जिम्मेदारियां।
जिम्मेदारियां।
देखो तो, तुम्हारी दोनों मामियांं तो इतने बड़े घर में ऊपर नीचे कितने आराम से रहती हैं और तुम्हारे नाना नानी के लिए उसी घर में जगह नहीं है। यह क्या कोई उनकी उम्र है गांव में अकेले रहने वाली। बेचारे! कैसे तो हमारे रहने का इंतजाम करेंगे मुझे तो रात को उनके पास रहने में भी शर्म आएगी। हमारी नानी तो हमारे मामा मामी के साथ ही रहती थीं। घर में उनका अलग कमरा था, जिसमें कि वह आराम से पूजा पाठ करती रहती थीं। कभी मामा के साथ मंदिर भी चली जाती थीं। घर में उन्हें किसी से मतलब नहीं था।
राहुल मुस्कुराता हुआ गाड़ी चलाने में ही व्यस्त था। प्रिया और राहुल की शादी हुए अभी ज्यादा समय नहीं हुआ था। चंडीगढ़ वह अपने ऑफिस के काम के सिलसिले में गया था । वापिस दिल्ली आते हुए जिला करनाल के एक गांव में रहने वाली अपनी नानी से भी प्रिया को मिलाना चाहता था। यूं ही बातें करते-करते नानी का घर आ गया ।राहुल ने गाड़ी रोकी तो प्रिया घर को देखती ही रह गई। इतनी खूबसूरती से सजा हुआ घर और बाहर बड़ा सा गार्डन जिसमें की सुंदर फूल और और ताजी सब्जियां लगी हुई थी । एक बड़ा सा झूला भी लगा हुआ था। इतने में ही गाड़ी की आवाज सुनकर अंदर से सुंदर सी टीशर्ट और निक्कर में नाना जी बाहर आए , पीछे पीछे नानी जी भी पूछते हुए बाहर आ गई, कौन आया है? देखते ही प्रिया हैरान रह गई आज भी नानी उसकी सासू मां से भी सुंदर और उनकी बड़ी बहन सी लग रहीं थी ।बहुत खुशी से नानी मां दोनों से मिली और उन्हें अपने घर में अंदर लेकर गई।
जैसे प्रिया ने सोचा था नानी माँ उस हाल में तो बिल्कुल भी न थी। नानीजी ने प्रिया और राहुल को लस्सी, लड्डू और घर की बनाई नमकीन भी खाने के लिए रखी। उसने नानी माँ से पूछा कि क्या मैं आपकी रसोई में कुछ सहायता करूँ? तो हंसते हुए नानी माँ बोली, नहीं। तुम दोनों थक के आये हो थोड़ा आराम कर लो। नाना जी बाहर से ताजी सब्जियां तोड़ कर लाये और नानीजी की सहायता करने को एक औरत किचन में बैठी हुई थी और थोड़ी ही देर में खाना ड्राइंग रूम में लग गया था। खाना खाते खाते ही प्रिया को पता चला कि नानाजी एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट में अच्छे पद पर थे, और उनकी सदा इच्छा थी कि रिटायरमेंट के बाद गांव में आकर रहें। नानी ने बताया कि शहर की व्यस्तताओं में वह सिवाय अपने और अपने बच्चों के किसी के लिए कुछ भी चाह कर भी नहीं कर पाए।
यहां वह अपनी जिंदगी में खुश हैं। नानी जी ने बातों ही बातों में बताया कि अपने खाली समय में वह गांव के बच्चों को पढ़ातीं है। माया, जो रसोई में काम करवा रही थी उनकी लड़की को भी उन्होंने ही पढ़ाया। उसे दसवीं के बाद पॉलीटेक्निक में भी एडमिशन मिल गया है। तुम्हारे नाना जी भी किसानों की समस्याओं को अच्छे से समझ पाते हैं और यथासंभव उनकी सहायता करते हैं। यहां पर आपको बच्चों के बिना अकेलापन नहीं लगता? नहीं! हमने बच्चों के प्रति जिम्मेदारी अच्छे से निभाई है। अब बच्चे अपनी जिम्मेदारी अच्छे से निभाएं। हमको समाज के प्रति भी अपनी जिम्मेदारी निभानी है। वैसे भी ,अब यह पूरा गांव ही हमारा परिवार है। शायद अपने बच्चों पर हम कभी भार भी हो जाते, लेकिन यहां सबको हमसे बहुत प्यार है। हम दोनों अपना सारा काम खुद ही करते हैं इसलिए हम शारीरिक रूप से भी स्वस्थ हैं। वैसे जिन बच्चों को मैंने पढ़ाया है वह बच्चे और उनकी मम्मियां भी मेरा हाथ बंटाने को सदा तत्पर ही रहती हैं। छुट्टियों में बच्चे भी मिलने आ जाते हैं। यहां घर के पार्क में में बंधी गाय की सेवा भी करने का भी हमें सौभाग्य मिल जाता है। लेकिन पूजा पाठ ? नानी जी हंस पड़ीं।
बोलीं, बेटा मुझे तो मेरा हर कर्म ही पूजा लगता है, जरूरी थोड़े ही ना है कि बूढ़े होने का मतलब मोह में बंधे हुए सिर्फ बच्चों के ही आसरे रहना, माला पकड़े रखना, घर का काम छोड़ देना, ही है। हम भी तो पूजा ही कर रहे हैं, हम अपना और अपनों का ख्याल रख रहे हैं। हमारी खुशी से हमारे बच्चों को भी बहुत खुशी मिलती है। तभी सबको खबर हो गई कि नानी जी से मिलने के लिए राहुल और प्रिया गांव आए हुए हैं। जाने कहाँ से इतने लोग मिलने के लिए आ गए कि प्रिया हैरान हो उठी। नमस्कार करने पर सब ने प्रिया को ढेरों आशीर्वाद दिये और अपने घर आने का न्योता भी दिया। इस तरह से कब रात हो गई पता ही न चला।
सुबह उठने के बाद मद्धम सी आवाज में स्पीकर से आती हुई भजनों की ध्वनि, बाहर फूलों से छनकर आती हुई सुगंधित हवा, पेड़ों के पीछे से उगता हुआ सूरज, यह अनुभव उसके लिए एकदम नया था| भीड़-भाड़ से अलग यह घर मंदिर ही तो था।
घर वापस जाते हुए उन से मिलने गांंववाले भी बहुत से उपहार लेकर आए थे। जाते हुए प्रिया बेहद भावुक हो रही थी बोली यही वास्तविक पूजा है।मेरी नानी माँ भले ही सारा दिन पूजा करती हों पर उनकी आंखों में मैंने कभी भी ऐसी संतुष्टि और खुशी का भाव नहीं देखा । शायद इसी लिए ही मेरी दादी अकेले भी गांव में बहुत खुश रहती थी। अकेले रहने वाले सारे वृद्धजन दयनीय नहीं होते।
जब अपने और अपने परिवार की जिम्मेदारियां खत्म हो जाती हैं तो प्रत्येक व्यक्ति की यह भी जिम्मेदारी है कि वह समाज के भी काम आए और अपना भी ख्याल रखे । स्वस्थ रहकर अपना काम जब तक हो सके स्वयं करें और किसी के ऊपर भार भी ना बने।
