जानलेवा ज़िद
जानलेवा ज़िद
रिद्धिमा शुरू से एक अपडेट रहने वाली एक्टिव लड़की थी हर कॉलेज एक्टिविटी में बढ़ चढ़ कर भाग लेना उसका पैशन था। जहाँ अन्य लड़कियों का प्रदर्शन कभी कभी पीरियड्स की वजह से पिछड़ जाता वहाँ रिद्धिमा को इन समस्याओं का कभी सामना नही करना पड़ा क्योंकि उसके हाथ लग चुकी थी एक जादू की गोली। जी हाँ वही जादू की गोली जो उसके पीरियड्स का निर्धारण उसकी सुविधा से ,उसकी मर्जी के हिसाब से निर्धारित करती। यह गोली तो उसका अचूक शस्त्र थी जिसे वह बेझिझक और बेतादाद प्रयोग करती और अपनी पक्की सहेलियों को भी प्रेरित करती। अब इतनी अच्छी गोली होगी तो उसकी बिक्री भी ज़्यादा ही होगी ज़ाहिर है बिना डॉक्टर के परामर्श के आसानी से सुलभ थी तो उसका सेवन जारी रहा। घर में अगर कभी मम्मी या कोई और शुभचिंतक उसे इसके साइड इफ़ेक्ट समझाने की कोशिश करता तो उसे भी उसके अकाट्य तर्कों के सामने हथियार डालने पड़ जाते।
शादी के बाद भी रिद्धिमा ने इनका बेख़ौफ़ खूब प्रयोग किया एक दिन उसकी सास ने उसे इन गोलियों का इस्तेमाल करने को मना किया और समझाया कि बेटी कुदरत ने भी इसे धर्म कहा है खिलवाड़ ठीक नहीं अपनी सेहत से। तो उसने अपने आँसुओ का इस्तेमाल करके अपने पति पंकज को भी अपनी ओर कर लिया कि जिसने अपनी माँ को ही चुप करा दिया। घर का काम समय से हो रहा है न माँ बस उसी से मतलब रखो और हर तीज त्यौहार को वह बिना किसी विघ्न बाधा के निपटा देती है तो तुम तो फायदे में ही रहीं न मां। और आप इस पचड़े से दूर रहो तो अच्छा मियां बीवी के मामलों में ज्यादा बोल के क्यों अपनी बुराई करवा रही हो। पर पंकज!...मुझे आने वाले कल और ऊँच नीच की फिक्र है आखिर वो तेरी पत्नी है।
तो मेरी पत्नी है मैं भुगत लूँगा आपसे मदद को नहीं कहूँगा वो चिढ़कर बोला एक तो दिनभर नौकरी में खटो फिर आये दिन तुम सास बहू का युद्ध निपटाओ। गायत्री जी ने भी समझ लिया कि सास शब्द में ही खराबी है और उन्हें अपने पति प्रकाश जी की डांट भी खानी पड़ी कि बहू बेटे की निजी ज़िंदगी में ज्यादा दखलंदाजी करी तो बुढ़ापे में अलग ही रोटी बनानी खानी पड़ेगीअब रिद्धिमा का रहा स हा डर भी खत्म हो गया खूब पूजा पाठ व्रत उपवास में आगे रहती बस स्वभाव की तेजी से मजबूर थी तो गायत्री जी ने भी अब चुप्पी ओढ़ ली थी।
छोटी बहू भी अपनी जेठानी के ही पदचिन्हों पर चल निकली थी और हर कोई उन्हें यह समझा देता कि आप के बेटी नहीं है तो आप के अंदर ही लोग आसानी से कमी निकाल देंगे। एक बेटे की माँ बनने के बाद रिद्धिमा को कोई दो तीन साल बाद पीरियड्स से सम्बंधित परेशानियों ने घेरना शुरू कर दिया। चेहरे में बाल आने लगे पेट मे आये दिन दर्द रहने लगा। डॉक्टर ने उसके टेस्ट करवाये तो वह भी चौंक गईं।
पैंतीस साल की कम आयु में ही उसके साथ मेनोपॉज की स्थिति बन गयी थी। डॉक्टर ने उसे आगाह किया था कि अगर आप अपने मन से कोई दवा खा रहीं है तो प्लीज सही जानकारी दीजिये पर वह होशियारी से टाल गयी। ओवर स्मार्ट रिद्धिमा ने अभी भी खुद से दवा लेना नही छोड़ा। रविवार का दिन था पंकज मॉर्निंग वॉक के लिए अपने पाँच साल के बेटे आरव। के साथ पार्क गया था। रिद्धिमा आठ बजे तक उठ जाती थी लेकिन जब वह दस बजे तक सो कर नहीं उठी तो गायत्री जी ने दरवाजा जोर जोर से खटखटाया कोई जवाब न आने पर वह अंदर गयीं तो देखा कि वह बेहोश फर्श पर गिरी पड़ी थी। पंकज और छोटी बहू आरती की मदद से उसे पास के नर्सिंग होम में भर्ती कराया गया। उसकी सभी जाँचों और बायोप्सी की रिपोर्ट बेहद चौंकाने वाली थी। उसे सर्वाइकल कैंसर ,हॉर्मोन के असंतुलन के साथ ब्रेन स्ट्रोक भी हुआ था। अब पंकज और उसके परिवार के आगे एक विकट भयावह परिस्थिति बन गयी थी।
गायत्री देवी ने जब डॉक्टर को रिद्धिमा की दवाएं दिखाईं तो परिणाम यह निकल कर सामने आया कि इनका लंबे समय तक किया गया सेवन उसे इस मोड़ तक ले आया। एक छोटी सी गोली ने आज हँसते खेलते परिवार को कितनी बड़ी परेशानी में डाल दिया था। जब तक डॉक्टर उसकी स्थिति सम्भाल पाते वह कोमा में चली गयी। पीछे छोड़ गई असहाय पति बेटा और परिवार जिन्हें अब बड़े हॉस्पिटल बिल और दुनिया के तानों से जूझना था कि बहू की परवाह नहीं की। मौका देखकर मायके वालों ने भी उत्पीड़न का केस दायर कर दिया मुआवजे की मोटी रकम उनकी बेटी के साथ लापरवाही जो बरती थी सास ससुर ने। किस्मत वाला परिवार था जो डॉक्टर की रिपोर्ट कि यह दवा का साइड इफेक्ट था ने उनको बचा लिया।
अब मासूम बेटे की आँखों मे एक ही सवाल था कि मम्मा घर कब आओगी।