जल का एक बूंद..
जल का एक बूंद..
संसार में ऐसे बहुत सी चीजें हैं जो मेरी समझ से परे है हमें बचपन से सिखाया जाता हैं कि कोई भी चीज पर हमारा हमारे व्यक्तित्व व अस्तित्व से ज्यादा अधिकार नहीं हैं हमारा किसी भी चीज पर अधिकार ईश्वर के बाद है सर्वप्रथम इंसानियत अति हैं ।
आज एकाएक आंखों के सामने एक दृश्य ओझल हो गया जिसको देखने पर मन में एक प्रश्न बार-बार आ रहा है कि क्यों मनुष्य स्वयं को सभी चीज का भाग्य विधाता समझ बैठता है आखिर क्या चंद रुपयों से मनुष्य ईश्वर से भी बढ़कर हो जाता है नहीं मुझे नहीं लगता...
गांव के खरियांन (जमींदार के जमीन पर) में एक सरकारी नल लगा जिसे जल विभाग के लोगों व सरकार की तरफ से लगवाया गया था किंतु न जाने क्यों गांव वाले कहते कि इसे तो परधान(प्रधान)जी ने लगवाया हैं।
नल लगने के बाद लगभग गाँव के सभी लोग उस पर से पानी ले जाते, मैं भी खुश थी चलो गांव की समस्या कुछ-कुछ करके खत्म तो हो रही है अचानक एक महीने बाद पता चलता है कि गांव के जिस व्यक्ति के खलियान में नल लगा था उसने उसे चार दीवारी से घेरने के लिए काम शुरू करवा दिया है, गांव के सभी लोग उसका विरोध करते सिवाय गाँव के प्रधान के मैं स्तब्ध थी आखिर वो क्यों कुछ नहीं बोलते हैं बाद में मुझे मालूम पड़ता है कि वह भी उसी जमींदार से मिले हुए हैं गांव वाले अपनी शिकायत परधान से कहते तो वह कहता इसमें मैं कुछ नहीं कर सकता जिसकी जमीन हैं वह तो घेरेगा ही, सभी गांव वाले जान गए कि परधान भी जमींदार से मिला हुआ है
गाँव वाले कहते हैं अगर जमींदार नल को घेर लेगा तो हम पानी कहाँ से लेंगे परधान कहता है पहले कहाँ से लेते थे सबने कहाँ दूसरे गांव जाने पर पानी मिलता था।
उतनी दूर से पानी लाने में हम सब थक जाते हैं अब आप ही कुछ कीजिए परधान कहता है तो जाइये अब वापिस वही से पानी लाइये, गांव वालों का मुंह उतर जाता है गाँव वाले हेड मास्टर के यह पर लगे कुएँ से पानी ले जाने के लिए आते हैं तभी हेडमास्टर घर के बाहर ही निकलते कहता है तुम लोग तो जमींदार के यह से पानी ले जाते थे यहाँ क्यों आये हो वैसे भी यह कुआँ मेरा है, बेचारे गांव वाले कहते हैं मालिक हम सबको आप से ही उम्मीद है यदि पानी नहीं मिलेगा तो हम जिंदा कैसे रहेंगे।
हेडमास्टर कहता है! मैं एक शर्त पर पानी दूंगा अगर तुम लोग इस नंदलाल व झूरी को इस कुएं से दूर रखो तब ,
नंदलाल व झूरी दोनों को गांव वाले कहते हैं कि वो दोनों नीच(अछूत) जाती के है , गांव वाले कहते हमें स्वीकार्य नहीं है तब हेडमास्टर कहता है मैं न दूंगा पानी की एक बूंद भी, तब गाँव वाले आपसी सहमति से कहते है ठीक है हम नंदलाल व झूरी को कुएं पर नहीं आने देंगे अब तो हमें पानी लेने देंगे न हेडमास्टर साहब, हेडमास्टर तैयार हो जाता है पानी देने के लिए।
बिचारे नंदलाल व झूरी दोनों को दूर दूसरे गांव से पानी लाना पड़ता है एक दिन अचानक नंदलाल की तबीयत ठीक न होने के कारण उसकी गर्भवती पत्नी पानी लाने जाती है, गांव की दाई उनसे रास्ते पर मिलने पर कहती हैं बहुरिया तुम्हारा तो लगभग नवा महीना चल रहा है अउर तुम पानी धो रही हो इतने दूर से ई तुम्हरे अउर तुम्हरे होण वाले बचवा के लिए ठीक नाही हैं तभी नंदलाल की पत्नी कहती हैं इनकी(नंदलाल)की तबीयत ठीक नहीं है अम्मा यही खातिर हम आये हैं उसके बबाद वह पानी लेकर घर आती हैं तो देखती हैं नंदलाल अब ठीक है
