जिद्दी देवदूत
जिद्दी देवदूत
स्वर्ग में हजारों देवदूत पर उन सब में सबसे जिद्दी देवदूत एक ही थी, देवांशी। उसका बस चलता तो हर नियम क़ानून तोड़ जो मन आया करती। पर क्या करें, बेचारे देवदूत वही कर सकते हैं जो ईश्वर चाहे। ईश्वर एक बार हम इंसानों की गलती तो माफ़ कर देते हैं पर देवदूतों की बिल्कुल नहीं। बस एक गलती हुयी नहीं कि देवदूत को झट से शापित कर दिया जाता है।
कड़े नियमों में बंधी देवांशी फिर भी अपनी मनमर्जी कर ही लेती थी। नियमों कानूनों के बीच में जो भी अधूरा अनकहा रह गया होता उसे चतुराई से अपनी इच्छानुसार मोड़ने की कला में माहिर हो चली थी।
अब देवदूत अपनी मर्जी से खुद-ब-खुद तो पृथ्वी पर जा नहीं सकते थे। पर कोई उन्हें याद करे या मदद के लिए बुलाये तो फिर वो वहाँ जा सकते थे। सो देवांशी भी पृथ्वी पर रहने वाले एक नवयुवक की मदद की पुकार सुन यहाँ आयी थी। मदद भी कर दी उसने। पर फिर यहाँ और घूमने की इच्छा थी तो उसने उस लड़के से वचन ले लिया कि वह हर रविवार को सुबह-सुबह किसी न किसी मदद के लिए उसे पुकारे ही पुकारे।
बस अब हर हफ्ते देवांशी मजे में यहाँ पृथ्वी में घूमने-फिरने लगी। घूमते फिरते वो स्वर्गलोक का वर्णन भी नवयुवक को बताती जाती। अब तो नवयुवक का मन भी स्वर्ग देखने के लिए व्याकुल हो उठा। इतनी सुंदर जगह एक बार भी देखने को मिल जाती तो क्या बात। अब नवयुवक बेचारा तो जानता नहीं था कि एक बार उसकी आत्मा स्वर्ग चली गयी तो वापस वो अपने शरीर में नहीं आ पाएगी।
देवांशी जानती थी पर अब उसे नवयुवक का साथ अच्छा लगने लगा था। इसलिए वो उसे हमेशा के लिए अपने साथ स्वर्ग ले जाना चाहती थी।
शायद बेचारा नवयुवक असमय ही मृत्यु पाकर देवांशी की ज़िद का शिकार हो स्वर्ग पहुँच जाता। पर उसकी किस्मत अच्छी थी कि उसने देवांशी की एक दूसरे देवदूत के साथ उसके बारे में की जा रही बातें सुन ली। जब उसे पता चला कि एक बार स्वर्ग जाने के बाद वो वापस धरती पर नहीं आ पायेगा तो उसने देवांशी को आड़े हाथ लिया। देवांशी भी उसे साथ ले जाने की ज़िद पर अड़ गयी और जबरदस्ती उसके शरीर से उसकी आत्मा को बाहर खींच लिया। लड़का बेचारा उससे आत्मा वापस शरीर में डालने की चीख पुकार करते-करते मर गया।
देवांशी ने अपनी ज़िद तो पूरी कर ली पर जब ईश्वर को उसकी इस हरकत का पता चला तो उन्हें बेहद क्रोध आया। चूँकि लड़के की मौत का समय नहीं आया था इसलिए ईश्वर ने उसकी आत्मा को तुरंत वापस उसके शरीर में भेज दिया।
फिर उन्होंने देवांशी को श्राप दिया कि चूँकि उसे शरीर से प्राण निकाल बाहर करने का काम ही भाता लगता है अतएव अब वह देवदूत नहीं यमदूत हो जाए। ईश्वर के श्राप के असर से देवांशी तुरंत यमदूत बन गयी।
अब देवांशी को बेहद पछतावा हो रहा था। लेकिन अब लकीर पीट के क्या हासिल होता। इतनी जिद्दी न होती और नियम कानूनों का पालन किया होता तो यूँ यमदूत न बनना पड़ता।
आज भी देवांशी यमदूत ही है और प्रतीक्षा में है कि कब ईश्वर उसकी सजा को ख़त्म कर उसे वापस देवदूत बनायें।