इक लड़की
इक लड़की
यह कहानी सुवर्णा नाम की एक लड़की की है। जिसकी कहानी बहुत ही उलझी हुई और दर्दनाक है। वह पैदा होते ही उसकी मां खत्म हो गई, उस लड़की का बचपन कैसा गुजरा होगा। बिन मां की छोटी सी बच्ची ऊपर से उसके पिता पियक्कड़ हमेशा शराब पीकर रहते थे उन्होंने किसी काम पर की दूसरी महिला घर लेकर आए उस महिला को शायद दया की उम्मीद नहीं कर सकते थे। उसने सुवर्णा को बहुत तंग किया, छोटी सी बच्ची को ना दूध देती थी ना खाना देती, पहले आस पास की महिलाएँ उसे कुछ खिला पिला देती थी, लेकिन जब से सौतेली मां आई थी अड़ोसी पड़ोसी कोई भी उस घर नहीं आता था। सौतेली मांका डर लगा होता था क्योंकि वहां बोलने मे खड़ा जवाब देने वालों में से थी।
सुवर्णा की किस्मत ही शायद खराब थी, छोटी सी बच्ची किसी तरह से बडी हुई, लेकिन वह कुपोषित बालक की तरह हड्डी का ढांचा दिखाई देती थी। सौतेली मां उसे खाने-पीने को कुछ भी नहीं देती थी कभी बचा हुआ बासा खाना दे देती थी। ऐसा करते-करते वह बच्ची थोड़ी और बड़ी हुई। वह देखते देखते 5 वर्ष की हुई
फिर, बाकी मोहल्ले के बच्चों के साथ खेलती रहती थी। साथ में बैठती घूमती थी। लेकिन उसके साथ बराबर के बच्चों को उनके माता-पिता खेलने नहीं देते थे, कहते थे वह मनहूस लड़की है।
ऐसा करते वह नव वर्ष की हो चुकी थी। किसी को दया आई तो उसने सुवर्णा को थोड़ा काम करने दे दिया, रुपया 2 रुपया दे दिया कुछ खाने को दे दिया तो भी बेचारी खुश हो जाती थी। यह कैसा नियति का खेल था, जिंदगी में कब क्या किसके साथ होगा कोई नहीं बता सकता, परिस्थिति की शिकार में छोटी सी बच्ची का भविष्य मटिया मेट हो गया, इतनी खराब हालत, सुनकर मन घबराता है। उस लड़की की कहानी मुझे मालूम है और यह सत्य घटना पर आधारित है। जब वह नव वर्ष की हो चुकी तब बराबरी के लड़के लोग उसे अकेले में एकांत में खेल खेलने के बहाने बुलाने लगे, एवं खेलने लगे उसके लिए खाने पीने की चीजें लाने लगे। पैसे देकर लालच दिखाने लगे। वह नासमझ भोली बच्ची बेचारी उसे कुछ समझ में नहीं आया। उसके अंगों को स्पर्श करने लगे फिर भी वह नासमझ समझ नहीं सकी, जब और कुछ दिन गए तो कुछ बच्चों ने हद पार की और अंदरूनी हिस्सों को स्पर्श करना चालू कर दिया।
तब उस बच्ची को थोड़ा समझ में आया की यह बच्चे गंदे है, पर वह खाने के लिए बिस्किट चॉकलेट समोसे कुछ न कुछ लाते रहते थे, और कुछ पैसे भी देते थे, तो वह तो प्यार की भूखी पेट की मारी थी इसलिए बच्चों को मनमानी करने देती थी। जब वह10 वर्ष की हुई उसका कौमार्य भंग हो चुका था। मासूम सी बच्ची को कुछ भी समझ में नहीं आता था। यह हालत की जिम्मेदार कौन था। उसे पैदा किया लेकिन उसकी परवरिश ठीक से नहीं हो पाई, उसे भाग्यने दर्दनाक नर्क वास भोगने के लिए शायद उसकी पैदाइश की थी। वह बच्ची मजबूर थी और जिनके मां बाप अपने बच्चों को अच्छा समझते थे वही बच्चे उस से खिलवाड़ कर रहे थे, मां बाप को कुछ पता ही नहीं चलता था, के उनके बच्चे बहुत समझदार मासूम समझते थे।
