समर्पण
समर्पण
प्रिया अपने परिवार में सबसे बड़ी थी दो बहनें और एक भाई। एक मध्यमवर्गीय परिवार जो कुछ इच्छाएं मार कर भी खुश रहना जानता है। बस प्रिया के पिता अनुराग गुप्ता भी अपनी मेहनत से अपना परिवार चला रहे थे। प्रिया पिछले तीन महीने से नौकरी की तलाश में थी इंटरव्यू अच्छे भी गये पर कहीं से कोई उम्मीद नहीं मिली। आज सुबह ही एक फ़ोन ने उसके चेहरे पर मुस्कान ला दी एक नामी कालेज में प्रोफेसर के पद के लिए। कालेज लड़कियों का है इस बात से उसे ज्यादा खुशी थी। घर पर सब खुश थे पिता ने उसे आशीर्वाद दिया कि अच्छी शिक्षिका साबित करना खुद को।
प्रिया खूब खुशी से अपना लेक्चर लेती छात्राओं की व्यक्तिगत समस्याओं को भी सुनती और सुलझाने की कोशिश करती। की छात्राएं जो ग्रामीण इलाकों से यहां पढ़ने आईं थी उनकी समस्याएं सुनकर अक्सर वो सोचती कि अभी भी लड़कियों की शिक्षा को लेकर जागरूकता की जरूरत है। एक दो छात्राएं जिनके घर से उन्हें बीच शिक्षा छोड़कर विवाह करने का दबाव बनाया गया। प्रिया ने स्वयं न केवल उन छात्राओं में विश्वास जगाया बल्कि उनके माता पिता से मिलकर उन्हें आत्मनिर्भर और शिक्षा का महत्व समझाया।
उसके इस व्यवहार ने उसे कालेज में सबसे प्रिय और ख़ास बना दिया। उसके कारण कई छात्राओं का जीवन बदल गया वो आत्मनिर्भर बनीं। आज उसे दस साल हो चुके हैं कालेज में पढ़ाते हुए इन छात्राओं खुद के लिए खड़ा होता देखकर उसने निर्णय लिया कि वो विवाह नहीं करेगी और ऐसी कई लड़कियों की जिंदगी बदलने की कोशिश करती रहेगी।