Kavita Sharma

Inspirational

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Kavita Sharma

Inspirational

सम्मान

सम्मान

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अनिरुद्ध गांव का बड़ा बिंदास लडका था। मां ने कितनी बार समझाया था कि बिना पढ़ाई के जिंदगी में कुछ नहीं कर पाओगे। पिता न होने के कारण वो चाहती थीं कि अनिरुद्ध अच्छा इंसान बने,अपनी जिम्मेदारी समझे। अनिरुद्ध को तो जैसे किसी बात का कोई असर ही नहीं होता मां कुछ न कुछ तो कर ही लूंगा यह कहकर निकल जाता घर से। बस गांव में कभी लड़कों की टोली के साथ खेलना,कभी ज़रा सी बात पर झगड़ा कर बैठना। सारा दिन ऐसे ही निकाल देता। ऋषि सैनिक था वो इसी गांव का रहने वाला था

उसके माता पिता बचपन में चल बसे थे उसके मामा ने उसे पढ़ाया लिखाया बचपन से उसे देश के लिए कुछ करना था।बस इसी कारण वो सेना में भरती हो गया।

अब अक्सर साल में चार पांच दिन के लिए मामा से मिलने आता। अनिरुद्ध और ऋषि बचपन में काफ़ी अच्छे दोस्त थे पर ऋषि के मामा उसे अनिरुद्ध से मिलने जुलने से मना करते।

ऋषि को अनिरुद्ध में कुछ बात दिखती कि ये सबसे अलग है पर क्या ये वो समझ नहीं पाता शायद इसी कारण वो उससे मामा से छुपकर भी मिला करता।

फिर दसवीं के बाद तो ऋषि को शहर पढ़ाई के लिए जाना पड़ा । तब से उनका मिलना जुलना लगभग बंद ही हो गया कभी जब वो गांव आता मामा से मिलने तब मुलाकात भर होती। इस बार जब ऋषि आया तो

शाम को गांव में सबसे मिलने के लिए कहकर मामा से अनुमति लेकर निकला। सबसे मिलने के बाद उसने अनिरुद्ध के घर का रूख़ किया उसकी मां ही थीं उनसे हाल चाल पूछा और अनिरुद्ध के बारे में पूछा।

मां ने बताया कि दो दिन से घर पर नहीं आया है नौकरी करना नहीं चाहता बस झगड़ा कर निकल गया कहते हुए उनकी आंखों में आंसू आ गये । ऋषि ने उन्हें तसल्ली दी और चल पड़ा उससे मिलने,उसे पता था वो तालाब के किनारे घने पेड़ों से घिरे उस सुनसान जगह पर ही मिलेगा। ऋषि को देखते ही वो चौंक पड़ा

गले मिला और दोनो बचपन की बातें कर आनंदित होते रहे। तब ऋषि ने उससे पूछा कि तुम सेना में भरती क्यों नहीं हो जाते इस बार मेरे साथ चलो पर उसने मना कर दिया। ऋषि वापस आ गया।

रात को अचानक बहुत शोर से ऋषि की नींद खुली तो

उसने बाहर आकर देखा कि काफी भीड़ इकट्ठा है और दो आंतकवादी ख़ून से लथपथ जमीन पर पड़े हैं पर ये क्या उसे कुछ दूरी पर औरतों के ज़ोर से रोने की आवाज भी सुनाई दी वो उस ओर चल पड़ा उसने देखा तो उसे यकीन ही नहीं हुआ कि अनिरुद्ध खून से लथपथ पड़ा है मां ने उसका सर गोद में ले रखा है और आंखों से पानी बहता जा रहा है। आस पास खड़े लोगों ने बताया कि तालाब के रस्ते दो अजनबी को आते देख अनिरुद्ध उनके पीछे हो लिया उनकी बातचीत सुन वो हैरान रह गया उसने बुद्धि लगा कर दोनों पर वार कर दिया। रिस्क था इसमें पर उसने अपनी जान की परवाह नहीं की गांव की सुरक्षा उसकी जिम्मेदारी थी काफ़ी हाथापाई हुई पर दोनों शत्रुओं को उसने मार गिराया आखिर गांव के दंगल में हर जीतता जो आया था पर गोलीबारी में मारा गया।

ऋषि को दोस्त खोने का अफ़सोस तो था पर इस बात का गर्व भी आज उसे हुआ कि उसने गांव की रक्षा के लिए अपना जीवन अर्पित कर दिया।

उसकी अंतिम यात्रा में उसे बिगुल बजाकर सम्मान से उसे विदा किया।


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