इंतजार की घड़ियां
इंतजार की घड़ियां
आज फिर गरिमा खतों को पढ़ पढ़कर फाड़ कर फेंक रही थी उसका मन निराश हो चुका था।पिछले एक महीने से नौकरी के लिए कितने इंटरव्यू दे चुकी थी पर कहीं बात नहीं बन रही थी हर बार खुद को दिलासा देती,कि आज नहीं तो कल नौकरी मिल जाएगी। बाबूजी का सहारा बनना चाहती है।
उन्हें एहसास दिलाना चाहती है कि भाई भले ही विदेश जाकर बस गया है पर वो अपने मां और बाबूजी को कभी छोड़कर नहीं जाएगी। उनका सहारा बन उनके साथ रहकर योग्य संतान बनेगी। आज फिर उम्मीद नज़र नहीं आई। काफी बुझे मन उसने वो आखिरी ख़त उठाया और बेमन से उसे पढ़ने लगी,पर ये क्या नज़रें वाक्य पर जैसे ठहर सी गई "आपकानौकरी के लिए चयन किया जाता है ।आप दिनांक .....…"
खुशी से उसकी आंखों से आंसू बह चले उस खत को लेकर अब वो खुशी और विश्वास से पिता के कमरे की ओर जा रही है। आखिर इंतजार की घड़ियां आज समाप्त जो होने जा रहीं थीं।