anju gupta

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2.8  

anju gupta

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इंतज़ार

इंतज़ार

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कहते हैं प्यार किया नहीं जाता बस हो जाता है ! पर ना जाने क्यों, ये अक्सर वहीं क्यों हो जाता है, जहाँ कायदे से इसे नहीं होना चाहिए ! जमीं आसमान का फर्क था उन दोनों के स्तर में ! कहाँ महलों की मल्लिका “सोनाली” और कहाँ वह मामूली कर्मचारी का बेटा ! पर…पर फिर भी, न जाने कैसे , पर प्यार तो हो ही गया !!

बरामदे में खड़ी सोनाली टकटकी लगाए बारिश की बौछारों में ना जाने क्या ढूंढ रही थी ! अचानक उसे बारिश में भीगे पेड़ों के झुण्ड के पीछे, किसी के होने का एहसास हुआ ध्यान से देखा… हाँ ! वही तो था ! “इंतज़ार करवाना अच्छा लगता है ना इसे ! अभी बताती हूँ…” भाग कर पेड़ों के पीछे गयी… पर उधर कोई ना मिला “लगता है … फिर से कहीं छुप गया है ! या हो सकता है वो मेरा इंतज़ार कर के जा चुका हो ! पर … पर उसे तो आज मेरा हाथ मांगने आना था !” सोनाली खुद से ही बुदबुदाई !

बारिश में मत भीगो सोना ! अंदर आ जाओ !” माँ उसी की तरफ आ रही थी !

बरामदे की तरफ जाने को जैसे ही मुड़ी, फिर से उसके आस-पास होने का एहसास हुआ ! जैसे – जैसे उसके इंतज़ार के पल खत्म होने को आ रहे थे, जितनी ही उसके दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी ! उसके प्यार में वो इतना डूब चुकी थी कि उसे हर जगह वही नज़र आ रहा था ! उसकी हँसी, उसकी मुस्कान, उसकी बातें… सबकी ही तो दीवानी थी वो ! तभी जात-पात, अमीरी-गरीबी का भेद भूला उसे दिल दे बैठी थी ! वो भी तो जल्द से जल्द उसे दुल्हन बना लेना चाहता तभी तो नौकरी लगते ही उसकी आँखों में झाँकते हुए बोला था – “तैयार रहना मेरी मल्लिका ! कल आऊँगा तुम्हारा हाथ माँगने !”

पर अब, उसका इंतज़ार खत्म होने को ही ना आ रहा था ! कब से तैयार होकर खड़ी थी वह “इस बैरी बरसात को भी आज ही बरसना था ? शायद इसी वजह से वो न आया हो !” वह खुद से बोली और फिर से बरामदे में आकर खड़ी हो गयी !बेटी की ऐसी हालत देख कर माँ का दिल पसीज उठा ! याद आया अठारह वर्ष पहले का वो दृश्य जब वो सोनाली का हाथ मांगने उनके घर आया था !

“गरीब होता तो भी ठीक था पर उस नीची जात वाले से कैसे ….? ” क्रोध की अग्नि धधक उठी माँ की आँखों और सीने में ! साथ ही याद आया कि कैसे कुल की लाज बचाने के लिए अठारह वर्ष पहले उन्हें उस नीची जात वाले की जान की आहुति देनी पड़ी थी !अरमान तो सोनाली के भी भस्म हुए थे उस भेदभाव की अग्नि में ! पगला गयी थी वो… और तब से ही सोनाली ने पगला कर, इस दीन- दुनिया से दूर, अपनी ही इक दुनिया बसा ली थी ! रोज वो उसके इंतज़ार में तैयार होती ! उसे इधर-उधर ढूंढ़ती और अंततः दवाइयों के जोर पर सो जाती !

माँ के इशारे पर नर्स सोनाली को उसके कमरे में लेकर जा चुकी थी ! इंतजार की तड़प लिए सोनाली नर्स से उसे इंजेक्शन ना लगाने की जिद्द कर रही थी, क्या पता वो उसके सोने के बाद ही आ जाए !


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