अब दूसरे दिन से नंदलाल जाता पानी लेने दूसरे गाँव।
महीनों तक यही चलता रहा अचानक एक दिन खाना बनाते -बनाते नंदलाल की पत्नी को जोर जोर से पेट में दर्द होने लगता है नंदलाल अपनी पत्नी को चारपाई पर बिठाकर कहता है तुम चिंता न करो हम अबही दाई अम्मा को बुला कर लाते हैं।
तभी नंदलाल की पत्नी कहती है एजी हमका एक गिलास पानी दे दो शायद कछु तब तक आराम मिले अउर हमको पियास भी लगी है , नंदलाल झट से मटके में पानी निकालने के लिए हाथ डालता है तो पाता है कि पानी की एक बूँद भी घर में कहीं नहीं है वह सोचता है अगर वो दूसरे गाँव पानी लेने जाता है तो बहुत देर हो जाएगी, उधर उसकी पत्नी प्यास में और दर्द में चिल्लाये जा रही थी नंदलाल को कुछ सूझ न रहा था तभी वह सोचता है खरियान के नल से पानी ले आये, वह अपनी पत्नी से कहता है तुम चिंता नाही करो हम पानी झट से लेकर आते हैं वह गाहे बगाहे जमींदार के पास पानी के लिए पहुँचता है जमींदार ने नल के दरवाजा पर ताला लगाया होता है नंदलाल खूब चिल्लाता हैं खोलो दरवाजा सिर्फ एक गिलास पानी दे दो सरकार फिर चाहे हमारी जान ही ले लो, लेकिन जमींदार दरवाजा नहीं खोलता है, इसके बाद वह हेडमास्टर के कुएँ पर पानी के लिए दौड़ा-दौड़ा जाता है हेडमास्टर अपने कुएँ के पास ही चारपाई पर बैठकर हुक्का फूँक रहा होता है हेडमास्टर कहता है नंदलाल को दूर रहो कहा मेरे कुएँ को अछूत करने चले आ रहे हो, नंदलाल कहता है हेडमास्टर साहिब हमरी पत्नी पेट से व बीमार है जरा एक गिलास बस पानी दे दो नहीं त उ मरी जाएगी आज साहिब कृपया करके हमका,
एक गिलास पानी देहि दो हेडमास्टर कहता है हम तुमको पानी देकर अपना धरम भरष्ट नाही करेंगे अरे ब्रह्मा को ऊपर जाने के बाद हम का जवाब देंगे नंदलाल कहता है सरकार दया कीजिए हम गरीबन को सता कर के आपको का मिलेगा आप जो चाहे उ ले लेवे लेकिन खाली हमका एक गिलास पानी दे दे हमरी पत्नी मर जावेगी, रहम करे साहिब
हेडमास्टर कहता है नहीं नहीं हम कहे न तुमसे हम पानी का एक बूंद भी तुमको नाही देंगे।
अब जाओ इहा से नहीं त तुमको भगाए इहा से।
नंदलाल भीख मांगता है साहिब खाली एक गिलास पानी दे ,लेकिन हेडमास्टर उसको पानी नहीं देता है
अंत मे नंदलाल घर पहुँचता है तो देखता है कि उसकी पत्नी प्यास से तड़फड़ा कर अपना जान दे चुकी है
नंदलाल खूब रोता है मानो जीवन ही खत्म हो गया हो नंदलाल चिल्लाकर कहता हे परमात्मा तूने पानी, आकाश, पृथ्वी, अग्नि , हवा बनाया तूने तो कभी अपना अधिकार न बताया फिर ये कैसे मनुष्य की जाती-पाती है जो अपना अधिकार बताती हैं जाती -पाती का भेद बताती हैं क्या अंतर है मेरे अउर उस हेडमास्टर के खून मा, क्या अंतर है मेरे अउर उस जमींदार के सांस लेने में
हे परमात्मा बता क्या गुनाह है हमरा अउर हमारी पत्नी का
बता परमात्मा बता इतना कह वह खूब रोता है.....
