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Vibha Rani Shrivastava

Drama

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Vibha Rani Shrivastava

Drama

इकसवीं सदी की हवा

इकसवीं सदी की हवा

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लू के थपेेड़े, दस्यु स्त्रियों की भीड़ जूस ठेले पे।

महिला महाविद्यालय के सामने खड़ी होकर हर आने-जाने वाली लड़कियों को मेनका बहुत गौर से निहार रही थी (आज प्रख्याता के रूप में उसका पहला दिन था) ,लेकिन कोई चेहरा नहीं दिख रहा था। सबके चेहरे ढंके हुए थे।


"दस्यु सुंदरी बनना है क्या?" दाँत पीसती शिक्षिका की आवाज से उसकी तन्द्रा भंग हुई। बौखलाहट में वह दाएँ-बाएँ देखने लगी, फिर उसे अपने अतीत की सहमी कन्या याद आई जो एक दिन दुप्पटे को नकाब बनाये खल्ली (चौक) को सिगरेट रूप में उठा ही रही थी कि वर्ग शिक्षिका (क्लास टीचर) चिल्लाती हुई कक्षा में प्रवेश की, "आज पूरे दिन बेंच पर खड़ी रहोगी तथा कल तुम अपनी माँ-पापा को अपने साथ लेकर विद्यालय आना। लगता है तुम्हें चंबल जाने का शौक है"


"अभिभावक को बेटी के शौक का पता होना चाहिए...!" उसकी तो घिग्घी बंध गई थी और बहुत आरजू-मिन्नतों के बाद वह गुमनाम होने से बच पायी थी।


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