इस्कॉन की कहानी
इस्कॉन की कहानी
बात 1922 के कलकत्ता की है, अभय चरण बाबू और उनके मित्र शहर के एक अनोखे सन्यासी को देखने उनके सत्संग पहुंचे।
उन्होंने देखा कि एक जवान सन्यासी बिना किसी पुस्तक के लंबे चौड़े व्याख्यान दे रहे थे। उनके मुख मंडल से तेज़ निकल रहा था। उन्होंने बताया कि इस भौतिक जगत के बाहर भी एक आध्यात्मिक जगत है उस जगत में जाकर गीता का ज्ञान सारी दुनिया में पहुँचाने के प्रयास की आवश्यकता है।
अभय बाबू ने मन ही मन उन्हें अपना गुरु मान लिया। उन्होंने निर्णय किया कि वे उनकी इच्छा पूरी करने की कोशिश करेंगे। वह सन्यास भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर थे जल्द ही अभय बाबू ने एक मैगज़ीन निकाली जिसका नाम था “बैक टू गॉडहेड”। जिसके द्वारा पढ़े -लिखे समाज को ये समझाने की कोशिश की गई कि भौतिक जगत से ऊपर उठकर अध्यात्म की ओर बढ़ें। उन्होंने एक संगठन बनाया जिसका नाम था “लीग ऑफ़ डिवोटीस” लेकिन अभी भी उनके गुरु का सपना अधूरा था।
इसी तरह कई वर्ष बीते।1965 में एक बूढ़ा सन्यासी विनती कर के अमेरिका जाने वाले मालवाहक समुद्री जहाज़ में जाने की टिकट ले लेता है। ये सन्यासी अभय बाबू ही थे, लेकिन अब भक्तिवेदांत स्वा के नाम से जाने जाते थे। उनके पास पूँजी के नाम पर कुछ श्रीमद भागवद की प्रतिलिपियाँ और एक जोड़ी कपड़े , मन में अपने गुरु की आज्ञा और दिल में कृष्ण के लिए प्रेम था।
जहाज़ में कई दिक्कतें हुईं। स्वामी जी को दो दिल के दौरे पड़े किंतु उन्होंने यात्रा जारी रखी।
जब वे अमेरिका के बोस्टन पहुंचे तो वे अमेरिका के नशेबाज़ों, हिप्पियों और ड्रग के लती लोगों को देख कर चिंतित हुए, किंतु उन लोगों के बीच कृष्ण कीर्तन करना प्रारंभ किया। धीरे-धीरे उनकी बातें सुन कर वे लोग नशा, व्यभिचार, और माँस खाना छोड़ने लगे।
फिर स्वामी जी ने इस्कॉन की स्थापना की। धीरे धीरे “हरे कृष्ण महामंत्र” हर घर में फैल गया। बड़े- बड़े संगीतकार, दार्शनिक, वकील, धर्मशास्त्री, राज नायक और नेता उनसे मिलने आने लगे। इस्कॉन, स्वामी प्रभुपाद के नेतृत्व में फलने-फूलने लगा। दुनिया में सैकड़ों मंदिर, आश्रम खोले गए और लाखों लोगो को हरि नाम से परिचित कराया गया। उन्होंने पुरी, ओडिशा में होने वाली जगन्नाथ यात्रा को संपूर्ण दुनिया में कराया। दुर्भाग्यवश इस बीच स्वामी इस दुनिया को छोड़ गये।
इस्कॉन का मुख्य केंद्र बंगाल और वृन्दावन में है। भारत की वेदिक संस्कृति को फैलाने के लिए इस्कॉन काफ़ी प्रयासरत हैं।
बंगलौर में इनकी अक्षय पात्र नामक संस्था मिड डे मील के अंतर्गत बच्चों को मुफ्त और सात्विक भोजन कराती है।
