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Tragedy

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हंगामा - 02

हंगामा - 02

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मेरे पास पैमेरियन है छोटा सा, बहुत ही समझदार कुत्ता है किसी को काटता नहीं परंतु भोंक भोंक कर भगा देने में उस्ताद । जब पैमेरियम लिया तब मेरे पास ऑप्शन था या तो पैमेरियन या पिटबुल । मैने पैमेरियन चुना और आज से पहले कभी अवसोस नहीं हुआ । आज लग रहा है की बुलपिट्ट भी लेना चाहिए था ।


सुबह से ही घर के बाहर चंद बुड्ढे और बुढ़िया का समूह इकठ्ठा हो रखा है । वैसे तो कुछ जवान महिला पुरुष भी है परंतु चलो छोड़ो उनको ।


वैसे तो कोई विशेष मुद्दा नहीं है परंतु एक मित्र जो पिछले तकरीबन 10 सालों से काफी परेशान थे अचानक पिछले महीने परेशानियों से निजात पा गए । मित्र अब सुकून में थे बस हम सबने उनके इस सुकून का जश्न की शकल देते हुए एक शानदार पार्टी का आयोजन करने का फैसला किया । मित्र से बात हुई तो उसे विचार पसंद आया और उसने चंद बदलावों के साथ पार्टी का आयोजन स्वीकार कर लिया । मित्र की राय पर मित्र के मित्रों को (ऐसे मित्र जो लगातार परेशानी से गुजर रहे है) भी इनवाइट करने का फैसला उचित जान पड़ा लिहाजा एक छोटी सी पार्टी एक बड़े समारोह में बदल गई ।


क्योंकि पार्टी अब बड़े आयोजन के रूप में थी इसीलिए बड़े हाल में इंतजाम करने के अलावा बकायदा कार्ड भी छपवा लिए गए थे और शायद ऐसा ही कोई कार्ड कहीं से इन बुड्डों के हाथ लग गया और यह बुड्ढे समाज संस्कृति का रोना रोते हुए आयोजन को बंद करवाने के लिए सब तरफ हाथ पैर मारने के बाद आज यहा इकठ्ठे हो गए है ताकि आयोजन को रद्द करवाया जा सके ।


दरअसल मामला सिर्फ इतना सा है की कई साल पहले जब मित्र का उसकी पत्नी से विवाद शुरू हुआ उस वक्त मोहल्ले के यह बुड्ढे अपना मुंह सिल कर अपने अपने कामों में व्यस्त रहे । जब मित्र और उसके मां बाप को पुलिस ने पकड़ कर दहेज, डोमेस्टिक वायलेंस, रेप आदि के मामलों में कोर्ट में पेश किया तब भी यह बुड्ढे बुढ़िया शांति से अपने कामों में व्यस्त रहे । अगले दस सालों तक मित्र अपने माता पिता के साथ हर महीने कोर्ट में चक्कर लगाता रहा तब भी इनको कोई फरक नहीं पड़ा । पिछले साल जब मित्र और उसके मां बाप सब आरोपों से बरी हुई तब भी इन बुद्धों का कहना था की न्याय नहीं हुआ । मित्र ने क्रूरता के आधार पर पिछले महीने तलाक हासिल कर लिया अब इन बुद्धों का मुंह कुछ कुछ चलने लगा और जब विवाह विच्छेद को सेलिब्रेट करने के लिए आज मित्र और मित्र के कई मित्र इकठ्ठा होने जा रहे हैं तब यह सारे बुड्ढे यहां संस्कृति का रोना लेकर हंगामा करने आ पहुंचे है ।


पिटबुल ना होने का आवसोस दिल में अपनी जगह रहा , परंतु पैमेरियन ने दिल को सुकून हासिल करवा दिया जब एक भागते बुड्ढे की धोती मुंह में दबाए मेरे सामने विजेता की तरह आ खड़ा हुआ ।


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