कुत्ता खा गया मुर्गी को...
कुत्ता खा गया मुर्गी को...
आज सुबह से ही बहुत ठंड पड़ रही हैं. सभी अपने कमरों से बाहर निकल कुछ न कुछ करने लगे सिवाय एक नन्हे सरकार मेरे भाई राजू के...
अम्मा हमसे कहती, जा जरा राजू को जगा आ लाडो... मैं राजू को जगाने उसके कमरे में गयी, कमरे में प्रवेश करते ही बिस्तर के पास एक मेज रखि हुई थी मेज पर कुछ पुस्तकें बिखरी थी जो मानो ए. बी. सी. डी.की किताबें हो मेज के तनिक सटा हुआ एक और छोटा टेबल था जिसपर कुछ पानी की बोतले भरी हुई थी। मैं राजू को जगाने लगी, ओ राजू! अब उठ भई कीतना सोएगा। सुबह के आठ बजे चुके हैं स्कूल भी तो जाना है।
राजू अनायास मन से कहता मैं न जा रहा हु तुमको जाना है तो जाओ मैं न जाऊंगा, तभी मै अम्मा को बुलाती मेरी केवल अम्मा को बुलाने की बात सुनकर वह दौड़कर गुसलखाने में जाता है...
और मै जोर जोर से हँसती तभी अम्मा बुलाती और कहती, कितना हँसती है ये लड़की जरा हाथ भी बटा दिया कर मेरा चल जा अब जा कर दलानी में झाडू लगा दे।
मै फटाक से झाड़ू लेकर दलानी में झाड़ू लगाने लगी तभी मैं देखती की बाबा और बड़के भइया से दलानी में बैठकर चाय की चुस्की लेते हुए कहते हैं, ठण्ड बहुत बढ़ गयी है। इस ठंड में सोच रहे हैं कि मुर्गियों को बेचकर कोई अच्छी नस्ल की गाय ले ले,तुम क्या कहते हो बिटवा... सही है न... तभी बड़के भइया कहते जैसा आप उचित समझे बाबा, तब बाबा कहते तब यह तय रहा मैं आज ही मुर्गियों को बेचने के लिए व्यापारी देख आता हूँ शहर से...
तभी मेरे दिमाग मे एक बात जाती हैं कि बाबा मुर्गियों के बेचने की बात कह रहे हैं वही मुर्गियां जिनमे राजू की जान बसती है...
आज स्कूल में साथ जाते वक्त मैं यह बात (बाबा के मुर्गियों के बेचने की) राजू को बताती हु।
राजू को बहुत गुस्सा आता है और बेचारा राजू दुःखी भी बहुत होता है, हो भी क्यों न आखिर उनकी देख -रेख राजू ही तो करता है...
स्कूल में दिनभर राजू का मन नही लग रहा था मैंने यह महसूस किया।
स्कूल में छुट्टी की घन्टी की आवाज सुनते ही राजू मानो ट्रेन से जल्दी दौडकर घर पहुंचा और मुर्गियों को अपने साथ सीधे लेकर बगीचे में खेलने के लिए चला गया, राजू को लगता कि न मुर्गियां घर रहेंगी और न बाबा उन्हें बेच पाएंगे।
तभी राजू को खेलते-खेलते भूख लग जाती है वह सोचता है कि वह तुरंत घर पर खाकर तुरन्त वापिस आ जायेगा।
किन्तु होना तो कुछ और ही लिखा था, घर पर पहुचते ही राजू बाबा से पूछते हैं मुर्गियां कहा है राजू ?
राजू कहता, बाबा मैं न बेचने दुंगा मुर्गियों को, रुआँसी आवाज में वह मात्र 8 साल का बच्चा कहता क्यो बेचते हो बाबा, मुर्गियां तो मेरी अच्छी मित्र हैं यह चली जाएंगी तो मैं किसके साथ खेलूंगा... राजू मुँह फुलाकर कहता है हु हु...
तभी बाबा हँसते हुए कहते है अच्छा मित्र हैं वो भी मुर्गियां.. हम सब हसने लगते है जोर - जोर से ।
राजू फिर कहता है, तो बाबा अब तो न बेचोगे न मुर्गियों को .....बाबा कहते है ठीक है बाबा अब न बेचूंगा मुर्गियों को अब खुश।
राजू खूब खुश हुआ इतना कि वह भूल गया कि वह मुर्गियों को बगीचे में छोड़कर आया है। शाम को वह बगीचे में जाता है मुर्गियों को लेने तो वहाँ वह पाता है कि कुछ कुत्ते मुर्गियों को परेशान कर रहे हैं बेचारा राजू आखिर आठ साल का बच्चा करता भी क्या .....
वह जोर- जोर से चिल्लाता है लेकिन जिन मुर्गियों को बचाने के लिए वह अपने बाबा से हठ कर रहा था अंत में उन्ही मुर्गियों को कुत्ते खा जाते हैं;और वह रोते-रोते घर जाता है तभी बाबा फिर उससे पूछते हैं क्या हुआ बेटा राजू क्यो रो रहे हो और तुम्हारी मित्र यानी कि मुर्गियां कहाँ हैं ?
राजू रोते हुए ही जवाब देता हैं की "कुत्ता खा गया मुर्गियों को...”