"जीवन की रेस"#3

"जीवन की रेस"#3

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रविशा अपने परिवार का बहुत ही होनहार बेटी थी स्कूल में पढ़ने और स्पोर्ट्स कई मेडल जीत चुकी है। स्कूल टीचर्स खुश रहते थे हर एक्टिविटी में बढ़- चढ़ कर भाग लेती थी। 

 वो कालेज में एडमिशन के लिए पी.इ.टी इंजिनियरिंग करना चाहती थी इंट्रेनस एग्जाम में पास होने के बाद उसका दूसरे स्टेट में एडमिशन मिलता है। रविशा की मम्मी गवर्नमेंट आफिस में नौकरी करती थी । 

 सिंगल पेरंटिग रह कर पाला था रविशा को इस वजह वो अपनी मम्मी को छोड़कर जाने में परेशान थी फिर भी मम्मी और नानी, मामा सबने समझाया के तुम चिंता मत कर हम सब यहीं आस-पास ही तो रहतें हैं, तू छोटी सी थी तब भी हम सब उसका ख़्याल रखतें थें। तुम अपनी पढ़ाई पर फोकस करो, और तुम अपने लक्ष्य पर ध्यान दो , रविशा का लक्ष्य था नेशनल गेम्स खेलना और देश का नाम रोशन करना, देश के लिए गोल्ड मेडल जीतना। 

  रविशा अपने नये कालेज और दूसरी सभी तरह की एक्टिविटी में भाग लेने लगी उसकी पढ़ाई भी बहुत अच्छी चल रही थी। 

धीरे-धीरे कालेज की तरफ से 400रेस 200रेस कई कालेज से काम्पिटिशन में भाग लिया।

एथलीटों की टीम में सेलेक्ट होती रही उसने नेशनल गेम्स में भी सेलेक्ट हो गई। अब वो उस स्टेट अच्छी रेसर थी बड़ा नाम हो गया इधर उसके फाइनल एग्जाम हो रहे थे। वो अच्छे नम्बरों से इंजिनियरिंग करना चाहती थी।

रविशा को लग रहा था बस एक दो दिन में एग्जाम ख़त्म हो जाएंगे, उसने अपने घर जाने का रिर्ज़वेशन करा रखा था, मगर होनी को कुछ और ही मंज़ूर था 

वो दिन रविशा की लाइफ का ख़तरनाक टर्निंग पाइंट बन गया वो कैसे हुआ। 

  एक दिन रोज़ाना की तरह फ्रेंड के साथ स्कूटी से कालेज जा रही थी एक कार वाला गलत रौ में घूसता चला आया रविशा और उसकी फ्रेंड भानु को बहुत दूर तक घसीट कर ले गया, घबराहट में ब्रेक की जगह एक्सीलरेटर पर पैर रख दिया उसने, गाड़ी रुकती तब तक बहुत देर हो चुकी थी। कार वाले को लोगों ने बहुत मारा, उसे क्या होने वाला था। 

 रविशा और भानु को फौरन लोग एम्बुलेंस से हास्पिटल लेकर गए। मगर भानु ने तो रास्ते में ही दम तोड़ दिया, रविशा बहुत ज़्यादा ज़ख़्मी थी , कोई भी जानता नहीं था उनके बैग में से कालेज का आईडी कार्ड मिला उससे हास्पिटल वालों ने प्रिंसिपल को बताया कि आपके कालेज की दो लड़कियों का एक्सिडेंट हो गया है, उसमें एक ख़त्म हो गई है। 

कालेज के प्रिंसिपल फौरन आए और उनके घर वालों को ख़बर दी गई। रविशा का इलाज चालू हो गया था रविशा को कई दिनों तक होश नहीं आया। रविशा की मम्मी और मामा पहुंचे तो डाक्टर ने बताया कि आपका ही इंतज़ार कर रहे थे इलाज तो चल रहा है, रविशा की मम्मी बदहवास सी थी, डाक्टर का कहना था कि रविशा की दोनों टांगें घूटनों पर से काटना पड़ेगी, उसकी मम्मी और मामा चाहते थे कहीं बड़े हास्पिटल में ले जातें हैं, मगर डाक्टर का कहना था उसकी कंडीशन ऐसी नहीं बहुत नाज़ुक हालत है। 

  रविशा की ज़िन्दगी का अहम फैसला उसकी मम्मी को लेना था, मम्मी ने डाक्टर को कहा जैसा आप लोग ठीक समझे बस मेरी बेटी बच जाना चाहिए। मम्मी के लिए वो वक़्त सख़्त इम्तिहान का था। रविशा का आपरेशन कर दिया गया। वहाँ के डाक्टर बहुत अच्छे थे। 

 20-22दिन में रविशा को होश आने लगा मम्मी, मामा फिक्रमंद थे , जब उसे मालूम पड़ेगा तो क्या होगा, पर ख़ुशी भी थी वो हमारे बीच तो है। 

