Prabodh Govil

Inspirational

4  

Prabodh Govil

Inspirational

झंझावात में चिड़िया - 5

झंझावात में चिड़िया - 5

6 mins
215


खेल की दुनिया अजबगजब है। ये युवाओं की दुनिया है। और इंसान की ज़िंदगी में जवानी कब आती है कब जाती है, कोई नहीं जानता।

प्रकाश पादुकोण जैसे महान खिलाड़ी भी उम्र का पैंतीसवा साल जातेजाते ये सोचने लगे कि अब नई कोंपलों को जगह देनी चाहिए। खेल के मैदान में तो सपनों और उम्मीदों से लबरेज़ युवा ही चहकते हुए अच्छे लगते हैं।

सक्रिय खेल जीवन से संन्यास ले लेने की बात अब इस लीजेंड बन चुके शख़्स के दिमाग़ में भी आने लगी।

अब पारिवारिक जिम्मेदारियां भी उनके वक्त की मांग करती थीं।

दुनिया को बहुत देखा... दुनिया को बहुत दिखाया... अब परिवार के साथ समय बिताने की ललक और लगातार कड़ी मेहनत करते रहे शरीर को तनिक विश्राम देने के खयाल भी उमड़ने लगे।

डेनमार्क जैसे ठंडे देश के वो स्निग्ध लम्हे उन्हें रोमांचित करते थे जब कठिन अभ्यास के बाद सुबह घर लौटते ही बर्फीले रास्तों के बीच काले गोल पत्थरों की घुमावदार सड़क पर कोई आया प्राम में उनकी कपास के फूल सी बिटिया को टहलाती हुई दिखाई दे जाती और बिटिया को दुलारतेपुचकारते हुए वो अपना रैकेट तो प्राम में रख देते और हाथों में बिटिया को झुलाते हुए अपार्टमेंट में दाख़िल होते। पत्नी उज्ज्वला के हाथ की बनी कॉफी का प्याला एक हाथ में और बिटिया दूसरे हाथ में... तब पत्नी टुकुर टुकुर ताकती बिटिया को संभालती और थकान भूले प्रकाश कॉफी का सिप लेते। बिटिया की बड़ी- बड़ी आंखें मानो तभी से मम्मी- पापा को उसके भविष्य के बारे में कुछ कहती दिखाई देती।

किसी लैंडस्केप सा वो घर उज्ज्वला से पूछताक्या ये घर, ये शहर, ये मुल्क तुम्हारा नहीं? तुम लौट जाओगे? और मौसम की उदासी कोहरे में घुल जाती।

प्रकाश सक्रिय खेल जीवन और प्रतिस्पर्धाओं की चकाचौंध से जल्दी ही बाहर निकल आए।

लेकिन जो नाम कमाया था उसके जलवे इतनी जल्दी तो सिमटने वाले नहीं थे। लिहाज़ा प्रकाश पादुकोण को एक दिन भारतीय बैडमिंटन संघ का अध्यक्ष बना दिया गया।

ये उनकी ख्याति का सम्मान था। ये उनके अनवरत परिश्रम का रेखांकन था। उन्हें बधाइयां मिलने लगीं।

अब एक नई तरह की जिम्मेदारियों, अलग रंग की हलचलों ने उन्हें घेर लिया।

उन्होंने बचपन में खूब देखा था कि उनके पिता मैसूर बैडमिंटन एसोसिएशन के सचिव के रूप में किस तरह खेल और खिलाडि़यों के भविष्य और मुद्दों के लिए चिंतित रहते थे। उन्होंने भी अपने अनुभवों से खेल के इस किले को सजानेसंवारने के जतन शुरू कर दिए।

किंतु शायद ये भी सच है कि खेल का मैदान और खेल प्रशासन का मैदान एक सी फितरत नहीं रखते।

खेल में आप ख़ुद जीतने का लक्ष्य रखते हैं जबकि किसी खेल संघ का पदाधिकारी बन कर आपको दूसरों की जीत का रास्ता बनाना पड़ता है।

ख़ैर, वो प्रकाश पादुकोण थे। खेल के खैरख्वाह!

उन्होंने देश में बैडमिंटन की बेहतरी और लोकप्रियता के लिए नई सोच और नए इरादों से काम किया।

जैसे शिक्षक और विद्यार्थी दोनों मेहनत करते हैं किंतु सफ़ल होने के बाद छात्र तो अगली पायदान चढ़ जाता है पर शिक्षक उसी पायदान पर रह जाता है। जीतने के आदी प्रकाश के लिए ये एक नया अनुभव था।

लेकिन एक ऐसा व्यक्ति जिसने अकेले अपना संघर्ष अपने दम पर लड़ कर अपने लिए दुनिया के सबसे ऊंचे मुकाम पर अपनी ख़ास जगह बनाई हो, सरकारी नीति नियमों के बंधन में बंध कर जल्दी ही इस जिम्मेदारी से ऊब गया।

