकिन मिलन की खुशी इतनी ज्यादा थी कि वे उसे बर्दाश कर रहे थे. बातों-बातों में ,पदमनाभन की आँखे धीरे-धीरे भारी हो रही थी. प्रवास लंबा होने के कारण थोडी सी थकान थी. इन सब बातों पर गौर करने पर अरुण ने उसे अभी आराम करने को कहाँ था क्योंकि दुसरे दिन सभी मिलकर जंगल सफारी पर जाने का तय किया था. शुभ रात्री के संदेश के साथ दोनों सोने चले गऐ थे.
दूसरे दिन, मैं अपने परिवार के साथ, पदमनाभन और भतीजे को लेकर जंगल सफारी के लिए सुबह निकल पडे. वहां एक गाईड हमारे साथ था. वह बीच- बीच में आवश्यक जानकारी दे रहा था. प्रवास के दौरान कई प्रकार के अनोखे पक्षी, जानवर, दुर्लभ पेड-पौधे दिख रहे थे. अब इंतजार् हो रहा था की कोई शेर दिखाई दे!. हम सभी इसी इंतजार में थे. आने-जानेवाले, अन्य जंगल सफरी करेनेवालो से पूछ्ते रहते कि कहीं शेर दिखा क्या ? लेकिन किसी ने इसकी पुष्टी नहीं की. सभी नाराज हो रहे थे. काश शेर आ जाए .
अरुण : सभी सदस्यों को मायूस होते देख, उसने कहा, "आपके साथ शेर होने के कारण, आप को अन्य शेर कैसे दिखेगें. क्योंकि शेर अपने –अपने इलाके का राजा होता है. जब वर्षा अभायारण्य का शेर आप साथ, गौरेवाडा जंगल में आया हो तो यहां के शेर कैसे बाहर निकल सकते है ?". (वर्षा अरुण के पत्नी का नाम हैं).वर्षा को अभी कुछ कहने का मौका मिला था .
वर्षा:" अरे आप कैसे शेर हो सकते हो ?.घर में तो,मेरे सामने भिगी बिल्ली बने पडे रहते हो. अपने दोस्तों में धाक जमाने के लिए अपने आपा को शेर कहते हो. वो भी वर्षा अभायारण्य, मैं आपके कहने का समर्थन नहीं करती."
अरूण: "ये तो,त्रिकालबादित सत्य है. कोई पत्नि अपने पति को कभी शेर नहीं समझती है. वो तो पतियों का बडप्पन है कि वे अपने पत्नियों को प्यार और इज्जत के खातिर अज्ञानी रखते है. वर्ना वे किसी शेर से कम नहीं होते हैं !."
इस बात पर सब हंस पडे और माहौल ठीक हो गया था. हाथ कंगन को आईने की क्या जरुरत. मेरे मित्र ने मेरी बात का पूरा समर्थन किया. उस दिन हमने उसे शहर के अन्य दर्शनीय स्थान भी दिखायें. इसी खुशी में मेरे मित्र ने मना करने पर भी दोपहर के भोजन का बिल का भुगतान किया था. मेरे नाराज होने पर उसने दलील दी कि मैंने आपको खाना नहीं खिलाया. वो तो मैंने, भाभी को उसकी उत्तम सेवा और खातिरदारी के लिए खिलाया है. दिन भर का कार्यक्रम संपन्न करके हम घर लौट आये थे.मेरे मित्र की ये पहिली जंगल सफारी थी. शेर नहीं दिखा इसका दुःख तो उसे हुआ था.लेकिन उसने जंगल सफारी का आनंद जरुर लिया था.उस ने कभी भी अपने जीवन में जंगल की तफरी नहीं की थी.वह मेरे उस बात से सहमत था कि एक म्यान में दो तलवारे नहीं हो सकती.इसलिए उसके शेर मित्र के सामने कोई दुसरा शेर कैसे खड़ा हो सकता है?.
इस प्रसंग पर वह पुरे जंगल सफारी के दौरान हंसता रहा था.
गुनवंता :" हैलो अरुण, आप सब कब तक मेरे घर आ रहे है. जरा जल्दी आना."
मैंने कल श्रीकांत से बात की है. उसे समझाने की पूरी कोशिश की है. तेरे ना आने में ही हम सबका भला है. वर्णा हम सबका और भाभी का भी ध्यान तेरे में लगा रहेगा. कुछ कम-ज्यादा, अगर हो गया तो सभी मित्र हमे ही कोसेगें, कार्यक्रम कि किरकिरी हो जाएगी !. मेरे और भाभी के समझाने पर थोडा सा असर पड़ा है. मैंने कहा अरुण की भी यही राय है. मैं चाहता हूँ कि हम सब फिर श्रीकांत के घर जाके उसे समझायेंगे. इसलिए आप थोडा जल्दी आ जाना. "
अरुण:" ठीक है. जल्दी आते हैं.तू तैयार रहना. हम सभी दुसरे दिन श्रीकांत घर पहुंचे. "
श्रीकांत : "अरे आव –आव, आप सबका इस गरिब खाने में स्वागत है. हम सब एक साथ उसके पास बैठे. सभी ने उसके स्वास्थ की जानकारी ली थी. श्रीकांत डाल-डाल,हम पात-पात, मौका मिलते ही, मैंने उसे छेडा , क्या कहते हो जनाब ?, थोडा सा दुःखी होते हुयें,उसने कहा, काश मेरी तबियत कार्यक्रम हो जाने के बाद बिगड जाती !. तो अच्छा होता. "
अरूण: "अरे, यार, शुभ- शुभ, बोल, ये तू क्या कह रहा है ?. अरे जान सलामत तो, पगडी हजार. ऐसे कई कार्यक्रम करेगें. तू दुःखी क्यों होता है ?. हम सब की दुवायें तेरे साथ है. तू भलेही शरीर से हमारे साथ में नहीं होगा. ये सच है. सभी जानते है की इस कार्यक्रम का मुख्य सुत्रधार तू ही है. ये तो निश्चित है की कार्यक्रम में तेरा जीक्र बार- बार होना. है. मेरा भी सुझाव यही है की तू स्वास्थ लाभ कर ले!. मैं चाहता हुं की तू अपना संदेश वाट्स अप पर हमे भेज दे. हम उसे वहां पढेगें और सभी को बाद में वाट्स अप कर देगें."
पूरे कार्यक्रम की रेकार्डींग तो कर रहे है. तू उसे आराम से देख सकता है. मेरे इस सुझाव पर सभी ने सहमती जताई थी. भाभी ने संदेश बनाकर भेजने का जिम्मा उठाया था. इस तरह श्रीकांत ने बडे भारी दिल से, फिर हमे खुशी –खुशी हमारी विदाई की थी. हमारे इस प्रयास के लिए कांता भाभी ने हम सबका धन्यवाद व्यक्त किया था. फिर हम सब श्रीकांत के अनुमती से वहां से अपने गंतव्य स्थान के लिए निकले.सभी दुःखी थे.लेकिन सभीने राहत की सांस ली कि श्रीकांत ने खुशी- खुशी हमे बिदाई दी. इस बिमारी के कारण श्रीकांत के सर पर आसमान टूट पडा था. उसकी पीड़ा वही जानता होगा !.
