हत्यारे
हत्यारे
ये अदालत राघव को सम्मान सहित सभी आरोप से बरी करती है।
"लोभ के कारण जिन्होनें उसको झूठे आरोप लगाये, उन सभी को सात साल की सजा सुनाती है।
खराब व्यवस्था और चंद लोभियों के कारण, एक नौजवान वीर सैनिक को जिन्दगी के सत्ताईस वर्ष सरहद की जगह, न्याय माँगनें के लिये सड़कों पर चप्पल घिसते हुए बिताने पड़े।
बन्दूक तलवार या अन्य हथियारों से नहींं वरन उस की मानसिक रूप से हत्या करनें की कोशिश की है।
इस दौरान उसके मान सम्मान को जो क्षति पहुँची है, साथ ही चार पीढियों तक देश की सुरक्षा के लिये बेटों को समर्पित करनें वाले परिवार को जो शर्मिन्दगी के साथ जीने को मजबूर होना पड़ा उसकी भरपाई चंद रुपयों से अदालत नहीं कर सकती, यह व्यवस्था इस बहादुर सैनिक की कर्जदार रहेगी।
"सत्य की विजय हुई "!
अच्छा तो आप बतायें, आपको अब कैसा लग रहा है ? तभी मीडिया ने राघव से पूछा ,
सेना में रहते मेरे साथ जो धन के लोभियों ने किया अपना दोष मेरे ऊपर लगाकर मुझे दोषी बना दिया।
जैसे जिसकी लाठी उसकी भैंस पर मैने हिम्मत नहीं हारी
सच्चाई और ईमानदारी की हमेशा जीत होती है, बस उसको साबित करने में थोड़ा समय अवश्य लगता है, जो हिम्मत ओर हौसलों से ही हो पाता है।
अन्याय जरूर मेरे साथ हुआ।
सेना का मैं सम्मान करता हूँ, मेरे मन में कोई शिकायत नहीं "!
ये जरूर है कि कानूनी लड़ाई करते - करते मैं पूरी तरह टूट गया ! "आज भी सेना, सैनिकों के लिए मेरे मन में पूरी तरह सम्मान है"
जो देशभक्ति का पाठ बचपन में मेरे पिता ने मुझे सिखाया था, वो मेरे मन में बसा है। मेरे पिता ने देश के लिए अपनी जान न्यौछावर कर दी थी "।
"अब जितना मेरे पास समय है, मैं तन, मन से देश की सेवा करना चाहता हूँ "।
काश मैंने सत्ताईस साल अदालत के चक्कर लगाने में नहीं, अपितु देश की सेवा में लगाये होते !
"आप नौजवानों के लिए कुछ कहना चाहेगे "।
बस यही संदेश देना चाहता हूँ।
चाहे कितनी भी मुझे पीड़ा सहनी पड़ी हो पर इन सबसे बड़ा है देश की रक्षा और उसका सम्मान सबसे ऊँचा है जरूरत पड़ने पर हमें अपने देश के लिए मरने के लिए भी तैयार रहना चाहिये"!