जिंदगी...प्यार - एक जंग
जिंदगी...प्यार - एक जंग
अब तक ज़िंदगी ने भरपूर साथ दिया और अब भी दे रही है। अचानक एक दिन प्यार से मुलाकात हो गई। प्यार मिल गया और दिल में घर कर गया। अब ज़िंदगी और प्यार साथ-साथ चलने लगा। वक़्त गुज़रता गया। अब धीरे-धीरे दोनों में झगड़े, तकरार होने लगी। दोनों इंसान का साथ देना चाहते थे और इंसान भी किसी को छोड़ने के लिए तैयार नहीं था। कशमकश होने लगी।
ज़िंदगी बोली, 'आए प्यार तू इस इंसान को छोड़ दे मेरे लिए, इस पर सिर्फ मेरा ही हक़ है।'
प्यार ने कहा, 'कैसे छोड़ दूं, यह तो इंसानी फितरत है, खोखला है इंसान इसके बिना।'
ज़िंदगी इंसान से लड़ने लगी। प्यार भी सहम गया। वक़्त ने इंसान को समझाया, 'दो नावों में सफर कर लेगा? एक म्यान में दो तलवारें रख लेगा?'
इंसान खामोशी से सुनता रहा। उसने सोचा, मनन किया। ज़िंदगी और प्यार की जंग कैसे जीती जाए।
इंसान ने वक़्त से कहा, 'हाँ, दो म्यान में एक तलवार रख सकता हूं। दो नावों को जोड़कर सफर कर सकता हूं।'
वक़्त खामोश हो गया कि इंसान से बहस करना बेकार है। यह कोई न कोई जुगत कर ही लेगा। प्यार अशांत हो उठा। उसने ज़िंदगी से कहा, 'मैं अगर चला गया तो इंसान की खुशियां, उल्लास सभी कुछ चला जायेगा। ये इंसान बस जीवित ही कहलायेगा।'
अब प्यार ने बेचारे इंसान को देखा और कहा, 'तुम दोनों के मध्य मैं आ गया। झगड़े, तकरार बढ़ गए। मैं चला जाता हूँ। मेरी छाया ही तुम पर रहेगी जो सदा छुपी हुई रहेगी। मन में और पर्दे के पीछे।'
इंसान ने कहा, 'तुम कहाँ बीच में आये हो। मैं हूँ बीच में। एक तरफ ज़िंदगी है और दूसरी ओर तुम।'
प्यार बोला,'मतलब?'
'मतलब यह कि मेरे बाएं हाथ ज़िंदगी है और दाहिने हाथ तुम। बीच तो मैं हूँ। तुम मेरे साथ हमेशा मेरे दाहिने हाथ की तरह क्रियाशील हो और रहोगे। मैं ताली ही नहीं बजाऊंगा' इंसान ने संवेदनशील होकर जबाब दिया।
प्यार ने सोचा,'अंदर से धड़कता दिल किसी को दिखाई नहीं देता पर महसूस कर सकते है। जिंदगी खुले आम दिखती है उसमें धड़कन नहीं। बस एक इंसान जी रहा है अपनी अपनी जैसे तैसे।'
प्यार ने इंसान को ब्लॉक नहीं किया ताकि वह अपने सपने पूरे कर सके। पर एक वादा भी लिया कि वह प्यार के साथ साथ ज़िंदगी का ख्याल भी रखेगा, सब ठीक रहेगा यदि जंग न हो।

