जाल
जाल
हमें हमारा हक़ चाहिए, देखते हैं कौन है जो हमें रोकता है?
नारी मुक्ति आंदोलन ज़ोर पकड़ता जा रहा था।
"हमें हमारी वह स्वतंत्रता और अधिकार चाहिए जिससे हम मंदिर में प्रवेश कर सकें।"
जुलूस में से एक कार्यकर्ता की आवाज़ आई ," बहनों देखता हूँ कौन रोकता है आपको इस हक़ के लिए?"
हां ,हां हम मन्दिर में प्रवेश करके रहेंगी और एक रेला मंदिर के लिए चल पड़ा।
महिलाएं अपने घरों में बच्चों व बूढ़े सास-ससुर को छोड़ कर दिन रात मुक्ति की मुहिम में शामिल हो रही थीं।
वहीं सामने एक पेड़ पर, मैंने देखा कि एक चिड़िया चोंच में खाना दबा कर लाई और घोंसले में बैठकर बच्चे के मुंह मे देने लगी।
थोड़ी देर में वह वापिस उड़कर दाना लेने जाती है परन्तु बिखरे दानों पर न बैठते हुए इधर उधर फुदक रही है शायद उसको आभास हो गया था कि नीचे बहेलिए ने जाल बिछा रखा है।
अचानक चिड़िया की नज़र एक चूहे पर पड़ती है जो अनाज को खाना चाहता है।
अब चिड़िया उसके लिए वह दाना छोड़ना नहीं चाहती।
वह सोचती है जिस तरह चूहा जाल काट रहा है मैं भी काट दूँगी और वह भी जाल काटने के लिए फुदकती हुई जाने लगती है।
तब तक रेला, सुरक्षा अधिकारियों को खदेड़ता हुआ मंदिर में घुस जाता है उसमें वे स्त्रियाँ भी होती हैं, जिनके लिए कहा जाता है कि रजस्वला स्थिति में स्त्री की शक्ति बहुत बढ़ जाती है और एक शक्ति को दूसरी शक्ति से टकराव को बचाने हेतु ही यह नियम बनाया गया है।
उधर नारी मुक्ति आंदोलन की सफलता का ज़श्न जोरों पर था।
" तब तक चिड़िया इस जाल में फँस चुकी थीं।"