जब सब थम सा गया (दिन-34)
जब सब थम सा गया (दिन-34)


प्रिय डायरी,
कल रात से चल रही बारिश सुबह भी हो रही थी। लेकिन कुछ देर बाद खत्म हो गयी। मैं सुबह उठ कर चारो और देखने लगा। सूर्योदय का समय हो चूका था लेकिन सूर्य के दर्शन आज संभव नहीं थे। मैं स्नान करके नीचे पहुंच गया,पूजा पाठ समाप्त करके बैठ गया लेकिन बारिश की वजह से केबल नहीं आ रहा था। टीवी बंद कर मैं नास्ता करने के बाद अपने कमरे में जाकर किताब पढने लगा क्यूंकि और कोई उपाय नहीं था। बहुत देर तक किताब पढ़ने के बाद लगभग 11 बजे बिजली भी चली गयी। बाहर निकल कर देखा थो विद्युत विभाग के लोग बिजली के तारो और खम्बो को सही कर रहे थे। मौसम ठंडा ही था इस कारण मैंने अपनी किताब को पढ़ना चालु रखा। किताब पढ़ते पढ़ते मैंने देखा की मेरा मोबाइल डिस्चार्ज हो गया। लेकिन बिजली न होने के कारण मैं कुछ कर भी नहीं सकता था।
कुछ देर बाद लगभग बारह बजे के लगभग बिजली आई। मैंने अपना फ़ोन चार्जिंग पर लगा कर नीचे चला गया। मुझे नीचे आता देख चाचाजी ने कहा,"कैरम हो जाये?"मैंने कहा," हाँ ठीक हैं चलिए कैरम हो जाये,"फिर हम सभी कैरम खेलने लगे। 1:30 बजे दोपहर के भोजन के बाद मैं अपनी बची कहानी लिखने लगा। 3 बजे तक अपनी सभी बची हुए कहानियां पूरी करके मैं कुछ देर के लिए लेट गया। थोड़ी देर बाद मेरे साथ में काम करने वाले शिक्षक साथी का फ़ोन आया। दरहसल निम्बाहेड़ा में कोरोना संक्रमण के कुल मिलाकर 6 पॉजिटिव कोरोना कोरोना संक्रमित मरीजो की सूचि आ चुकी थी।
मैंने उनसे संभलकर रहने को कहा क्योंकि जो मरीजो की सूचि आई थी उनमे से एक लोग उनकी कॉलोनी में ही रहते थे। बात समाप्त कर में कुछ देर के लिए अपनी दुनिया में खो गया और सोचने लगा की दुनिया कैसी हो गयी हैं। यदि हम सब का ऐसा ही जीवन होता तो क्या होता? ये सोचकर ही मेरे को घबराहट होने लगती हैं। बस ईश्वर से यही प्रार्थना करता हूँ की सब कुछ जल्दी से सही हो जाये। यही सब सोचते हुए मैं सो गया। 5 बजे के लगभग मेरी नींद खुली तो मैंने देखा की बहुत तेज धूप हो रखी हैं। रेम्बो भी जोर जोर से भोक रहा था।
मैं नीचे जाकर उसको टहलाने के लिए बाहर ले गया। कुछ देर टहलाने के बाद में उसको वापिस घर लेकर आ गया। पौधों में पानी डालने की कोई भी आवश्यकता नहीं थी। इसलिए मैं घर के बाहर मंदिर के चबूतरे पर कुछ देर के लिए बैठ गया। मुझे बैठा देख रूपेश भी आकर मेरे पास बैठ गया और अपने मोबाइल में लूडो खोलकर मेरे साथ खेलने लगा। शाम की आरती का समय हो गया था। आरती के बाद मौसम फिर से खराब होने लगा और हलकी फुलकी बारिश होने लगी। मेरे समझ नहीं आ रहा था कि ये गर्मी का मौसम हैं कि बारिश का। फिर में कुछ देर टीवी देखने लगा तो समाचार में कोरिया शाषक के मृत्यु के ऊपर छान बिन चल रही थी। लेकिन अभी तक कोई सही खबर किसी को भी नहीं मालूम थी। रात्रि भोजन के बाद मैं आँगन में आकर देखा तो बूंद बांदी चल रही थी। इसलिए मैं ऊपर अपने कमरे में आकर कंप्यूटर पर कुछ काम करने लगा। कंप्यूटर पर काम खत्म करके मैं जैसे ही उठा बिजली चली गयी।
बारिश चल रही हैं और बिजली भी चली गयी। मैं बालकॉनी में खड़े होकर बिजली का इंतेजार करने लगा। लेकिन थोड़ी देर बाद ही बिजली आ गयी। मुझे लगा की हो सकता हैं बिजली फिर चली जाए इसलिए मैं अपनी आज की कहानी लिखने लगा।
इस तरह लॉक डाउन का आज का दिन भी समाप्त हो गया। लेकिन मन में बस यही सवाल चल रहा था कि लॉक डाउन कब हटेगा क्योंकि मन अब विचिलित होता जा रहा था। किसी के भी बर्दाश्त करने की एक सीमा होती हैं,लेकिन अब हालात बहुत ही नकारात्मक होते जा रहे थे। यही सब सोचते हुए मैं आज बहुत ही जल्दी 10:30 बजे ही सो गया।
कहानी देखिये कब तक चलती हैं क्योंकि लॉक डाउन 3 मई के बाद बढ़ेगा तो कहानी भी बढ़ेगी। कहानी अभी अगले भाग में जारी रहेगी...।