देखते ही देखते वह इस दुनिया की रीत समझ गई, लेकिन क्या करती उसके बस में कुछ भी नहीं था। यहां वासना का भयानक जाल है। नारी एक पशु के समान है।जिस अकेली मिली वही भोगना चाहता है। कहते हैं, जहां आग है वहां घी पिघलता ही है। उसके बाद जिस बात का डर था वही हुआ। उसके सौतेली मां ने बड़ा होता हुआ पेट देख लिया। वह पेट से थी, तब से उस सौतेली मां ने पापा के कान भरना चालू किया और पापा को कहकर उसको घर से निकाल दिया। वह 13 वर्ष की लड़की पेट लेकर कहां जाती, बेचारी सड़कों पर भटकती रही। भूखी प्यासी कहीं पानी की टंकी के नीचे जाकर सो गई, तब लोगों को पता चला कि यह जवान लड़की यहां सोई है, तो रात में उसके पास कई लोग आकर उससे अपनी कामवासना पूरी करके मुंह छुपा कर भाग जाते थे। वह विद्रोह नहीं कर सकती थी वह बहुत कमजोर थी। उसे कुछ भी पता नहीं होता कि कौन आदमी आकर अपनी कामवासना पूरी करता है।
अंधेरे में चेहरे दिखाई नहीं देते थे, और उस बच्ची में विरोध करने की क्षमता भी नहीं थी।
कुछ महीनों बाद उसकी डिलीवरी हुई, उसके डिलीवरी होने पर वह बेहोश पड़ी थी, जब जब होश आया तो अपना बच्चा कैसा है या डिलीवरी हुई कैसे हुई, कुछ भी पता नहीं था, वह उठकर चल पड़ी थी। शायद वह आधी पागल हो चुकी थी। वहां से निकल गई। चलते चलते एक नई बिल्डिंग बन रही थी, वहां जाकर सो गई वहां पर महिला ने देखा तो उसे काम करने के लिए अपने साथ घर ले कर गई उसके बाद में उससे बर्तन कपड़े धुलवाए और उसे खाना दिया और कहने लगी कल तुम इसी टाइम पर आ जाना, अभी तुम जहां रहती हो वहीं पर जाकर सो जाओ। वह नई बिल्डिंग में जा कर सो गई। वह कई दिनों से नहाई नहीं थी, कई दिनों से बाल बिखरे हुए थे, कपड़ों में से संड़ाध आ रही थी। उस महिला ने उसे पुराने कपड़े दिए। उसके पास कुछ भी नहीं था। ना बिछाने को ना ओढ़ने को, लड़की बेचारी जाकर सो गई, वहां भी वंही तमाशा चालू हो गया। रात के अंधेरे में आकर उसे नोचते खसोटते, जानवरों जैसा उस पर बलात्कार करते और अंधेरे में ही भाग जाते। वह बेचारी मुर्दे की तरह पड़ी रहती। उसमें इतनी शक्ति नहीं थी कि किसी का विरोध कर सके यह वासना मनुष्य को कहां से कहां पहुंचाती है।
कुछ लोग गंदगी में भी वासना को नहीं छोड़ पाते, उनका गंदा मन, गंदे इरादे, गंदी वासनाओं से भरा होता है। कई लोगों ने उस बच्ची के साथ हर रोज जाकर बलात्कार किया, ना जाने उस लड़की ने कौन सा पाप किया था, पैदाइशी उसकी मां उसे इस भरी दुनिया में अकेले छोड़कर खत्म हो गई। बेचारी तूफानों में हवाओं में ठंड में, धूप में किस तरह रहती उसे तो होश ही नहीं था। उसके लिए शरीर ढकने के लिए कुछ चाहिए, सोने के लिए कुछ चाहिए, सौतेली मां की कृपा से कहीं से कहीं पहुंच गई।
उसकी जिंदगी, न जिंदा में ना मरने में शामिल थी। पूरा जीवन नर्क हो गया। वह जब थोड़ी होश में आई तो उसे किसी ने पूछा; यह बच्चा तेरे पेट में किसका है, वह बता नहीं पाई थी। धीमे से कहने लगी- पता नहीं, कौन-कौन आता है और मुझ पर अत्याचार कर के निकल जाता है सब अंधेरे में आते हैं। फिर दूसरी डिलीवरी हुई। काम करने वाले मजदूर लोगों की बीवी ने उसे खाना पीना खिलाया उसके बच्चे को अच्छे से नहला धुला कर देखभाल कर ही रहे थे कि बेहोशी की हालत में उठकर वहां से भी निकल चुकी थी। पूरी तरह वह पागल हो चुकी थी। कई लोगों ने उसे रास्ते पर भीख मांगते हुए देखा था।