इंसानियत
इंसानियत
"मैडम जी 4 किलो हुई है"। रद्दीवाला बोला। मिताली ने भी तराजू का कांटा देखे बिना "ठीक है भैय्या" कहकर, पैसे लेकर घर चली गई। दो-तीन बार ऐसे ही हुआ। दोगुना, तिगुना रद्दी होने पर भी रद्दीवाला यही कहता 4 केजी वजन है। आखिर एक दिन मिताली ने उसके 4केजी कहने पर अपने हाथ में तराजू लेकर करीब से देखा तो 8 के जी पर कांटा रुका हुआ था। तब मिताली ने रद्दीवाले को दिखाते हुए कहा "यह तो 8 के जी दिखा रहा है फिर आप......!"
"मैडमजी छोड़ दीजिए न । थोड़े मेरे भी पैसे बच जाएंगे तो मेरा घर अच्छे से चल जाएगा।" लेकिन मिताली को यह ठीक नहीं लगा। माना उसे पैसों की जरूरत है तो उसकी आपूर्ति वजन की चोरी करके क्यों? चोरी तो आखिर चोरी ही है न। उसने रद्दीवाले से 8 केजी के ही पैसे लिए। लेकिन साथ ही उसके परिवार की पूरी जानकारी लेकर उसकी एक बच्ची की विद्यालय की फीस व किताबों का खर्च उठाने की जिम्मेदारी ली। और आगे से किसी के साथ भी ऐसा न करने का उससे वचन भी लिया।