पदचाप - सुंदर भविष्य की
पदचाप - सुंदर भविष्य की
कुछ खोजती आँखें, बात करने का अलग ही अंदाज़ - मानसी को न जाने कब विनय से प्यार हो गया, खुद उसी को ही पता न चला। अहसास तो शायद विनय को भी था, पर शायद उसके लिए दोनों की उम्र में दस वर्ष का फासला ही सबसे बड़ी दीवार था। बड़े भैया के दोस्त थे विनय और मानसी, बड़े भैया के लिए बेटी की तरह ही तो थी वह। चाह कर भी वह विनय के दिल में न झांक पाई, जहाँ यकीनन उसकी ही तस्वीर लगी थी। पर कहीं विनय उसके बारे में गलत न सोचें, यही सोच कर पहल करना मुमकिन ही न था ।
कल भैया - भाभी की बातें सुनी मानसी ने। उसी की शादी की बात चल रही थी। असहज सी हो गयी थी वह। पल भर को मन किया कि भाभी को जा कर मन की बात कह दे, पर फिर कहती भी तो क्या? विनय ने उससे तो कभी कुछ कहा ही नहीं था ।
"नहीं, यकीनन उसे ही ग़लतफहमी हुई है, अगर विनय भी उसे चाहते, तो कोई इशारा तो करते।" मानसी ने अपने दिल को समझने की फिर से एक और नाकामयाब कोशिश की।
आज सुबह जब विनय घर आए, तो मानसी के अलावा घर में कोई नहीं था। भैया-भाभी दोनों किसी जरूरी काम से बाहर गए थे। शायद विनय भी कुछ खोजने ही आए थे। चाय पीने का आग्रह विनय टाल न पाए। चाय पीते हुए, चेहरे की बोझिल उदासी छिपा पाना विनय के लिए भी मुमकिन न था। साफ़ लग रहा था कि वह कुछ कहने की हिम्मत जुटा रहे हैं।
"तुम्हारे भैया तुम्हारे लिए लड़का ढूंढ रहे हैं। कैसा वर चाहिए तुम्हें ? कोई पसंद है क्या?" कहीं दूर से आती हुई आवाज़ में विनय बोले।
"सुनो ! कह क्यों नहीं देते?" मानसी का दिल चीख चीख
कर बोल रहा था। पर विनय... कुछ कहते-कहते फिर से रुक गए और यकायक चाय का कप मेज पर छोड़ कर बाहर जाने को मुड़ गए।
"कुछ कहना था", अनायास ही मानसी के मुँह से निकल गया।
"हम्म्म... नहीं तो।" अजीब सी कशमकश से लड़ते हुए विनय बोले, "मैं शहर छोड़ कर हमेशा के लिए जा रहा हूँ।" कह कर वह तेज़ी से घर के बाहर चले गए और मानसी... स्तब्ध सी वहीं खड़ी की खड़ी रह गई" आखिर क्यों तुम कुछ नहीं बोल पाए? क्या हो जाता अगर तुम...बस एक बार दिल की बात बोल देते।" मानसी की आँखों से आँसू पतझड़ की तरह बहने लगे। रोते-रोते कब सो गयी, पता ही न चला। घंटी की आवाज़ से नींद खुली। भैया - भाभी घर आ चुके थे ।
"यह किसका पर्स है ? क्या कोई आया था ? अरे ... यह तो विनय का लगता है " ,पर्स उठाते हुए भैया बोले।
"भैया, वो हमेशा के लिए शहर छोड़ कर जा रहे हैं। उन्हें रोक लो।" आंसूओं का सैलाब उमड़ आया था मानसी की आँखों में। हैरानी से कभी मानसी को और कभी खुले पर्स को देखते भैया सब समझ चुके थे। "अभी आया" कह कर वे घर से निकल गए।
और लगभग आधे घंटे बाद विनय और भैया घर में ही थे। विनय का पर्स मानसी को थमते हुए बोले, "संभाल अपनी अमानत। और हाँ ! इसमें अपनी अच्छी वाली फोटो लगा ले। इसमें जो तेरी फोटो लगी है, उसमे तू मोटी लग रही है।" चिढ़ाते हुए भैया बोले।
विनय मंद - मंद मुस्कुरा रहे थे और मानसी ... सुंदर भविष्य के कदमों की पदचाप सुन अपने भैया के सीने में मुँह छुपा अपनी ही किस्मत पर रश्क कर रही थी।