कुछ ही समय के बाद प्रकाश ने भारतीय बैडमिंटन संघ का अध्यक्ष पद छोड़ दिया।

बच्चे बड़े हो रहे थे। उन्हें एक और बिटिया मिल गई थी और उनका ये छोटा सा परिवार हर पल ये एहसास दिलाता था कि अब उन्हें घर परिवार के एक ऐसे कोर्ट पर खेलना है जहां एक ओर वो और पत्नी उज्ज्वला हैं और दूसरी ओर उनकी दोनों प्यारी बेटियां।

अब उन्होंने बैंगलोर शहर को ही अपना ठिकाना बना लिया क्योंकि अब बच्चों की पढ़ाई भी शुरू होनी थी।

सदी के जाते- जाते नन्हे बच्चे भी इतना समझ गए थे कि वो न तो कोई मामूली बच्चे हैं और न उन्होंने किसी साधारण घर में आकर अपनी आंख खोली है। उनके साथ एक विश्वविजेता का परिवार होने का गौरव जुड़ा है। उनके साथ एक चमकदार इतिहास की आभा है और दुनिया भर की शुभकामनाएंशुभभावनाएं हैं। उन्हें अपने स्कूल और घर में दोस्तों के बीच बराबर ये एहसास होता था कि वो ख़ास हैं और उन्हें ज़िन्दगी में कुछ ख़ास ही करना है।

घर के कौनेकौने में विश्व की चुनिंदा ट्रॉफियों का जमावड़ा, अलमारियों में सोने- चांदी के ढेरों पदक, विश्व की महान हस्तियों के संग- साथ में अपने पिता की तस्वीरों का ज़ख़ीरा, ये सब बच्चों को निरंतर याद दिलाता था कि उनकी ये मिल्कियत अब सही वारिस बनकर उन्हें ही सहेजनी है। इस एहसास ने बालपन से ही दोनों बेटियों के मानस में सुनहरे सपने बोए।

मां उज्ज्वला वैसे तो एक घरेलू महिला ही थीं जिन्होंने कभी कोई सर्विस या अपना कार्य नहीं किया था किंतु उनकी पृष्ठभूमि एक ऐसे अनुशासित परिवार की थी कि एक महत्वाकांक्षी परिवार को संभालने में उन्होंने कभी कहीं कोई ढील नहीं छोड़ी।

उज्ज्वला के पिता ब्रिटिश अनुशासन के कायल थे और उन्होंने यही संस्कार अपनी बेटी को दिए थे। नतीजा ये हुआ कि प्रकाश का अपना ये परिवार शुरू से ही एक सख़्त अनुशासन और नियमों में बंधा रहा। दिनचर्या की यह समयबद्धता जीवन पर्यन्त सब में दिखाई दी। स्वयं प्रकाश भी एक वर्ल्ड लेवल के खिलाड़ी होने के नाते एक संतुलित और संयमित जीवन जीने के अभ्यस्त शुरू से ही रहे थे, अब पत्नी के संस्कारों की साज- संभाल ने मानो जैसे सोने पर सुहागा ही कर दिया।

प्रकाश को उनके एक स्कूली मित्र ने बचपन में ही एक दिलचस्प कहानी सुना डाली थी जिसने उनके मन पर गहरा असर डाला।

कहानी कुछ इस तरह थीएक मशहूर क्लब में दो मित्र रोज़ शाम को थोड़ी गपशप और हल्के ड्रिंक्स के लिए मिला करते थे। एक दिन दूसरा मित्र वहां पहुंचा तो उसने पहले को गमगीन उदास बैठे पाया।

ऐ, क्या हुआ? हम यहां हंसने- खुश होने के लिए आते हैं, मुंह लटकाकर बैठने नहीं! दोस्त ने कहा।

और तब उसने उदासी का कारण बताया, बोलामेरा बेटा अपने स्कूल से विदेश में एक खेल स्पर्धा में भाग लेने के लिए चुना गया था।

अच्छा, मगर ये तो बहुत खुशी की बात है। इसमें चिंता की क्या बात? कब जायेगा? दोस्त ने कहा।

आ भी गया वापस! दोस्त ने दुखी होते हुए कहा।

दोस्त को आश्चर्य हुआ, उसने पूछाअच्छा, तो क्या हार गया? कोई बात नहीं, अरे ये ही बहुत गर्व की बात है कि इतनी सी उम्र में विदेश खेलने गया। हारजीत तो चलती ही रहती है।

तब मित्र ने कहाहारा नहीं। वो चैंपियन बन गया।

हुर्रे! तब क्यों मुंह लटका कर बैठा है यार? दोस्त ने उसकी पीठ पर एक ज़ोरदार धौल जमाया।

और तब मायूस दोस्त ने अपनी उदासी का कारण बताया कि जबसे मेरा बेटा विदेश से जीत कर लौटा है तब से वह मेरी कोई बात नहीं मानता। मैं जो कहूं उसका ठीक उल्टा करता है।

ओह! कह कर दोस्त ने बीयर का ग्लास उठाया और बोला"चीयर्स"!


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational