इण्डियन फ़िल्म्स 3.3

इण्डियन फ़िल्म्स 3.3

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और हमारी बिल्डिंग की छठी मंज़िल पे कुत्तों वाली अक्साना रहती है। कुत्तों वाली – इसलिए, कि ऐसा एक भी बार नहीं हुआ, कि चाहे दिन हो या रात, गर्मियाँ हों या सर्दियाँ, मैं घर से बाहर निकला और कुत्ते के साथ घूमती हुई अक्साना से न मिला होऊँ। और हर बार वो अलग-अलग कुत्तों के साथ घूमती है। उसके सारे कुत्ते छोटे हैं, घर के भीतर रहने वाले हैं, मगर बेहद गुस्सैल हैं और हमेशा भौंकते रहते हैं। वो कुत्ते क्यों बदलती है? इसलिए कि अक्साना के पास एक ही कुत्ता ज़्यादा दिन नहीं रहता। पहले,करीब दो साल पहले, उसके पास विकी था, लाल बालों वाला। उसने भौंक-भौंककर पूरी बिल्डिंग को हैरान कर दिया और मर गया।

“बीमार हो गया था,” अक्साना ने कहा।

फिर आया एक काला कुत्ता, वैसा ही जैसा विकी था, मगर इसका नाम था जस्सी। अक्साना के हाथ से छिटक कर बिल्डिंग के पीछे भागा, हमारी बिल्डिंग रास्ते की बगल में ही है, और कार के नीचे आ गया। अब अक्साना के पास है बेली। सफ़ेद है, काले धब्बों वाला। ये भी ऐसा भौंकता है, जैसे किसी ने उसे घायल कर दिया हो।      

ठण्ड के दिनों में अक्साना अपने कुत्तों को ख़ास तरह के कोट पहनाती है,जिससे कि उन्हें ठण्ड न लगे। मगर कुत्तों के अलावा अक्साना इस बात के लिए भी मशहूर है, कि उसे हमारी बिल्डिंग के हर इन्सान के बारे में सब कुछ मालूम है।

“नौंवीं मंज़िल वाली दीना को लड़की हुई है।”

“फ़ेद्या पलेताएव मर गया।”

“वेरा तरासोवा पर मुकदमा चलेगा।”

मैं तो अक्सर ये ही समझ नहीं पाता , कि वो किसके बारे में बता रही है, मगर कोई प्रतिक्रिया तो देनी ही होती है। ख़ैर, किसी तरह कुछ कह देता हूँ, हमेशा नहीं, शायद, कभी कभार।   

मगर अक्साना से मेरी बातचीत अक्सर इस बात पर आकर रुक जाती है, कि मेरी शादी हुई है या नहीं, और मैं कब शादी करने वाला हूँ। पहले ये सवाल मुझसे अक्साना की मम्मी ताइस्या ग्रिगोरेव्ना अक्सर पूछती थी। मगर बाद में ताइस्या ग्रिगोरेव्ना के पैरों में दर्द रहने लगा, और उसने घर से बाहर निकलना बंद कर दिया। इसलिए, अब उसकी जगह अक्साना ने ले ली है।

स्टोर में जाता हूँ, वहाँ कुछ ख़रीदता हूँ और घर वापस लौटता हूँ। आन्या आण्टी फोन करती है।

“सिर्योग, चाय पीने आ जा! चीज़-पैनकेक बनाया है!”

ख़ुशी-ख़ुशी जाता हूँ, क्योंकि मैं यहाँ चाहे जो भी कहूँ, आन्या आण्टी से मैं बहुत अच्छी तरह बर्ताव करता हूँ।।।

आन्या आण्टी को अपने चारों तरफ की दुनिया में बेहद दिलचस्पी है, जो टी।वी। के पर्दे पर सबसे अच्छी तरह दिखाई जाती है, और साप्ताहिक अख़बार “आर्ग्युमेन्ट्स एण्ड फैक्ट्स” के पन्नों पर।

जब मैं चाय पी रहा होता हू, आन्या आण्टी के चारों टी।वी। चल रहे होते हैं, एक-एक कमरे में एक-एक टी।वी और किचन में भी। उन पर अलग अलग चैनल्स चल रहे हैं, वॉल्यूम काफ़ी तेज़ , क्योंकि शेपिलोवा ऊँचा सुनती है। मगर ख़ुद आन्या आण्टी इस समय संकरे कॉरीडोर में फोन पर बात कर रही होती है:

“ हाँ, वालेच्का, सिर्फ कड़े गद्दे पर सोना चाहिए! क्या?!

“उच्कुदू-ऊक, तीन कुँए!” किचन का टी।वी। गा रहा है।

“फिर रूस में साल के शुरू से शरणार्थियों का आना कम नहीं होगा, इस बात पर भी, निःसंदेह ध्यान देने की ज़रूरत है,” हॉल वाला टी।वी। सूचना दे रहा है।

“हाँ, हाँ!” आन्या चिल्लाती है। “और सिर्फ बिना तकिए के!”

“इसाउल, इसाउल, घोड़े को क्यों छोड़ा!” कॉरीडोर से सटे छोटे कमरे वाला टी।वी। लगातार ऊँची आवाज़ में अपने बारे में याद दिला रहा है।

“वालेच्का, क्या?! नहीं, ज़रूरत नहीं है! और ज़्यादा घूमना फिरना चाहिए! गति ही - जीवन है! वालेच्का, तेरी आवाज़ बिल्कुल सुनाई नहीं दे रही है!”

फिर जब बातचीत ख़त्म हो जाती , चाय पी चुकी होती है, तो पता चलता है, कि मुझे मुर्गी-आलू ज़रूर खाना पडेगा (अपने अनुभव से मैं जानता हूँ,कि जब तक आन्या की पेश की हुई हर चीज़ खा नहीं लोगे, उसके घर से बाहर नहीं निकल सकते)। मैं खाता हूँ, और शेपिलोवा हॉल में बड़ी गोल मेज़ के पास बैठ कर साप्ताहिक अख़बार “आर्ग्युमेन्ट्स एण्ड फैक्ट्स” के ऊपर रंगबिरंगा पेन लेकर झुकी होती है। आन्या सिर्फ यही अख़बार पढ़ती, और न जाने अपने किसी सिद्धांत के तहत कुछ और नहीं पढ़ती। मैंने उसे हमारी मशहूर हस्तियों के जीवन के बारे में ,प्रकृति के दिलचस्प तथ्यों के बारे में, वैज्ञानिक आविष्कारों के बारे में अलग-अलग तरह की किताबें प्रेज़ेंट की, मगर मैंने ग़ौर किया कि उन सबका ढेर किचन में बेसिन के पास रखा है,फेंकने के लिए, या उनका इसी तरह का कुछ करने के लिए। “आर्ग्युमेन्ट्स एण्ड फैक्ट्स” आन्या को वो दूर दराज़ की जानकारी देता था, जो उसकी ज़िंदगी के लिए ज़रूरी है।             

विसोत्स्की के बारे में लेख, जिससे उसके बारे में फ़िल्म “विसोत्स्की। थैन्क्यू फॉर बीइंग अलाइव” रिलीज़ होने के बाद बचना मुश्किल था। एक छोटा सा लेख इस बारे में, कि दोस्तों, चाहने वालों की भीड़ में भी वह भीतर से अकेला था, लाल रंग की तिहरी लाइन से रेखांकित किया जाता है। इस बारे में जानकारी को, कि रीढ़ की हड्डी को सहारा देने के लिए कड़े गद्दे परऔर जहाँ तक संभव हो, बिना तकिए के सोना चाहिए, पूरी तरह हरे रंग से पोत दिया गया था। गाल्किन की फोटो के चारों ओर, न जाने क्यों, काला घेरा बना दिया गया था। संक्षेप में कहूँ तो, सचमुच का संपादन चल रहा था, अगर इसे रचनात्मक काम न कहें तो !

बाद में इस सबकी कतरनें काटी जाती हैं और तीसरे, सबसे छोटे कमरे में एक छोटी सी मेज़ पर गड्डियाँ बनाकर रख दी जाती हैं।   

अख़बार की महत्वपूर्ण जानकारियों को अलग-अलग रंगों से रेखांकित करने और उनकी कतरनें काटने के इस थका देने वाले काम से निपटकर आन्या आण्टी ज़िद करती है कि मैं कल उसके साथ थियेटर जाऊँ। थियेटर मुझे बहुत अच्छा तो नहीं लगता, किसी तरह मैं इनकार कर देता हूँ, मगर आन्या की इस पेशकश से जुड़ी एक और बात बताना चाहता हूँ।

मेरी प्यारी, बढ़िया मेहमाननवाज़ी करने वाली पड़ोसन को थियेटर्स और कॉन्सर्ट्स जाना बहुत अच्छा लगता है। वहाँ जब ‘शो’ चल रहा होता है, तो वो ज़रूर सो जाती है,क्योंकि अपनी तूफ़ानी गतिविधियों से वो बेहद थक जाती है, ऊपर से नींद न आने की शिकायत भी रहती है। मगर इससे उसे बाद में ‘शो’ के बारे में बताने में कोई बाधा नहीं पड़ती, वह मज़े से बताती है कि ‘शो’ कितना मज़ेदार था और उसे हर चीज़ कितनी पसंद आई थी - म्यूज़िक भी, और ड्रेसेज़ भी। आन्या आण्टी को हर शो’ अच्छा लगता है, जो वो देखती है। बस एक बार, जब उसे ‘शो’ पसंद नहीं आया था, ‘बल्शोय’ थियेटर में हुआ था, जहाँ “कार्मेन” दिखाया जा रहा था। उसे इस बात पर बेहद गुस्सा आया, कि पुराने ढंग की पोषाकों के बदले, कलाकारों ने किसी किसी दृश्य में स्विमिंग सूट पहने थे। लगता है, ‘बल्शोय’ थियेटर में किसी वजह से वह सो नहीं पाई थी।

आन्या आण्टी के घर से निकलता हूँ, भरपेट खाकर और तरह-तरह के ख़यालों से भरा हूँ और खिड़की के पास कचरे की पाइप के पास से यारोस्लाव जोश से कहता है “ग्रेट!”। वहाँ काफ़ी लोग जमा थे।

“नमस्ते,” मैं जवाब देता हूँ।

मुझे अचरज होता है, कि नीचे से कुत्ते वाली अक्साना, अपना सवाल लिए, कि मैं कब शादी कर रहा हूँ, नहीं आ रही है।


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