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Akanksha Gupta (Vedantika)

Tragedy

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Akanksha Gupta (Vedantika)

Tragedy

जिंदा लाश

जिंदा लाश

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“वह इतनी चुप रहने लगी है कि अब एक वीराने का एहसास होता है।”

“तुमने कभी बात करने की कोशिश नहीं। एक बार कोशिश तो करो शायद कोई समाधान निकल जाए।”

“मेरे पास अब कुछ नहीं है कहने को। मैं उसके विश्वास का हत्यारा हूँ। वह कितने विश्वास के साथ मेरे लिए अपना घर,

अपना परिवार छोड़कर आई थी। मैंने उससे प्यार तो कर लिया लेकिन जिम्मेदारी सिर पर पड़ते ही मैं उसे अकेला छोड़ कर भाग निकला।”

“तुमने उसे इतनी मानसिक यातना दी कि अब उसे अपने जिंदगी का एहसास ही खत्म हो गया। अब वह एक जिंदा लाश बन कर रह गई।”

“और उसे जिंदा लाश बनाने का जिम्मेदार हूँ मैं, उसके विश्वास का हत्यारा हूँ मैं।”


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