इरोम चानू शर्मीला
इरोम चानू शर्मीला
इरोम चानू शर्मिला का जन्म 14 मार्च 1972 में मणिपुर में हुआ था। वह मणिपुर की मानवाधिकार और राजनीतिक कार्यकर्ता रही हैं। इरोम भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों में लागू आर्म्ड फोर्स स्पेशल पॉवर एक्ट के खिलाफ़ नवंबर 2000 से अगस्त 2016 तक लगातार 16 वर्षों तक अनशन पर बैठी रहीं।
आफ्सपा कानून के तहत सुरक्षाबल बिना वारंट के किसी को भी गिरफ्तार कर सकते हैं।इरोम एक लोकतांत्रिक देश में सभी नागरिकों के एक समान अधिकार की मांग कर रही थीं।
नवंबर 2000 में मणिपुर की राजधानी इम्फाल से 8–10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मालोम गांव में आर्मी के जवानों पर कथित तौर पर यह आरोप लगा था कि उन्होंने यहां के 10 स्थानीय लोगों की हत्या कर दी थी। इसी जगह से इरोम का अनशन शुरू हुआ था।मणिपुर में उस घटनास्थल पर स्थानीय लोगों ने उन 10 लोगों की याद में एक स्मारक बनाया है जिसका नाम ‘इनोसेंट्स मेमोरियल’ रखा गया। वह इम्फाल के ‘जस्ट पीस फाउंडेशन’ नामक गैर सरकारी संगठन से जुड़कर भूख हड़ताल करती रहीं। भूख हड़ताल के तीसरे दिन सरकार ने इरोम शर्मिला को ‘आत्महत्या करने के प्रयास’ के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया और 2004 तक शर्मिला ‘सार्वजनिक प्रतिरोध का प्रतीक’ बन गई थीं।
आफ्सपा कानून को वापस लेने की मांग के चलते शर्मिला को कई शारीरिक और मानसिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इस दौरान देश और दुनिया के मीडिया का ध्यान इरोम की ओर गया और उन्होंने उसके अनशन को कवरेज देना शुरू किया। उन्हें कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले और विभिन्न सामाजिक संगठनों तथा नेताओं यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र में भी इरोम शर्मिला की बात रखी गई, इन्हें समर्थन दिया गया। साल 2013 में एमनेस्टी इंटरनेशनल ने उन्हें ‘अंतरात्मा की कैदी’ की संज्ञा दी। उसके अगले ही साल अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को उन्हें एम एन एस पोल द्वारा भारत की शीर्ष महिला आइकन चुना गया।
इरोम शर्मिला को 16 सालों तक एक नाक में नोजल ट्यूब डाल कर तरल पेय पदार्थ के ज़रिए जीवित रखा गया। उन पर लगी धारा के अनुसार उनकी गिरफ्तारी एक साल से अधिक नहीं हो सकती थी। इसीलिए जब भी उन्हें छोड़ा जाता वह दोबारा हड़ताल पर चली जातीं इसीलिए इम्फाल के सरकारी अस्पताल के एक कमरे को अस्थायी जेल बना दिया गया था। जहां कई पाबंदियों के साथ उन्हें रखा गया था। यहां किसी भी बाहरी व्यक्ति को इरोम से मिलने की इजाज़त नहीं थी।उन दिनों इरोम पर एक किताब लिखी गई जिसे पढ़कर ब्रिटिश मूल के नागरिक डेसमंड एंथनी बेलार्निन कॉटिन्हो इनसे बहुत प्रभावित हुए और चूंकि यहां इरोम से किसी को भी मिलने की इजाज़त नही थी तो ख़त और किताबो के ज़रिए उनकी बातचीत होती रहीं और साल 2017 में इन्होंने शादी कर ली।
इतने सालों की हड़ताल में किसी भी नेता ने आफ्सपा जैसे मुद्दे को नहीं उठाया,यह देख उन्होंने 26 जुलाई, 2016 में अपना अनशन खत्म करने के साथ ही राजनीति में प्रवेश करने की घोषणा की।अब वह इस लड़ाई को राजनीतिक ढंग से ही जीतना चाहती थीं।
इरोम शर्मिला ने ‘पीपुल्स रिसर्जेंस एंड जस्टिस एलाइंस’ पार्टी से अपना नामांकन तत्कालीन मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र से भरा। हालांकि उन्हें वोट देने के अधिकार से उसे वंचित रखा गया था चुनाव परिणाम में महज़ 90 वोट मिलने के कारण इसे भारत के लोकतंत्र का शोकगीत कहा गया जहां कोई इंसान अपने नागरिकों के अधिकार के लिए अपना जीवन समर्पित कर देता है और बदले में उसे महज़ 90 वोट मिलते हैं। इसकी पूरे देश में काफ़ी आलोचना हुई और इरोम को इससे ठेस पहुंची। उन्होंने अपना राजनीतिक जीवन वहीं समाप्त किया और मणिपुर से बाहर निकलकर जीवन में आगे बढ़ने का फ़ैसला किया।
इरोम आज भी अपने मजबूत इरादों की वजह से ‘आयरन लेडी’ नाम से जानी जाती हैं। इरोम शर्मिला ने 1000 शब्दों में एक लंबी ‘बर्थ’ शीर्षक से एक कविता लिखी थी।यह कविता ‘आइरन इरोम टू जर्नी- व्हेयर द एबनार्मल इज नार्मल’ नामक एक किताब में छपी थी। इस कविता में उन्होंने अपने लंबे संघर्ष की दास्तां बयां की है।