रविशा को होश आया तो सबसे पहला सवाल था, भानु कैसी है डाक्टर ने पहले ही सब स्टाफ को बोल दिया गया था, उसकी फ्रेंड के बारें में कुछ नहीं बताना है। रविशा को भानु का बताया वो दूसरे वार्ड में एडमिट है ठीक है वो, अब बारी थी उसकी अपनी सब चिंतित थे कैसा रिएक्शन होता है, जैसे ही उसने अपने पैरों को मूव करने की कोशिश की तो चींख पड़ी डाक्टर, मम्मी मेरे पैरों को क्या हुआ है। 

  रविशा को समझते देर नहीं लगी उसके साथ कुछ अनहोनी हो गई है। और फूट-फूट कर रो पड़ी डाक्टर ने फौरन ही नींद का इंजेक्शन दे दिया। रविशा की तकलीफ देख कर मम्मी और मामा भी बुरी तरह रोने लगे। 

 अब रविशा को मेंटली तैयार करना था कि कोई बात नहीं हम दोनों ये मुश्किल वक़्त भी हिम्मत से जीत जायेंगे, कहना तो आसान हैं ये रजनी जानती थी रविशा की मम्मी, मगर बच्ची को इस वक़्त बहुत समझदारी से इमोशनल स्पोर्ट की ज़रूरत थी। 

 ज़रा भी रजनी अगर टूटती तो रविशा को फिर से अपनी ज़िन्दगी में वापस वहीं कान्फिडेंस लाना बहुत मुश्किल था, रजनी अडिग थी वो अपनी बेटी को पूरी तरह से ठीक कर लेगी ।

करीब एक साल लगा रविशा को डाक्टरों की टीम को पूरी तरह से ठीक करने में । 

एक साल बाद रविशा की फिजियोथेरेपी देने की सलाह दी गई इस एक साल में रविशा की ख़ामोशी उसकी मम्मी रजनी को बहुत ही डरा देने वाली थी ।

रजनी अपनी बेटी को बहुत अस्ट्रांग बनाना चाहती थी मगर ये क्या वो तो दिनों-दिन डिप्रेशन में जाने लगी , डाक्टर जो साल भर से उसकी केस हिस्ट्री देख रहे थे, उन्होंने रजनी और उसके मामा को सलाह दी रविशा को सायकोलाजिस्ट को दिखाना चाहिए धीरे-धीरे वो डिप्रेशन से बाहर आना ज़रूरी है वरना सारी मेहनत बेकार हो जाएगी उसे ज़िन्दगी की रेस में वापस लाना ही होगा,

पर रविशाको बड़ी मायूसी भरी बातें करने लगी थी मम्मी मुझे तो सब कुछ अंधकारमय हो गया है, अब तो तुम्हारी रविशा एक अच्छी रेस नहीं बन सकती है।

रविशा मम्मी के गले लग कर फफक रो पड़ी, रजनी भी चाहती थी एक बार जी भर कर रो लेगी तो मन हल्का हो जाएगा।

फिर रविशा अक्सर सेड सांग्स सुनती रहती मम्मी ने ढ़ेड साल में अपने घर छुट्टी करा कर ले आई अब रविशा को नई सिचुएशन का सामना करना था वजह थी लोगों का आना-जाना शुरू हो गया और तरह-तरह की सलाहें कोई झुठी हमदर्दी तो कोई तानाशाही मारना अरे ये तो पूरी तरह अपाहिज़ हो गई,अरे रजनी ये तो तुम्हारे उपर बोझ बन गई है,रजनी तुम्हारी तो सारी जमा पूंजी ही ख़त्म हो गई।

मम्मी और मामा, नानी कोशिश करते थे कि लोग मिलने-जुलने वाले बाहर से बैठक से ही चले जाएं, मगर नहीं बड़े ढीठ होते हैं कुछ लोग।

रजनी ने अपने भाई के साथ मिलकर बहुत सारी रिसर्च कर रखी थी सबसे पहला काम था रविशा के लिए प्रोस्थेटिक लेग्स बनवाने के लिए पैरों का नाप देने जाने का काम चालू किया रविशा को लेकर रजनी और मामा जयपुर में बनवाया फिर उससे चलने की प्रेक्टिस करवाना रविशा का विश्वास लाने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ी। रविशा चलने में डरती भी गिरी भी पर जब देखा की मम्मी और मामा, नानी जी जान से मुझे अपने पैरों पर चलाने की भरसक कोशिश कर रहे हैं तो मुझे भी उनका साथ देना चाहिए।

रजनी ने खेल के मामले में जानकारी ली और पहले एथलीटों की से मिली और विकलांग बच्चों को कैसी ट्रेंड किया जाता है , बड़े शहरों के कोच से मिली वहाँ के कोच ने बताया हम इस को धीरे-धीरे रेस, और कुछ खेलों के लिए तैयार करते हैं। रविशा को भी थोड़ी राहत मिली जब उसको वहाँ अपने जैसे खिलाड़ी दिखे और उनका उत्साह देखते ही बनता था तो रविशा में भी आत्मविश्वास जागा और चलने दौड़ने के लिए मेहनत करने लगी उसने प्रण लिया मुझे ईश्वर ने एक ज़िन्दगी और दी है तो मैं अपनी मम्मी के लिए फिर से अपना सपना साकार कर के रहूंगी।



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