इंसान-2

इंसान-2

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आज फिर वहीं मंजर आँखो के सामने था। चारों तरफ अफरा तफरी भरा माहौल था। अपने घर की छतों पर कैद लोग मजबूर थे मौत का मंजर देखने के लिए। अपने अस्तित्व की चिंता में एक समुदाय के लोग अपने अंदर की आत्मा को तिरोहित कर एक अलग ही दुनिया बना रहे थे जहां सिर्फ खून की नदियां और लाशो के ढेर थे।


ऐसी ही एक गली में उसका घर था। जहाँ उसने अपने दोस्तों को,अपने पड़ोसी को अपना परिवार मान कर अपना सुख दुःख साझा किया करता था।


आज सब उसके नाम से डरते हुए उससे दूर भाग रहे थे। वह उन्हें समझाने की कोशिश कर रहा था कि वह किसी को कोई नुकसान नहीं पहुचायेगा क्योंकि वे सभी उसके परिवार का हिस्सा है लेकिन कोई उसका यकीन नहीं कर रहा था।


वह निराश होकर अपने घर की ओर जा रहा था कि तभी उसे पीछे से कुछ आवाज सुनाई दी-


“अरे भाई ये लोग तुम्हारे अपने नहीं है। क्यो अपना वक्त और अपने आंसू इनके लिए बर्बाद कर रहे हो?”


उसने जैसे ही पीछे मुड़कर देखा, हाथों में तलवारें और बन्दूक लेकर आई भीड़ ने उसे घेर लिया। किसी ने कहा- जब तक तुम हमारी मदद नही करोगे तब तक ऐसे ही ये लोग तुम्हें तकलीफ देते रहेंगे।”


कहीं से दूसरी आवाज आई- “अगर आज हमने इन लोगों को सबक नहीं सिखाया तो कल हमें अपनी शख्सियत, अपने वजूद को छोड़कर जाना होगा।”


“अगर आज तुमने हमारा साथ नही दिया तो कल को यही लोग तुम्हें बेइज्जत करके तुम्हारे घर को मिट्टी में मिला देंगे। अभी भी वक्त है, अपने लोगों के वापस लौट आओ और इन लोगों को बता दो कि तुम अकेले नहीं हो, तुम्हारे लोग तुम्हारे साथ है।” किसी ने उसकी तरफ बन्दूक बढ़ाते हुए कहा।


सबकी बाते सुनकर वह भी जोश में आ गया था। बचपन से ही वह अपने समुदाय की बदहाली की दास्तान सुनकर बड़ा हुआ था और अब उसे उन लोगों की बात सच लग रही थी। अब वह भी अपने परिवार को सबक सिखाने के लिए तैयार था।


वह बन्दूक की तरफ हाथ बढ़ा ही रहा था कि उसे किसी ने कुछ कहा जिससे उसके हाथ वही पर रुक गए। वह एक अलग ही आवाज थीं जो दिखाई नहीं दे रही थी।

“किसी की जान लेने से तुम अपने ईटो के घर को तो एक बार को बचा भी सकते हो लेकिन क्या अपने अंदर के इंसान को बचा पाओगे?”









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