ईश्वर

ईश्वर

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दुल्ली और दीमा, यही कोई साठ के उमर की होंगी। शहर के अस्पताल में सफाई कर्मी, हो गये होंगे करीब चालिस बरस। साथ काम कर रही है दोनो, नितांत अकेली। सुख दुख की साथी।

अस्पताल में ड्यूटी बराबर चेंज होती। कभी जनरल वार्ड में कभी प्राईवेट वार्ड, कभी कॉमन सफाई।

आज दोनो की अलग अलग ड्यूटी लगी। दीमा की ड्यूटी जनरल वार्ड में लगी। ये वार्ड अधिकतर ग़रीब मरीज़ो से भरा रहता है। इक्का दुक्का निम्न मध्यम मरीज़ भी होते है।

आज जो मरीज आई डायरिया से पीड़ित है और हाल ही में हुआ साढ़े तीन माह का गर्भपात, कमजोर, पीली सी बीस बरस की लड़की। हालत इतनी गंभीर की साधन उपलब्ध हो इससे पहले ही बिस्तर में हाजत।


दीमा बार बार दौड़ रही है ,बिस्तर साफ करती, कपड़े साफ कर भी नहीं पाती की फिर बिस्तर खराब। दीमा मुस्तैदी से लगी हुई है। चेहरे पर शिकन नहीं ।हिम्मत देती है लड़की को "बहुरिया जिन घबरा।"

जिस बदबू और गन्दगी को देख लोग मुहँ फेर लेते, वो सेवा भाव से अपने कर्म भाव को अंजाम देती।

खाने के समय भी दीमा ना आ पायी, दुल्ली ने अकेले ही रोटी खाई।

छुट्टी का समय हुआ, लड़की की हालत में सुधार आया, और दीमा के चेहरे पर खुशी। दीमा जाने लगी।


लड़की से बोली "बहुरिया एक दो दीना में तुम अच्छी हो जाओगी, हमाई जाने की बिरिया आ गई, हम जात है, कल मिली है,अच्छा माई ध्यान रखियो बहुरिया का " दीमा ने लड़की की सास से कहा।

लड़की एकदम बिस्तर पर बैठ गई, दीमा के पैर की तरफ झुकी "न---न का कर रई बिटिया, तुम बाभन हम--"

"अम्मा आप मेरे लिये भगवान हो। और भगवान के पैर ही छुए जाते है"

दीमा की आँखो से झर झर आँसू बह गये

रास्ते में दुल्ली ने अपने पल्लू से पांच सौ का नोट निकालते हुए कहा-"पिराइवेट वारड में थे आज। पांच सौ इनाम दिया मरीज़ के घरवाले ने। तेरे को कुछ नहीं मिला होगा।



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