इतनी सी बात....
इतनी सी बात....
राहुल का इंजीनियरिंग कॉलेज के अंतिम वर्ष में कैंपस प्लेसमेंट हो गया था। नौकरी लगने के कुछ दिनों बाद उसकी शादी सुमित्रा से हुई। सुमित्रा एक पढ़ी-लिखी अच्छे घराने की लड़की थी। शादी के डेढ़ साल बाद, जब मधु पैदा हुई तो घर –आँगन में मानो बहार आ गई। एक बड़ी प्राइवेट फर्म में मार्केटिंग का जॉब होने के कारण, अक्सर उसे घर से बाहर रहना पड़ता था। लिहाजा परिवार को अपने माँ-बाप के साथ गाँव में हीं रखता था। सुमित्रा को गाँव में किसी प्रकार की कमी नहीं थी। सास-ससुर बेटी की तरह ख्याल रखते और मन बहलाने के लिए, मधु जो थी। फिर भी बिना पति फूलों की सेज भी काँटों के समान लगती है। राहुल हर तीन महीने में तीन-चार दिन के लिए घर आता था। सुमित्रा के वो दिन मधुमास की तरह व्यतीत होते थे।
मधु 3 वर्ष की होने वाली थी। राहुल और सुमित्रा को उसके पढ़ाई की फ़िक्र सताने लगी। गाँव में स्तरीय शिक्षा का अभाव जो था। राहुल वापस जाने लगा तो सुमित्रा लिपट कर ज़िद करने लगी। अब अकेले मन नहीं लगता। दूसरी नौकरी की कोशिश करो, जहाँ हम साथ रह सकें। मधु को भी स्कूल भेजने का वक्त आ गया है मैं भी भगवान से प्रार्थना करूंगी।
राहुल के जाते, सुमित्रा सप्ताह में दो दिन उपवास रखने लगी और हर बार एक ही प्रार्थना करती। जल्द-से-जल्द राहुल को मनचाही नौकरी मिल जाए। शहर आकर वह भी तैयारियों में जुट गया। ड्यूटि के बाद जो वक़्त मिलता, मन लगाकर पढ़ाई करता और नौकरी के लिए इंटरव्यू देता। छः महीने बीत गए। राहुल घर नहीं गया था।
रात के 1.30 बज रहे थे। अभी-अभी बेटी को सुलाकर आँख लगी हीं थी कि मोबाइल की घंटी बज उठी। पति का नंबर देखते उसका दिल बैठने लग। इतनी रात को उनका फोन ? अभी 10 बजे ही तो बात हुई थ। कोई अनहोनी तो नहीं ? नहीं, नहीं। भगवान से कुशलता की प्रार्थना करते हुए, काँपते हाथों से फोन उठाया। पति की आवाज़ कान में पड़ते जान-में-जान आई। घबराते हुए देर रात फोन करने का कारण पूछा। “सुमी , भगवान ने तुम्हारी सुन ली। मेरा चयन एक सरकारी संस्थान में सहायक प्रबंधक के रूप में हुआ है।अभी-अभी वेबसाइट पर परिणाम अपलोड हुआ। रहा न गया, सोचा बता दूँ। एक सप्ताह बाद सर्टिफिकेट और मेडिकल जाँच है। कंपनी की तरफ से मुफ्त घर, स्वास्थ्य और बच्चों की पढ़ाई की उत्तम व्यवस्था है “, राहुल एक सांस में बोल गया। सुमित्रा के खुशी का ठिकाना न रहा। उसके सारे सपने एक झटके में पूरे होते दिखने लगे। अपनी शादी और बेटी के जन्म के बाद, पाँच वर्ष में पहला अवसर था, जब उसे इतनी खुशी मिली थी। अपने भगवान को बार-बार धन्यवाद करने लगी। सुध न रही कि राहुल मोबाइल पर है। याद आते हीं, प्यार की बौछार करने लगी। आज उसे राहुल पर कुछ ज्यादा हीं प्यार आ रहा था। बहुत देर तक बातें होती रहीं। घड़ी पर निगाह पड़ी तो 4 बज चुके थे। “सो जाओ जी, सुबह होने को है” ,कहकर न चाहते हुए भी फोन बंद किया।
एक माह के अंदर राहुल नई नौकरी में आ गया। ज्वाइनिंग करते हीं ,ऑफिसर कालोनी में आवास मिल गया। दो दिन की छुट्टी लेकर पत्नी और बेटी को
