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MITHILESH NAG

Drama

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MITHILESH NAG

Drama

हत्यारे

हत्यारे

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335

 


सुशील हमेशा से अपने मतलब के लिए दोस्ती करता था। उसको पता था कि जब तक मतलब हो तब तक रहो फिर भूल जाओ । कुछ ऐसा ही छोटू के साथ भी हुआ लेकिन वो इतना सीधा है कि किसी को कुछ बोल ही नही सकता था।

सुशील और छोटू दोनों बचपन से ही क्रिकेट खेलते थे।लेकिन जितना जानकारी छोटू को था उतना सुशील को नही पता था।

“सुशील हम दोनों तो क्रिकेट तो अच्छा खेलते है,लेकिन गाँव से खेल कर क्या मिलेगा”

“तुम ठीक कह रहे हो,लेकिन हमे पता भी तो नही है कि कहा से कोचिंग करेंगें”

“मुझे पता है, लेकिन उसके लिए घर वालो से पूछना भी तो है तो फिर जा सकते है”

“ठीक है, मैं अपने घर वाले से पूछ लू तब चलते है” ( दोनों की चाय खत्म होने पर)

दोनों अपने अपने घर के लिए निकल जाते है। और शाम को दोनों अपने अपने पापा से पूछने के लिए सोचते है। 

छोटू के घर.....

छोटू के पापा एक कुर्सी लगा कर बैठे टीवी देख रहे है, और वो बगल में ज़मीन पर बैठ कर उनके मुड़ को देख रहा था।

“ पापा, मुझे आप से कुछ बोलना है” ( सकोच में)

“ बोलो क्या बात है,” 

“ हम और सुशील दोनों क्रिकेट खेलने और सीखने कानपुर जाना चाहते है। क्यो वहां अच्छा सिखाते है।“

“लेकिन तुम उतना दूर रहोगें कैसे”? (देखते हुए)

“मैं अकेले नही हूँ पापा साथ मे सुशील भी है और वो तो हॉस्टल है बहुत बच्चे रहते है।“

“ठीक है,लेकिन देखो ध्यान देना, मुझे सुशील अच्छा लड़का नही लगता है। इसलिए डरता हूँ कि कही तुम को फसा ना दे कही” ( सर पर हाथ रखते)।

“नही पापा ऐसा कुछ नही होगा”।

सुशील के घर.....

सुशील के घर वाले उसको कभी कुछ बोलते ही नही थे,क्यो की वो अमीर घर से था इसलिए न पैसे की कमी थी न काम की। 

“पापा मैं कल कानपुर जा रहा हूँ”।

“ किस लिए”?

“क्रिकेट सीखने के लिए वहां पर अच्छे कोचिंग है”।

“ठीक है, जाओ”।

अगली सुबह....

दोनों अपने अपने घर से सुबह 6 बजे कानपुर जाने वाली ट्रेन में बैठते है। फिर अपनी अपनी सीट पर बैठ कर टाइम पास करने के लिए लूडो खेलते रहते है। रात हो जाती है। अगली सुबह वो दोनों 5 बजे कानपुर स्टेशन पर पहुचते है।

“ छोटू तुम अपना सामान मुझे दो और कोई ऑटो बुला लो”

छोटू ये नही समझ पाया कि ये पैसा ना देना पड़े इसलिए ऐसा किया था। बेचारा छोटू ऑटो बुला कर लाता है।

“भाई हमे नेशनल क्लब ले चलो”।

और दोनों ऑटो में बैठ कर नेशनल क्लब पहुँचते है।

“कितना हुआ पैसे”?।

“150 रुपये”।

सुशील दिखाने के लिए अपने जेब मे हाथ डालता है और दिखता है कि पैसे दे रहा हूँ।

“यार छूटा पैसे नही है, तुम दे दो पैसे”।

“ठीक है” और 150 रुपये निकाल कर दे देता है।

होस्टल में.....

सुशील को अपने किस्म का लड़का मिल गया था । जो आये दिन छोटू को परेशान करता रहता था, लेकिन सुशील कुछ नही बोलता बस माजे लेता।

एक दिन....

जब हर तरह से छोटू हार चुका था तो वो सुशील से... 

“ सुशील मैं तुम्हारा दोस्त हूँ, और हम दोनों बचपन से साथ खेले कूदे है,क्या तुम को अच्छा लगेगा, कि मुझे कोई परेशान करेगा तो तुम ऐसे देखोगे”।

लेकिन सुशील की बातों से हाव भाव से तो यही लग रहा है था कि उसको कोई मतपब नही की कोई मुझे कुछ भी बोले कोई फर्क नई पड़ेगा।

“अरे यार, मैं क्या करूँ वो मुझे तो कुछ नही बोलता तो मैं क्यो बोलू उसको”।

उसकी बात सुन कर छोटू के आँखों से आँसू आने लगे । और बिना कुछ बोले वो आने क्रिकेट बैट को साफ कर रहा है और रोये जा रहा है। लेकिन उसको कोई फर्क नही पड़ा । ऊपर से सब और उसका मज़ा ले रहे थे साथ मे सुशील भी ।

“बहुत अच्छा किये तुम भाई, जिसके लिए मैंने जर दिन पूरी जानकारी इकट्ठा कर रहा था ये सोच कर की कभी मैं ना तो तूम आगे बढ़ो,लेकिन तुम तो एक हत्यारे की तरह हो जो बोलता तो कुछ है और करता कुछ है।

“तो तुम को कौन बोला था, मेरे साथ रहने के लिए” (हँसते हुए)

“सही बोल रहे हो, गलती मेरी ही है जो तुम को समझ नही पाया”

“एक हत्यारे को तो हम ये सोच कर भी भूल जाएंगे कि वो एक हत्यारा है,लेकिन...

जब मुझे ये पता चलेगा कि वो हत्यारा मुझे ही मारने के लिए मेरे ही साथ रह रहा है तो उससे दूरी ही सही होती है”।

छोटू को अपने पापा की याद बहुत आ रही थी, क्यो की वो हमेशा से जानते थे कि ये लड़का मतलब के लिए साथ रहता है। लेकिन मैं ही नही समझ पाया ।“

सच कहते है, मौत तो आदमी को चाकू, तलवार, ज़हर, ऐसे अनेक हत्या करने के तरीके है जो एक बार मे मार डालता है... लेकिन.....

ऐसी मौत का क्या जो उनको यकीन में लेकर किसी को बार बार मरता हो, वो तो सब से बड़ा हत्यारा होता है।


कुछ दिन बाद...

आये दिन तब भी उसको मानसिक रूप से परेशान करने लगे सब ना तो फिर वो ठीक से क्रिकेट खेल पा रहा था न ही वो कुछ और, वो इतना डर चुका था कि वो अपने मे ही बड़बड़ाने लगा क्यो की उसका खेल दिनों दिन खराब होता जा रहा था। वो दिमागी तौर पर पागल के समान हो गया था । उसकी हत्या करना या ना करना बराबर था।

इसका सब से बड़ा जिमेदार तो सुशील ही था जो सब देखते हुए भी अनजान बना था ।

बाद में उसका क्रिकेट छूट गया और रोते हुए वो बैग ले कर फिर वापस अपने घर के स्टेशन आ गया, क्यो की उसको पता था कि अभी तो धमकी ही मिल रही है बाद में जान से भी जा सकता हूँ । वैसे भी भरोसा लेकर तो एक बार हत्या तो कर ही चुका है।




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