Prabodh Govil

Inspirational

3  

Prabodh Govil

Inspirational

झंझावात में चिड़िया - 13

झंझावात में चिड़िया - 13

5 mins
299


ये सच है कि इन चार सालों में दीपिका पादुकोण ने ओम शांति ओम जैसी सफ़लता नहीं दोहराई लेकिन इससे उनके स्टारडम में कोई कमी नहीं दिखाई दी। इसका कारण यही था कि वो कोई संयोग से या अकस्मात इस फ़िल्म जगत में नहीं चली आई थीं बल्कि उन्होंने अपनी नैसर्गिक प्रतिभा और मेधा के बावजूद सीढ़ी दर सीढ़ी एक लंबी रेस की तैयारी की थी।

वे अपने शहर बैंगलोर से मुंबई में आने के बाद से कभी ख़ाली नहीं रहीं। यहां अपनी चाची के साथ रह कर उन्होंने फ़िल्मों में किसी स्टारकिड की भांति दस्तक नहीं दी। वे पहले ही मॉडलिंग का शिखर छू चुकी थीं। उन्हें अपने पिता के नाम और कद की ज़रूरत भी भला क्यों पड़ती, उनका अपना ख़ुद का ही पर्याप्त नाम और छवि बन चुके थे।

बैंगलोर के सोफिया स्कूल की ये तेज़ दिमाग़ छात्रा बाद में माउंट कारमेल कॉलेज से निकल कर जब ग्लैमर वर्ल्ड में झलकी, तब तक उसकी आयु कुल सत्रह साल भी नहीं थी। यहां तक कि बीए के लिए भी उसे समय नहीं मिल पाया था पर संपूर्ण व्यक्तित्व गढ़ने की अपनी महत्वाकांक्षा के चलते उन्होंने दिल्ली के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय में पंजीकरण करवा लिया था। वे समाजशास्त्र विषय पढ़ना चाहती थीं।

ये बात अलग है कि अपनी अन्यान्य सफलताओं के चलते उन्हें ये कोर्स बीच में ही छोड़ना पड़ा। वे इसे पूरा करने का समय नहीं निकाल पाईं।

और इस व्यस्तता का कारण सिर्फ यही था कि उनके पास एक दिन में बस चौबीस घंटे ही होते थे। अब चौबीस घंटे में इंसान क्या- क्या करे?

अनुपम खेर के एक्टिंग स्कूल से अभिनय के गुर सीखे, श्यामक डावर की नृत्य अकादमी से बेहतरीन डांस सीखे, या फिर फ़िल्मों में अपने स्टंट्स खुद परफॉर्म करने के लिए बड़े व चुनिंदा अभिनेताओं की भांति जापानी मार्शल आर्ट्स जुजुत्सु सीखे? अपनी फ़िल्म "चांदनी चौक टू चाइना टाउन" के लिए उन्होंने ये भी सीखा।

पांच फुट साढ़े आठ इंच लंबी, बैडमिंटन और बेस बॉल की उम्दा खिलाड़ी रही दीपिका के पास लॉरियल पेरिस, टिसॉट, नेस्केफ़े, सोनी साइबर शॉट, मंत्रा, मेबिलीन, कोकाकोला, आई नियर और वॉग जैसे प्रतिष्ठित कंपनियों के मॉडलिंग ऑफर्स भी तो लगातार आते रहते थे।

इतना ही नहीं, अपनी मौलिक विचार और चिंतन की काबिलियत के कारण उनका दिल एचटी सिटी के फ्रीलांस लेखन का प्रस्ताव छोड़ने को भी तैयार नहीं होता था।

दूसरी ओर अपने करियर के लिए अत्यंत महत्वाकांक्षी दीपिका इतनी होमसिक थीं कि मुंबई में अपनी चाची के पास रहते हुए और अपनी पहली फिल्म "ओम शांति ओम" की प्रोड्यूसर फराह खान को अपनी दूसरी मां कहते हुए भी अपने घर बैंगलोर जा पाने का कोई मौका वो नहीं छोड़ पाती थीं।

यहां चाहे अब पिता ने एक्टिव खेल से नाता तोड़ लिया हो, चाहे मां ने अपना पुराना ट्रैवल एजेंसी का काम पूरी तरह भुला दिया हो, चाहे छोटी बहन गोल्फ़ में अपनी दक्षता के बीच पूरी तरह व्यस्त हो गई हो, दीपिका को उनके साथ कुछ समय बिताना हमेशा से भाता था। अपनी अतिव्यस्त दिनचर्या में से किसी तरह कुछ लम्हे निकाल कर घर पहुंची दीपिका को पापा से इतना लगाव था कि वो पापा के ओलंपिक गोल्ड क्वेस्ट के काम में भी सहयोग करना नहीं भूलती थी। ये क्वेस्ट ओलिंपिक खेलों में भारतीय खिलाड़ियों के संरक्षण और सहयोग के लिए लगातार काम कर रहा था। इसके सुखद परिणाम भी सामने आने लगे थे। ओलिंपिक खेलों के छः भारतीय पदक विजेताओं में से चार ओजीक्यू के संरक्षित खिलाड़ी ही रहे थे।

