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Mahima Bhatnagar

Drama

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Mahima Bhatnagar

Drama

हवा पानी

हवा पानी

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"मैं कुछ नहीं जानता डैड, बस आप मेरे साथ चल रहे है। यहाँ कौन संभालेगा आपको...यहाँ आपको अकेला छोड़ कर मैं अपराधबोध से भरा रहूँगा डैड.." निर्णायक स्वर में निखिल बोला।

अपने बेटे के फैसले से बेहद व्यथित थे मेजर सिंह....समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर उन्होने क्या खोया और क्या पाया? 

सारी उम्र बीत गयी अपने वतन के लिए जीते हुए और उम्र के इस मोड़ पर बेटा उन्हें अपने साथ विदेश ले जाने पर अडिग है।

"क्या अब वो नजरबंद हो कर रहेंगे...बाकी उम्र यूं विदेश में ही रहेंगे। नहीं, नहीं... वो ऐसा नहीं कर सकते...बेटा भी काफी आगे बढ़ चुका था...उसका वापस लौटना नामुमकिन था।"

कुछ सोचते हुए मेजर सिंह ने निखिल को बुलाया और सामने बिठा कर कहा....

"चलो बेटा.... वीसा लगवा लो...चलते हैं तुम्हारे साथ।"

"ग्रेट डैड...मैं आज ही सब कागज पूरे करवा लेता हूँ।"

"अच्छा....क्या क्या ले चलना हैं साथ में..."

"जो आप बोले डैड..."

"मुझे अपने पलंग के बिना नींद नहीं आती....इस पर लगता है तुम्हारी माँ साथ में है, इसे ले चलना....उसके लगाए पौधों को भी ले चलना होगा...."

"पर डैड....पौधे कैसे जायेंगे। वहाँ का हवा पानी इन्हें रास नहींं आयेंगा, जाने में ही मर जायेंगें यह तो..."

अचानक वार्तालाप वहीं थम गया, सन्नाटा पसर गया...

चुप्पी तोड़ते हुए मेजर सिंह बोले.." बेटा...कल मुझे गाँव छोड़ आओ। सारी जिंदगी गाँव मुझे बुलाता रहा.... मैं नहीं जा पाया। अब मेरे मां-बाबा के लगाए पेड़ों के साथ तुम्हारी मां के पौधे भी वहीं पल्लवित होंगे....मेरी चिंता मत करो। मैं वहाँ खुल कर सांस लूँगा...अपने गाँव की मिट्टी में...."

निखिल को लगा जैसे उसके डैड नजरबंदी से आजाद हो कर हवा में विचरण करने लगे हो !


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