औरतों की आर्थिक आजादी
औरतों की आर्थिक आजादी
मैं कई बार स्तब्ध स्वयं को पाती हूँ कि यदि हर जगह महिला की स्वतंत्रता की बात होती हैं तो क्या आर्थिक में नही होनी चाहिये,
मैं जब सड़कों पर निकलती हूं तो पाती हूँ कि बिना पुरुष के स्त्रियां मोबिलिटी तक हसिल नहीं कर पाई हैं।
आज भी औरतें कहीं आने जाने के लिए पुरुषों पर निर्भर है।
मोबिलिटी आर्थिक आत्मनिर्भरता की पहली और सबसे जरूरी कड़ी है।
धन्य है हमारे समाज का स्त्रीविरोधी वातावरण और मानसिकता... हम आज तक उनके काम करने के लिए सुरक्षित वातावरण और मानसिकता विकसित नहीं कर पाए हैं।
औऱ मेरा मानना है कि आर्थिक आजादी की चर्चा नहीं होती!!!किन्तु होनी चाहिए क्योंकि
स्त्री मुक्ति या विमर्श में पहला शर्त तो यही है,जब तक वो आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं होंगी, बांकी चीजों पर कैसे अपना निर्णय ले सकतीं!
निश्चित ही समग्रता में सोचने वाले इसे महत्वपूर्ण विषय के तौर पर लेते हैं यहां किसी पर प्रतिक्रिया देने से ज्यादा एक चिंता के तौर पर ही लिखा है। की आखिरकार जब स्त्री जीवन के विभिन्न पहलूओं पर चर्चा हो रही है तो छंटनी की शिकार औरतों पर भी चर्चा हो उस हालात पर भी चर्चा हो जहां नौकरियां न के बराबर है और जो उपलब्ध भी है वहां भी तमाम तरह के समझौते औरतों का इंतजार कर रहे होते हैं।
किन्तु कुछ लोगो का मानना है कि हां , घरेलू श्रम को हीन समझने वाली प्रवृत्तियों को भी समझा जाना चाहिए,
और यहाँ मैं मानती हूं कि यहां मंशा घरेलू संभालने वाली स्त्री वर्सेज कामकाजी स्त्री की आजादी गुलामी के बारे में चर्चा करना नहीं है। वह एक पूरा मुद्दा है। स्त्री विमर्श के बहुत सारे आयाम है लेकिन जिस तरह नौकरियां लगातार कम हो रही है और लड़कियों के भीतर अपनी पहचान की आकंाक्षा परिपक्व हुई है उस चर्चा जरूरी है। ज्यादातर लड़कियां अपने सपनों पर चर्चा करते समय अपने पैरों पर खड़े होने को पहली जरूरत समझती है लेकिन उसकी जमीन जिस तरह से गायब हो रही है उस पर चर्चा क्या स्त्री विर्मश का प्रमुख मुद्दा नहीं बनता। एक एक इम्तहान देने हजारों औरतें आती है लेकिन जब पद हो ही नहीं तब क्या होता है.. वो क्या करती है, क्या बेरोजगार लड़कियां अपने मन मसोस कर परनिर्भरता का जीवन नहीं जीती हैं।
मेरा मानना है कि Female Workforce Participation, Equal Wages एवम Sexual division of labour और अन्तोगत्वा महिलाओं के mobility पर बात होनी चाहिए। यहाँ हम सिंदूर, बिंदी में अटके पड़े हैं।
हमें अपने emotions से उठकर विचार करने चाहिए।