अपनी पहली बड़ी सफ़लता के लगभग पांच साल बाद उनकी फ़िल्म आई "कॉकटेल"! इस फ़िल्म का निर्माण स्वयं सैफ़ अली खान ने किया था। इसके डायरेक्टर थे होमी अदजानिया। ये फ़िल्म पसंद की गई और बॉक्स ऑफिस पर हिट भी साबित हुई।

ख़ास बात ये थी कि इस फ़िल्म ने भारत से ज़्यादा कारोबार दुनिया के दूसरे देशों में किया। ये हल्की फुल्की कॉमेडी थी मगर अपने कसे हुए निर्देशन और कलाकारों के उम्दा अभिनय के कारण हिट हुई। इसमें सैफ और दीपिका के साथ बोमन ईरानी, डायना पेंटी, रणदीप हुड्डा और डिंपल कपाड़िया जैसे एक्टर्स शामिल थे।

इस फ़िल्म ने दीपिका के साथ - साथ सैफ़ के लिए भी नई ज़मीन तोड़ी।

दीपिका पादुकोण की अपने भविष्य को लेकर चिंता और इस चिंता से उपजा कथित डिप्रेशन भी इस फ़िल्म ने दूर किया। वो एक बार फ़िर चर्चाओं में आ गईं।

इस फ़िल्म के लिए उन्हें एक बार फ़िर फ़िल्मफ़ेयर अवॉर्ड समारोह में बेस्ट एक्टर फीमेल के लिए नॉमिनेट किया गया।

संयोग से इस बार भी वो ये पुरस्कार पाने से चूक गईं, लेकिन ये निस्संदेह उनके लिए एक उपलब्धि तो थी ही कि उन्होंने एक साधारण कॉमेडी फ़िल्म में भी अपनी एक्टिंग के जलवे दिखाए।

ये शुरू से ही देखा जा रहा था कि दीपिका पादुकोण केवल दौलत, ग्लैमर और शोहरत के लिए ही फिल्मी दुनिया में आने वाले कलाकारों में से नहीं हैं। उनमें अपने समाज को लेकर भी एक अलग तरह का जज़्बा आरंभ से ही देखा गया।

उनका समाजशास्त्र विषय पढ़ने में रुचि लेना, पिता के साथ - साथ देश के खेल और युवा मामलों में दखल रखना मात्र ही उन्हें संतुष्ट नहीं रख पाया बल्कि इससे कहीं आगे बढ़ कर उन्होंने महाराष्ट्र राज्य में समाज की बेहतरी के लिए चलाए जा रहे ग्रीनथॉन अभियान में भी अभिरुचि प्रदर्शित की। उन्होंने इस हेतु अंबेगांव नामक स्थान को एडॉप्ट भी किया, जिसे साधारण बोलचाल की भाषा में गांव को गोद लेना कहा जाता है।

यह एक "व्यक्ति" के रूप में उनकी सोच के मौलिक सरोकारों को दर्शाता है। किसी सौंदर्य स्पर्धा के मंच पर कभी उनका ऐसा कोई कमिटमेंट नहीं था कि वो समाज सेवा से जुड़ेंगी किंतु उनकी बुनियादी सोच इस तरफ़ ज़रूर दिखाई दी। कोंकणी मातृभाषा होने और कोंकण इलाके की मूल पैदाइश होने के कारण समीपवर्ती महाराष्ट्र प्रदेश के लिए उनका ये सम्मान और लगाव निश्चय ही उनके दिल में कहीं गहराइयों से रहा होगा। कर्नाटक उनकी जन्मभूमि रही किंतु महाराष्ट्र उनकी कर्म भूमि बन चुकी थी।

इस वर्ष उनकी एक और बड़ी सफ़लता उनके शुभचिंतकों की नज़र में दर्ज़ हुई। उन्हें "पीपुल मैगज़ीन" ने वर्ष दो हज़ार बारह की देश की सबसे खूबसूरत महिला के रूप में चुना।

देश की कई ब्रह्मांड सुंदरियों, विश्व सुंदरियों अथवा भारत सुंदरियों के लिए उनका ये खिताब मन ही मन ज़रूर ईर्ष्या का एक कारण रहा होगा। किंतु अब उनमें से अधिकांश फ़िल्म स्टार ही बन चुकी थीं, तो फ़िर एक ही प्रोफ़ेशन के लोगों के बीच ईर्ष्या कैसी?

मृदुभाषी, मिलनसार और सरल दीपिका के रिश्ते सभी के साथ दोस्ताना बने रहे।

वे सफ़लता, सुंदरता और सरलता का कॉकटेल बनी रहीं।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational