अधूरी अर्धांगिनी
अधूरी अर्धांगिनी
आज शशांक बहुत बैचेन हो रहे थे। सुबह से अनेक कॉल्स वे उर्मी को कर चुके थे। अभी वे लंच करके थोड़ा सुस्ता रहे थे कि अचानक उर्मी का काल आ गया। उन्होंने तुरंत ही उठा लिया।
"अरे सुबह से कितने कॉल्स किये तुम्हें।"
"हाँ देखा मैंने। क्यों इतने बैचेन हुए जा रहे थे। कॉलेज में काम बहुत था इसलिए तुम्हारे कॉल्स का जबाब नहीं दे पाई।"
" उर्मी, जानती हो तुम। हमें मिले हुए लगभग तीन वर्ष हो गए हैं। एक दूसरे का कितना साथ दिया और कितना कार्य साथ-साथ कर रहे हैं।"
"हाँ, शशांक। अगर विचार न मिलते, हम एक दूसरे के कार्यों में पूरक न होते तो शायद हमारी दोस्ती इतने आगे नहीं बढ़ती।"
"सच कह रही हो उर्मी, पहला आकर्षण तो हमारे कार्य का प्रभावी प्रस्तुतिकरण ही रहा है और दूसरा, एक दूसरे के प्रति सम्मोहन। जो दोस्ती से प्यार और प्यार से सम्बन्धों में न जाने कब परिवर्तित हो गया। अब हमें शादी कर लेना चाहिए।" शशांक ने गम्भीरता से कहा।
"अरे यार, शादी क्या जरूरी है? तुम्हारा दिया मंगलसूत्र पहन रही हूँ न...माथे पर बिंदिया भी तुम्हारी ही लगी है, तो फिर।" उर्मी ने अल्हड़ता से कहा।
"हाँ, वो तो है...पति जैसा ट्रीट भी कर रही हो, पर..." शशांक धीरे से कह पाए।
"पर क्या ?" तुरंत उर्मी कह उठी।
"......."
"समझ गई, क्या है तुम्हारे मन में। लोग क्या कहेंगे, समाज क्या कहेगा, यही न...रखैल !" लापरवाही से हँसते हुए उसने कहा।
"पर, मैं नहीं चाहता कि समाज तुम्हें इस नाम से या कोई और नाम से पुकारे.." उसने मन की टीस जाहिर की।
"तुम भी किस ज़माने में जी रहे हो डिअर। न जाने मेरे जैसी कितनी स्त्रियां होंगी जो मेरी तरह जी रही होंगी। हम दोनों को एक सानिध्य सुख तो मिल ही रहा है न और तो और हमारी कलात्मकता, सृजनात्मकता भी अच्छी चल रही है।" इतना कहकर उर्मी ने फोन काट दिया।
शशांक गहन सोच में डूबते हुए अतीत में खो गए। परते दर परते उधड़ने लगी। वह एक साहित्यिक आयोजन था जिस में दोनों की जान पहचान हुई, काफी देर तक दोनों बतियाते रहे और अपने शौक के बारे में जानकारियां साझा करते रहे। हालांकि वे भारत के अलग शहरों में रहते थे। जीविका चलाने के लिए दोनों के संसाधन अलग अलग थे। शशांक किसी कार्यालय में तो उर्मी एक महाविद्यालय में लेक्चरर थी। उर्मी तलाकशुदा थी लेकिन शशांक विवाहित थे। अक्सर दोनों फोन पर या वीडियो काल पर देर रात अपनी कृतियों पर जानकारियों और सुझावों पर चर्चा करके उसे और बेहतर बनाने की बातें करते थे। एक बार शशांक उसके घर भी मिलने जा चुके थे, जहां वे पति पत्नी के रूप में एक दूसरे को सब कुछ दे चुके थे।
शशांक का अतीत ध्यान भंग हुआ क्योंकि उर्मी की ओर से मोबाइल पर लगातार कॉल आ रही थी। अब वे विचलित नहीं हो रहे थे, उसने कॉल रिसीव किया।
" बहुत देर लगाई मेरा कॉल रिसीव करने में, कहाँ व्यस्त थे।"
"हाँ सोच रहा था कि रखैल का कॉल रिसीव करूँ या न करूँ। इस शब्द से नफरत है मुझे।"
"ह्म्म्म...तो फिर क्यों उठाया।"
"सिर्फ यह मानकर कि तुम मेरी अधूरी अर्धांगनी हो और यही रहोगी क्योंकि तुम मेरा पहला प्यार जो ठहरी।" शांत भाव से कह कर शशांक ने कॉल काट दिया।