बैरन लिफाफा
बैरन लिफाफा


बात उस दशक की है, जब अधिकतर पोस्ट कार्ड का प्रचलन था। लिफ़ाफ़े का भी इस्तेमाल होता था,पर अधिकतर प्रेम- पत्र के रूप में। गोपनीय और अति आवश्यक सूचनाएं भी लिफ़ाफ़ों में अक्सर भेजे जाते थे। इस तरह के पत्र ,बैरन लिफ़ाफ़े के रूप में ज्यादातर भेजे जाते थे। बैरन लिफ़ाफ़े यानी बिना वंछित टिकट लगे। चूँकि डाकिया को प्राप्तकर्ता से निर्धारित शुल्क वसूलना होता था। अतः ऐसे पत्रों के पहुंचने की गारंटी मानी जाती थी।
सुरेश उन दिनों डाक और तार के उस विभाग का प्रमुख था, जो अधूरे पते पर भेजे गए पत्रों को सही पते पर भेजवाने का काम करता था। जरूरत पड़ने पर लिफ़ाफ़े खोलकर अंदर लिखे मैसेज से उसके प्राप्तकर्ता के पते का अनुमान लगाया जाता था, पर इसके लिए सुरेश की अनुमति आवश्यक थी।
एक दिन सुरेश के सामने उसके कर्मचारी ने एक बैरन लिफ़ाफ़ा पेश किया, जिसमें प्राप्तकर्ता और प्रेषक का पता बड़ा दिलचस्प था :
सादर प्रेषित,
पूजनीय भगवान भोलेनाथ,
कैलाश पर्वत
प्रेषक,
पुजारी हरिहर दास
शिव मंदिर, हनुमान गढ़ी,
आलोक नगर
सुरेश की दिलचस्पी बढ़ी। उसने सभी कर्मचारियों के समक्ष लिफ़ाफ़ा खोला और बोल- बोलकर पढ़ना शुरू किया।
परम पूज्य भगवान भोलेनाथ,
मैं आपके मंदिर का एक सेवक हरिहर दास लिख रहा हूँ। आप तो जानते हैं, बचपन से आपकी सेवा में लगा हूँ। आपको आने वाले चढ़ावे से बमुश्किल गुज़ारा होता है। मुझे 2000/- रुपये की बड़ी जरूरत है। कृपया 30 दिन के अंदर मेरे पते पर जरूर भेज दीजिएगा ,नहीं तो मैं जान दे दूँगा ।
आपके मनीऑर्डर के इंतज़ार में,
सेवक,
हरिहर दास
सभी हँसने लगे। पर सुरेश को दया आ गई। उसने चुपके से 1000/- रुपये लिखे पते पर भेज दिये।एक माह बाद उसी पते का दूसरा बैरन लिफ़ाफ़ा घूम फ़िरकर उसी विभाग में पहुँचा। लिफ़ाफ़ा सुरेश के सामने पेश हुआ । सभी कर्मचारी उत्सुकतावश इकट्ठे हो गए। सुरेश पढ़ने लगा ;
पूजनीय भोले नाथ,
आपका भेजा हुआ पैसा मुझे मिला। मैं आपको कोटिशः प्रणाम करता हूँ और दया के लिए शुक्रिया अदा करता हूँ।मुझे पूरा विश्वास है कि आप 2000/- रुपये ही भेजे होंगे, पर डाक विभाग वाले आधे पैसे खा गए।
इस बार भी सभी कर्मचारी हँसने लगे। सुरेश भी ठहाके मार के हँसने लगा। उसे किसी जरूरतमंद की मदद पर अपार खुशी मिली थी।