भी गाँव से ले आया। धीरे-धीरे गृहस्थी जमने लगी। कालोनी परिसर में हीं बच्चों के लिए के.जी. स्कूल था। मधु का दाखिला एडमिशन टेस्ट की औपचारिकता के बाद हो गया। विद्यालय आवास से महज 100 मीटर की दूरी पर था। राहुल उसे पैदल छोड़ने जाता और सुमित्रा छुट्टी के वक्त लेने जाने लगी। मधु यथा नामो तथा गुणों से परिपूर्ण थी। शीघ्र हीं उसकी मित्रता अपने कक्षा के सभी बच्चों से हो गई। बहुत कम समय में ,अपने अध्यापकों की फेवरेट भी बन गई। मधु अब बहुत खुश रहने लगी थी। अपना क्लास और होम वर्क समय से पहले पूरा कर लेती। प्रतिदिन अपने पिता से स्कूल की सभी छोटी-मोटी बातें बड़े उत्साह से बताया करती।
कुछ महीनों बाद ,एक दिन की बात है। सुमित्रा ने जब स्कूल डायरी देखी तो क्लास टीचर की शिकायत दर्ज थी। आज मधु ने क्लास वर्क ठीक से नहीं किया था। पूछने पर पेंसिल टूट कर छोटी होने का बहाना बना दिया। अगले दिन दूसरी नई पेंसिल देकर भेजा, लेकिन ये क्या ? आज भी क्लास वर्क पूरा नहीं किया। फिर वही बहाना , पेंसिल टूट कर छोटी हो गई थी। मधु कुछ उदास रहने लगी थी। अस्पताल में दिखाने पर कोई बीमारी नहीं निकली। एक सप्ताह बाद पैरेंट्स-टीचर मीटिंग थी। राहुल ने स्कूल जाकर क्लास टीचर से बात करने की ठानी।
क्लास टीचर ने भी आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा , “कुछ दिनों से मधु का व्यवहार असामान्य है। वह पढ़ाई में पूरा ध्यान देती है,पर न जाने क्यों क्लास वर्क नहीं कर रही है।" पिता के लाख पूछने पर वह चुप रही। टीचर के सामने हीं ,राहुल आग-बबूला हो गया। गुस्से में मधु को लेकर स्कूल के मेन गेट की ओर चल पड़ा। रास्ते में उसे एक दुबली-पतली लड़की स्कूल ड्रेस में हाथ जोड़े खड़ी मिली। उस लड़की को देखते मधु बहुत घबरा गई और चुप रहने का इशारा करने लगी। पर लड़की नहीं रुकी।
उसने अपना नाम रधिया बताया। उसकी माँ उसी स्कूल में साफ-सफाई का काम करती थी। स्कूल में काम करने के कारण उसको फीस न भरने की रियायत थी। पर वे लोग काफी गरीब थे। माँ के वेतन से बामुश्किल गुज़ारा होता था। रधिया ने बताया कि मधु उसकी एकमात्र दोस्त है। क्लास के बाकी बच्चे, उसकी सच्चाई जानने के बाद, उससे बात तक नहीं करते। पिछले एक सप्ताह से उसकी पेंसिल खत्म हो गई थी। पैसे की तंगी की वजह से नई पेंसिल नहीं खरीद पाई। मधु प्रतिदिन अपनी पेंसिल क्लास वर्क के लिए उसे दे देती है और खुद उसकी बची हुई पेंसिल से अपना काम चलाती है।
रधिया की बात सुनते –सुनते राहुल का सारा गुस्सा पिघलकर आँखों से बहने लगा। आज उसे मधु का बाप होने पर बड़ा गर्व महसूस हो रहा था। राहुल के आँसू देख मधु और रधिया भी रोने लगे। बड़ी मुश्किल से राहुल ने अपने आप को संभाला। दोनों को गले लगाकर प्यार से डांटते हुए बोला – इतनी सी बात। पहले बता देती।अब रोज़ाना दो पेंसिल लेकर आना और हाँ , रधिया ! कोई भी जरूरत हो ,बेहिचक मांग लेना। तीनों के आँखों से आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे।